मिले मुलायम कांशीराम,हवा में उड़ गए जय श्रीराम ,याद है यह नारा !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

मिले मुलायम कांशीराम,हवा में उड़ गए जय श्रीराम ,याद है यह नारा !

अंबरीश कुमार  
शुक्रवार को बहुजन समाज पार्टी के शीर्ष नेता सतीश मिश्र जब अयोध्या में मंदिर मंदिर आशीर्वाद लेने के बाद मीडिया से बोल रहे थे तो मुझे वर्ष 1993 में बसपा के संस्थापक कांशीराम और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक एकता से निकला वह नारा याद आ गया .नारा था ,मिले मुलायम कांशीराम,हवा में उड़ गए जय श्रीराम ! और अब वह नारा देने वाली बहुजन समाज पार्टी भगवान राम के चरणों में नजर आ रही है.बात यहीं तक सीमित नहीं थी अयोध्या में जो पोस्टर लगे उसमें फरसाधारी  परशुराम छाए हुए थे. बाबा तेरा मिशन अधूरा ...नारा देने वाली बसपा का दलित आंदोलन अगर भगवान राम से लेकर परशुराम तक पहुंच गया है तो इस सामाजिक बदलाव पर किसी को हैरानी क्यों नहीं होगी .सत्ता के लिए सर्वजन का नारा तो पहले ही दिया जा चुका था .पर यह आंदोलन अयोध्या ,मथुरा और काशी की परिक्रमा करने लगेगा यह बड़ा बदलाव तो माना ही जा रहा है .  
खांटी समाजवादी रमाशंकर सिंह ने इस पर कहा ,फुले, पेरियार, बाबा साहेब, कांशीराम का दलित वंचित आंदोलन मायावती के हाथों कहां पहुंच कर दम तोड़ रहा है. सच ही दौलत की बेटी ने सब नष्ट कर दिया.जिन्हें अभी भी उम्मीद है कि इस नेतृत्व व नीति के साथ आमूल सामाजिक परिवर्तन व समता न्याय की दिशा में दो कदम भी आगे बढ़ पायेंगें वे किस मुग़ालते में हैं. बहुजन समाज मनुवाद के क़ब्ज़े में चला गया है.चलो यह दलित क्रांति भी अपने भ्रष्टतम स्थान पर आकर स्खलित हो गई. यदि दलित कार्यकर्ताओं नें अगले कुछ समय में ही इस रिक्ति को नहीं भरा तो अगले पच्चीस तीस बल्कि पचास साल तक गली गली रगड़ना सड़ना होगा.सनातन धर्म की यह सबसे बड़ी ताक़त है कि वह अपने भीतर हरेक को जज़्ब कर उसे अपना जैसा बना  देता है.' 
दरअसल मायावती की दिक्कत यह है कि उत्तर प्रदेश में वे पिछले तीन चुनाव से लगातार हारती जा रही हैं .पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें अगर दस सीटें मिली तो इसकी वजह समाजवादी पार्टी से गठबंधन होना था .वर्ना वर्ष 2014 की मोदी लहर में वे साफ़ हो गई थी .इसके बावजूद उन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ दिया .दिल्ली के दबाव में या सामाजिक समीकरण को देखते हुए यह साफ़ नहीं है .पर उन्हें अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए दलित आधार के साथ एक मजबूत जातीय गठजोड़ बनाना पड़ेगा तभी वे चुनाव जीत पायेंगी .करीब बीस फीसद दलित मतदाताओं में बारह फीसद जाटव मतदाता पूरी ताकत के साथ मायावती के साथ खड़े रहते हैं और आगे भी खड़े रहेंगे यह माना जाता है .ऐसे में उन्हें गैर जाटव दलितों के साथ गैर यादव पिछड़ी जातियों का समर्थन चाहिए होता है .गौरतलब है कि एक दौर में वे यादव वोट भी खींच लेती थी मुलायम सिंह की झोली से .वे यादव बाहुबलियों को भी पार्टी के साथ रखती रही हैं ताकि ओबीसी के साथ कुछ क्षेत्रों में यादव वोट भी मिल जाए .