डा शारिक़ अहमद ख़ान
आज संडे है,संडे इज़ फ़न डे,आज लखनऊ के नक्ख़ास से बटेरें हाथ लगीं.हलाल हुईं,सालन हुआ.बटेर एक बदनसीब परिंदा है.बटेरों की लड़ाई ही ऐसी परिंदों की लड़ाई थी जिसमें जब बटेरें आपस में लड़तीं तो विजेता बटेर को ईनाम देने के बाद हलाल कर दिया जाता,जबकि हारने वाली बटेर ज़िन्दा बच जाती.ऐसा दूसरे परिंदों के मामले में नहीं था,मसलन जब खिचड़ी के दिन बुलबुलों की लड़ाई होती है तो जीतने वाली बुलबुल को चाँदी का कंपा मिलता है और उसकी ख़ूब ख़ातिर होती है.
ख़ैर,आज ब्रिटिश इंडिया के गोरे साहबों वाली कॉलोनियल बटेर करी बनी.ट्रिपल एफ़ मतलब फ़किंग-फीस्टींग एंड फ़ाइटिंग ब्रिटिश लार्ड्स,जन्ट्स और हाकिम-हुक्कामों का बेहतरीन पासटाइम था.यहाँ आने के बाद आपस में फ़ाइटिंग बंद कर दी और नवाबीन की देखा-देखी चरिंदों -परिंदों की फ़ाइटिंग कराने में दिल लगाया.फ़किंग और फीस्टिंग नहीं छोड़ी.
बटेरबाज़ी मतलब बटेरों की लड़ाई मुग़लिया दौर के हिंद का शाही शौक़ था.ब्रिटिश राज की बटेर करी बनाने से पहले बटेर के मीट को नींबू के रस से नहला लेते हैं.डिश में दही मिलाते हैं,नींबू का रस मिलाते हैं और घी के चम्मच कम कर देते हैं.काली मिर्च का इस्तेमाल करते हैं और ठंडे मसालों को पीसकर मिला लेते हैं,मन किया तो थोड़े गरम मसाले भी मिला लिए जाएं.बस फिर जैसे मुर्ग़ बनता है वैसे बना लिया.बटेर आसानी से हज़म हो जाने वाली चिड़िया है.मिनरल्स-विटामिन्स से भरपूर परिंदा है.
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