कनुप्रिया
अमेरिका कनाडा के जंगलों में आग लगी है, साइबेरिया का तापमान इस साल 48 डिग्री तक पहुंचा, यूरोप और चीन बाढ़ से जूझ रहे हैं, विकास मुँह बाए अपनी हालत देख रहा है, दुनिया के पर्यावरण विज्ञों की चिंता है कि क्या पृथ्वी का तापमान डेढ़ डिग्री बढ़ने तक ही सीमित हो पाएगा?
दुनिया के कई देशों ने जनता ख़ुद सड़क पर आ रही है हथियार उठा रही है, ईरान में तो पानी को लेकर जनता सड़क पे है वहीं जहाँ अभी कट्टरपंथी सरकार जनता के आजतक के सबसे कम मताधिकार के बाद भी बन गई है. अफगानिस्तान में महिलाएँ डरी हुई हैं कि फिर तालिबान न आ जाए, महिलाओं की परवाह किस धर्म को है.
भारत मे लाखों जाने गईं और आँकड़ो तक मे शामिल नही हुईं, महज उनके परिजन ही जानते हैं कि वो जीवित लोग थे. सरकार संसद में ऑक्सीजन सप्लाई से जानो के जाने से ही मुकर गई है मुआवज़ा तो दूर की बात है. विपक्ष, मीडिया, एक्टिविस्ट सर्विलांस पर हैं, सरकारें सिर्फ़ ख़रीद फ़रोख़्त पर तो बन नही सकतीं, ब्लैकमेलिंग भी ज़रूरी है. सांसद संजय झा सदन में कह रहे हैं कि कोविड के दौरान हमने पाया कि हम बेबस हैं, जनता क्या कहे. मीडिया गुलाम है, न्यायालय भी बेबस है, प्रधानमंत्री सरे आम झूठ की पीठ थपथपा रहे हैं, सरकार अगर ग़ैर जिम्मेदार और ग़ैर जवाबदेह होने के साथ बेशर्म भी ही जाए तो क्या कर ले. , जनता तमाशा देख रही है, जीवन के जुगाड़ के लिये आत्म निर्भर है.
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