वह दौर याद करें रमाकांत यादव ,उमाकांत यादव ,मित्रसेन यादव से लेकर डीपी यादव तक सब बसपा के सिपहसालार थे .इसमें गैर यादव बाहुबलियों को छोड़ दिया है .इसी सोशल इंजीनियरिंग के चलते मायावती सत्ता में जगह बनाती रही हैं .दलित , ओबीसी को छोड़ दें तो मुस्लिम और ब्राह्मण बसपा के वोट बैंक नहीं रहे पर इनका समर्थन इन्हें अलग अलग समय पर मिला है .मुलायम सिंह राज से परेशान ब्राह्मण वर्ष 2007 के चुनाव में बसपा के साथ तो रहा लेकिन उसके बाद नहीं आया .मुस्लिम तभी आये और वहीँ साथ आयें जहां मुस्लिम उम्मीदवार बसपा ने दिया . 
राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे ने कहा ,मुस्लिम कभी भी बसपा का वोट बैंक नहीं रहे .वे कुछ ख़ास क्षेत्रों में कुछ खास हालात में बसपा के साथ जाते हैं .जिन क्षेत्रों में बसपा मुस्लिम उम्मीदवार देती है वहां उसे मुस्लिम समर्थन मिलता है .आज भी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की पहली पसंद समाजवादी पार्टी बनी हुई है जिसका श्रेय मुलायम सिंह यादव को जाता है .मुसलमानों को लगता है कि कई मौकों पर मुलायम सिंह ने प्रदेश के मुसलमानों का साथ दिया है .' 
दरअसल मायावती ज्यादा संख्या में मुस्लिम और ब्राह्मण उम्मीदवार देकर जो राजनीतिक फायदा लेती रही हैं वह राजनीति अब ज्यादा प्रभावी होती नजर नहीं आ रही है .चौदह के लोकसभा चुनाव से ही ही हालात बदल गए हैं .प्रदेश में करीब पचास फीसद वोट के साथ मोदी ने सपा बसपा के जातीय समीकरण को ध्वस्त कर दिया है . मुस्लिम भी इन दलों को बचा पाने की स्थिति में नहीं रहे .दरअसल गैर जाटव दलित जातियों और गैर यादव पिछड़ी जातियों ने भाजपा का समर्थन कर इन दोनों दलों की चुनावी संभावनाओं पर पानी फेर दिया है .माना यह जा रहा है कि जबतक भाजपा के वोट बैंक में दस बारह फीसद की गिरावट ये दोनों दल नहीं ले आ पाते हैं तबतक उत्तर प्रदेश में भाजपा को हरा पाना मुश्किल होगा . 
पर भाजपा अजेय रहेगी यह भी नहीं सोचना चाहिए .किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भाजपा का जाट वोट बैंक तोड़ दिया है .दूसरे पूर्वांचल में ब्राह्मण भाजपा के साथ फिलहाल मजबूरी में खड़ा है .इसके अलावा निषाद ,राजभर ,कुशवाहा जैसी जातियों का पूरा पूरा समर्थन भाजपा आगे मिल पायेगा यह कहना मुश्किल है .इसकी एक वजह कोरोना काल में गांव गांव में हुई मौतें और आर्थिक रूप से गरीब लोगों का टूट जाना है .इससे उग्र हिंदुत्व की ताकत भी कमजोर हुई है .इसीपर सपा और बसपा की उम्मीद भी टिकी हुई है .और इसी वजह से बसपा जो दलित आंदोलन से निकली पार्टी है वह अयोध्या ,मथुरा और काशी की परिक्रमा करती नजर आ रही है .सत्ता के लिए वह ब्राह्मण को जोड़ने की कवायद में जुट गई है . क्योंकि उसने कांशीराम के आंदोलन को आगे नहीं बढ़ाया जिससे उसका परम्परागत सामाजिक आधार दरक गया है .वर्ना वह दलित और पिछड़ी जातियों के जरिये भी सत्ता में आ सकती थी .और अगर सत्ता का समीकरण बनता तो ब्राह्मण भी खुद आ जाता बिना परशुराम का नाम लिए .

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :