दिद्दा ! ईदी का होती है ?

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

दिद्दा ! ईदी का होती है ?

चंचल  
ईद- उल - अजहा . बख्शीश का उत्सव क्यों मर रहा है ? यह हमारा सवाल नही है , इस तरह के सवाल तो  कब के अच्छन्न हो गए हैं . ' विकास '  के चक्रावाती आंधी ने ऐसे सवालों को ही जमीन से उठाया और ऊपर लेजाकर  कहीं विलीन कर दिया . त्योहार आते हैं , बेजान गिरते हैं , रश्मदायगी होती है और पता ही नही चलता कब रुख्सत हो गए .  
     - दादा ईदी क्या होती है ?  
गाव तकिये पर अधलेटा खूसट बूढ़ा , गौर से सवाल को देखा,  देखता गया , छत से लटके पंखे  की रफ्तार में देखा , सवाल फैलता जा रहा था और बूढ़े की  झुर्रियों वाली आंख  भी , पंखे से और ऊपर गयी , और आगे , और आगे और जब अनंत में पहुंचा तो आंखें  मुद गई . 
 - ' जब भी कुछ पूछो , सो जाते हैं  , ' ईदी  का सवाल वाला बच्चा नेकर सम्भालते भागा अइया के पास . अइया उसके हर सवाल का जवाब भरपूर देती थी .  
   - दिद्दा ! ईदी का होती है ? दादा से पूछा , लेकिन वे सो गए . हर बार यही करते हैं .  
   - तुम्हारे दादू सोते नही हैं , इधर कुछ दिनों से उन पर अजीब सी कैफियत तारी होती  है , बात बात में अपने बचपन मे चले जाते  हैं . अपने बचपन मे एक ईद पर हमने बहुत मार मारा था , तुम्हारे दद्दू को . और भी मारती लेकिन , तब तक हमारे ससुर आ गए . तुम  लोगों ने वो जमाना नही देखा होगा , क्या लोग थे . सात हाथ की लंबाई ,  गोर भभूक रंग , बड़ी  बड़ी आंखे ,और गुस्सा ? अब तो वो गुस्सा भी नही दिखता . एक बार जिसे देख लें , धोती गीली हो जाय .    
    - धोती कैसे गीली हो जाती रही ?  
     -  जैसे कभी कभी तुम्हारी पेंट गीली हो जाती है  
      - भक्क ! हम तो सोते में देखते हैं जैसे बाथ रूम में  
         हैं , कुछ  पता ही नही चलता .  हमारी छोड़ो दादू मार क्यों खाये ?  
      - उन्ही से पूछना  
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      -   ईदी ? उस जमाने की बात है , जब समाज मे ऊंच नीच , छुआ छूत  का चलन था , लेकिन मनमेल खूब रहा . हमारी परवरिश अभाव में भले ही हो रही थी लेकिन हम ऊंच जाति के क्षत्रिय हैं , जमींदारी  भले ही नीलाम हो गयी थी लेकिन जमींदार अभी भी हैं . यह हमें पग पग पर बताया जा रहा था. हम उस रवायत में अपने को ढाल रहे थे . उस घर का बच्चा रसूल  धुनिया के दरवाजे पर ईदी मागनेवालों बच्चों की कतार में खड़ा हो तो इज्जत में बट्टा लगना ही था , और हम इज्जत में  बट्टा लगा कर एक '  छेदहवा'  
पैसा लेकर चुपके से घर मे आये थे . गांव का  संवादी  तंत्र बहुत मजबूत और मुकम्मिल होता था , अब भी है , बस नमक मिर्च लपेटने और संवाद  की अदायगी की मुद्राओं में हल्का फुल्का परिवर्तन हुआ है . जब हम घर की ड्योढ़ी पर कर आंगन में कदम रखे ही थे कि माई की कर्कश आवाज आई -  
     - खबरदार जो किसी समान को हाथ लगाया . करे ! तोका चाकी पड़े , नद्दी के गाड़ू , जमींदार के लड़िका हो के मलेच्छन के दरवाजे पे ईदी मागे वास्ते खड़े रहे ? इसी के बाद वाली बातें नही सुन पा रहे थे,  क्यों कि अरहर का हरियर डंडा चभक चभक के पीठ पे गिर रहा था . सिलसिला और  लम्बा चलता लेकिन इन वक्त पर दादा जी गरजे - बस ! अब डंडा भी पड़ा तो खैर नही . हम सुमेर बारी बो के हवाले कर दिए गए , नहलवाने वास्ते . ये वही सुमेर बो हैं, जिन्होंने हमारी वो खबर कि हम ईदी के लिए रसूल के दरवाजे पर खड़े रहे . पीढ़ी दर पीढ़ी ये हमारे घर की  चूल्हा चौकी लीपना , पोतना , वर्तन माजना गांव  भर की खबर देना काम था . ये सुमेर बो हमारी ही नही अमारी अइया की भी आजी लगती थी   सुबह शाम दोनो जून जब आंगन में कदम रखती तो घर की औरतें जमीन पर अंचरा रख कर सुमेर बो से पैलग्गी करती और हम बच्चों को ' अइया सलाम '  बोलना पड़ता . बहरहाल  हम  नहलाये गए . छेदहवा पैसा राख से माज कर पवित्र किया गया .  
      इसी दिन शाम को एक पोटली लिए नियामत मियां आते - सलाम साहब के साथ ,दुइ सेर बा साहेब , कुर्बानी के प्रसाद है ' . अरसे तक हमारे लिए यह राज पेंचीदा बना रहा कि  ताँबे के एक पैसे के लिए लड़का तो हता जाय और परिवार नियामत मियां  द्वारा दिये गए कुर्बानी के दो सेर गोश्त  पर डकार ले .  
    अभी बच्चे हो जब बड़े हो जाओगे तो तुम्हे भी इन सवालों का हल ढूढना पड़ेगा कि पंडित रामदीन सतई हरिजन के घर जाकर सत्यनरायन की कथा सुना सकते हैं , नकद दच्छिना और ' कच्चा सीधा ' ग्रहण कर सकते हैं पर सतई रहेगा अछूत ही . छोड़ो ये बड़ो की बाते हैं . ईदी एक बख्शीश है , इसका रिश्ता न मजहब से है , न जाति  से, यह  बच्चों के लिए उत्सव है सवाल यह है कि तुम कितने उम्र तक बच्चे बने रह सकते  हो  . एहसान अब्बास , असलम परवेज खान , मोहम्मद इलियास , शाहनवाज खान , नादिरा बब्बर , शायदाबानो से हम बे हिचक ईदी ले सकते हैं बस कुछ दीवारों को भसकाना भर होता है .  
       भतीजे उत्सव भरते हैं और चचे दीवारा खड़ा करते हैं , फैसला तुम बच्चों करना है . माजी में जाना हमारी आदत नही है न ही फितरत , वक्त हमे माजी में ढकेलता है . अब हमें नीद आ रही है . 
 

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