डा शारिक़ अहमद ख़ान
उल्टे तवे का पराठा बन रहा है.आजकल उल्टे तवे के पराठे रोटीनुमा हो गए हैं.नानबाई बनाते यूँ हैं कि उल्टे तवे की रोटी बनायी,उसके ऊपर ज़रा सा घी लगाया और बस हो गया पराठा.जबकि पराठे का मतलब ही होता है कि उसमें तह-दर-तह हो.लेकिन पराठों की तह बाज़ारू पराठों से ग़ायब हो चुकी है.ख़ैर,उल्टे तवे की जो रूमाली रोटी होती है उसकी लखनवी नफ़ासत ये थी कि नानबाई एक पाव आटे में सोलह रूमाली रोटियाँ तैयार कर देते थे.रोटी भी ऐसी कि ठंडी होने पर चीमड़ ना हो.
रोटी खाने की भी सबकी अपनी-अपनी अदा होती है.रोटी तोड़ने की कला हर तहज़ीब में अलग-अलग है.बहुत से लोग रोटी को एक हाथ से उठाकर फिर दोनों हाथों की उंगलियों का इस्तेमाल कर रोटी को तोड़ते हैं.कई लोगों की ख़ासकर मुसलमानों की आदत होती है कि वो रोटी को प्लेट में ही रहने देते हैं और शहादत की उंगली मतलब दाहिने हाथ की पहली उंगली से रोटी को तोड़-तोड़कर खाते रहते हैं,अक्सर हम भी यही करते हैं.ये कला हमसे बहुत लोगों ने सीखने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुए,कहने लगे कि हम लोग तो प्लेट में रखी रोटी को उंगली से तोड़कर खा ही नहीं पाते हैं.बहुत से लोग दो उंगलियों से रोटी तोड़ते हैं तो बहुत से लोग तीन उंगलियों से रोटी तोड़ते देखे जाते हैं.बिहार के लोगों में अक्सर ये ख़ासियत देखी जाती है कि वो दो रोटियों को एक में सटाकर बाएं हाथ में रोटी पकड़ लेते हैं और दाहिने से तोड़कर खाते हैं.
बिहार के लोग पहले चावल खाते हैं और बाद में रोटी.कुछ लोगों को ख़ासकर आदिवासियों को हमने देखा है कि वो रोटी को दोनों हाथ में पकड़ उसके छोटे-छोटे टुकड़े बना लेते हैं और फिर रोटी को दाल या दूसरी चीज़ों में मिला देते हैं.नार्थ ईस्ट में हमने देखा कि वहाँ के लोगों के यहाँ रोज़ रोटी नहीं बनती,चावल ही उनका मुख्य भोजन है,रोटी किसी ख़ास अवसर पर बनती है और वो खाना खाते समय रोटी को पेट के पास कपड़े में खोंस लेते हैं और वहीं से तोड़कर खाते रहते हैं. रोटी पतली हो या मोटी,ख़मीरी हो या फ़तीर,रोटी तोड़ने और रोटी खाने का अंदाज़ सबका अलहदा होता है.फोटो साभार
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