चंचल
खुदमुख्तारी खबरदार ! आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी , '16 चंपारन से उठा जन जुनून तय कर रहा था कि - हमे अब अंग्रेजी साम्राज्य नही चाहिए . कहीं से ,किसी भी कोने से यह सवाल नही उठ पा रहा था कि, अंग्रेज के जाने के बाद सरकार किसकी होगी और कैसी होगी ? माजी में सोने की चिड़िया और दूध घी की नदियों वाला भारत जादू टोना , सपेरों , पिछड़ों और जाहिलों का मुल्क घोषित हो रहा था . दुनिया के सामने इस मुल्क को जाहिल और पिछड़ा साबित किये बगैर अंग्रेज कम्पनी (इस्टइंडिया कम्पनी ) भारत पर कब्जा नही कर सकती थी . शातिर दूरदर्शी सर टामस रो ने खुर्दबीन से देख लिया था, लेकिन मुगलिया खानदान के जिज्ञासु बादशाह जहांगीर को खुर्दबीन पकड़ाते हुए सर टॉमस रो ने कहा कि - हुजूरे आला ! इस यंत्र से जमीन नही , आसमान देखिये तारों का खेल देखिये , जमीन पर खेल शुरू करने के लिए हमे ' दो गज ' जमीन दे दीजिए . बादशाह था . दो गज जमीन दे दिया . माजी भर्राए गले से कहता है एक दिन वह भी आया, जब वही बादशाहत ' दो गज जमीन ' के लिए तड़प तड़प कर , मर गया पर 'अपनी जमीन ' नसीब नही हुई . बहादुरशाह जफर उसी जहांगीर के सजरे से है , ये सब बाबर की औलादें हैं जो मुल्क में हुकूमत ही नही करती इस मुल्क से मोहब्बत करती हैं ,जंगे आजादी का परचम उठाये अगली कतार में खड़ा खड़ा बहादुरशाह जफर बादशाह भर नही है , जंगे आजादी का सिपाही है . उसे आज उसके परदादा बाबर के साथ जोड़ कर जब गाली दी जाती है तो तवारीख अट्टहास करता है - बाबर की औलादों की गाली किसी कुटुम्ब को दी जानेवाली गाली नही है यह गाली आजादी के मांग पर डटे दीवानों को गाली है .
सर टॉमस रो उठा और प्लासी तक जा पहुंचा . ईस्ट इंडिया कम्पनी अंग्रेजी साम्राज्य को खेल मैदान सौंप दिया . माजी के सीने पर अंगूठे का निशान लगा - भारत एक गुलाम देश है
1885 में गुलाम भारत के 'आजाद होने ' की इच्छा शक्ति जगाई जाती है , इतिहास कहता है यह है ' कांग्रेस . भारत मे दो समानांतर ' सत्ता ' चलती है . एक अंग्रेजी साम्राज्य का दूसरा कांग्रेस का . दोनो धाराओं में कई पड़ाव आते है. और संघर्ष जारी रहता है . 47 तक आते आते राज सत्ता परास्त होती है और जनसत्ता के हाथ मे वागडोर मिलता है .
पश्चिमी दुनिया की चमक फीकी पड़ने लगी है .
चर्चिल एक बड़ी शख्सियत है वह केवल स्टेट्समैन भर नही है उसका एक अलग आभामंडल है भारत को यूं ही नही छोड़ेगा उसका प्रचार शुरू हो गया - कांग्रेस नालायक लोंगो का जमावड़ा है , इतना बड़ा देश , इतनी विविधता , अलग अलग मुखलिफ़ मसायल , बड़ी आबादी , पिछड़े लोग ये कैसे मुल्क चलाएंगे ? भारत के मस्तकबिल पर सवाल उठने लगे . दुनिया के तमाम बुद्धिविलाषी लोंगो ने पर्चे लिखे , सभावों जलसों में सवाल उठे कैसे चलेगा भारत ?
विभाजन के उलाहने से जख्मी आजादी आधे मन से जश्न में थी ,लेकिन आजादी के उत्सव का उछाह इतना घना था कि भारत ने यह पूछा ही नही कि हम आजाद तो हो गए पर कौन सा ' तंत्र ' होगा जो हमे चलाएगा ? विभाजन की मांग पर अड़ा और बना भी पाकिस्तान आज तक जवाब नही दे पाया है कि कौन सा तंत्र पाकिस्तान को चलाएगा ? लोकतंत्र , राज तंत्र , सैनिक तानाशाही या और कुछ ? लेकिन मूल भारत का मुस्तकबिल मुस्कुरा उठा - भारत जनतंत्र की बुनियाद पर खड़ा होगा . एक वाहिद मुल्क होगा जिसकी कमान जनता के हाथ मे होगी और मुल्क में खुदमुख्तारी का निजाम चलेगा .
खुदमुख्तारी ?
कांग्रेस केवल अंग्रेजी साम्राज्य को ही नही हटा रही थी , वह विकल्प की नीति भी गढ़ रही थी . 1910में पानी की जहाज पर सफर करता हुआ एक वकील एक सपना देख रहा था - 'मेरे सपनों का भारत '. 'हिन्द स्वराज ' . यही बैरिस्टर 1917 में चंपारन आता है मोहनदास करमचंद गांधी के रूप में और वापस होता है महात्मा गांधी बन कर . खुदमुख्तारी गांधी का सपना था , कांग्रेस का सपना था . 15 अगस्त 1947 को लालकिले से इसी खुदमुख्तारी की घोषणा हुई . और सारी दुनिया चौंक गयी .
हम बार बार लिखते और बोलते रहे हैं कि कांग्रेस ने हमे केवल अंग्रेजी साम्राज्य से ही नही मुक्ति दिलाई , इस कांग्रेस ने जो सबसे बड़ा काम किया कि आजाद होते ही हमे वोटिंग अधिकार दे दिया . वो भी बराबरी का . मल्लू दर्जी के वोट की कीमत जवाहरलाल नेहरू के वोट की कीमत के बराबर होगी . जब सारी दुनिया अपने वोट के अधिकार के लिए लम्बा संघर्ष करके आगे बढ़े हैं भारत को यह अधिकार ' घेलुआ ' में मिल गया .
- अचानक यह वोट अधिकार की बात ?
- जी ! अब समझ मे आ रहा होगा . आज किस तरह सरे आम आपको वोटिंग राइट से बाहर किया जा रहा है , आपके पर्चे फाड़े जा रहे हैं , और तो और कल जो शख्स एक सूबे की पंचायत ( विधान सभा ) का सदर रहा , आपके हकों की हिफाजत की गारंटी देता रहा कस्टोडियन था , आज उसी माता प्रसाद पांडे के हाथ से पर्चा खींच कर फाड़ा गया है . दर्जनों नगराध्यक्षों का चुनाव हुए बगैर ताजपोशी हो गयी , कहा गया निर्विरोध हैं . याद रखिये यह निर्विरोध -तानाशाही का सबसे मजबूत मंच है . कल का भारत निर्विरिध चुनाव के कगार की ओर जा रहा है .
पंडित जी ! हम यहां आ चुके हैं
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