जातीय जनगणना के मुद्दे पर भाजपा अलग-थलग

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जातीय जनगणना के मुद्दे पर भाजपा अलग-थलग

फ़ज़ल इमाम मल्लिक 
बिहार में जातीय जनगणना का मुद्दा गरमा गया है. भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ गई है. विपक्ष ने इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को तो घेरा ही है, एनडीए में शामिल दलों ने भी दो टूक जातीय जनगणना की वकालत कर भाजपा की परेशानी बढ़ा दी है. भाजपा का सबसे मजबूत सहयोगी जदयू ने भी आंखें तरेरी हैं और साफ किया है कि केंद्र को जातीय जनगणना करानी चाहिए. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी केंद्र सरकार से कहा कि वह देश के बड़े तबके के हितों की सोचे और जातीय जनगणना कराए ताकि वंचितों को सरकारी सुविधाओं का लाभ मिले. एनडीए में शामिल लोजपा, हम और वीआईपी भी इस मुद्दे पर नीतीश कुमार के साथ हैं. वैसे भी बिहार सरकार ने विधान परिषद और विधानसभा से इस आशय का प्रस्ताव पास करवा कर केंद्र सरकार को भेज चुकी है. 

जातीय जनगणना के मुद्दे पर जदयू ने अब अपने रुख को औरकड़ा कर लिया है. पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना के मसले पर किसी तरह के समझौते से इंकार कर दिया. नीतीश कुमार ने कहा कि मैं 1989 से ही जातीय जनगणना का पक्षधर रहा हूं. पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने पहली बार मुझे जातीय जनगणना के बारे में जानकारी दी थी. उन्होंने जातीय जनगणना की के लिए मुझे प्रेरित किया. जब मैं ज्ञानी जैल सिंह से मिला था तो इसके बारे में मुझे बहुत जानकारी नहीं थी लेकिन मधु लिमये और मधु दंडवते जैसे नेताओं से मुलाकात के बाद जातीय जनगणना का पक्षधर हो गया. राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि जाति आधारित जनगणना को अगड़ा और पिछड़ा से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जातीय जनगणना की मांग वाले प्रस्ताव पर चर्चा हुई और इसे पास किया गया. प्रस्ताव में कहा गया है कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए और यह राष्ट्र हित में है. माना जा रहा है कि जल्द ही नीतीश कुमार इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखें. नीतीश के इस रुख से भाजपा की परेशानी बढ़ी है. नीतीश कुमार को कई मुद्दों पर घेरने में जुटी भाजपा अब बैकफुट पर है. उत्तर प्रदेश में चुनाव होना है और उसके सामने दिक्कत यह है कि यूपी में पिछड़ों-अतिपिछड़ों का बड़ा वोट बैंक है. इस मुद्दे पर अगर वह साफ मना करती है तो यूपी चुनाव में दांव उलटा पड़ सकता है. बिहार में तो इस मुद्दे पर सभी दल गोलबंद हो गए हैं. 

कुछ दिन पहले राजद, कांग्रेस और वाम दलों के नेताओं ने भी नीतीश कुमार से मुलाकात की थी और उन्हें इस मुद्दे पर अपना पूरा समर्थन देकर भाजपा को घेरने की कोशिश की थी. दिल्ली प्रवास के दौरान नीतीश कुमार हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला से भी मुलाकात की. चौटाला ने पिछले दिनों नीतीश कुमार से फोन पर बातचीत की थी. चौटाला और नीतीश कुमार के रिश्ते पुराने रहे हैं. जनता दल के काल में दोनों एक साथ राजनीति करते रहे. हालांकि बीच के दिनों में कोई संपर्क नहीं रहा लेकिन अब चौटाला और नीतीश एक बार फिर करीब आ रहे हैं. इस मुलाकात को भी जातीय जनगणना से जोड़ कर देखा जा रहा है. नीतीश कुमार इस मुद्दे पर समर्थन जुटाने में लग गए हैं. 

दिलचस्प यह है कि कुछ दिन पहले तक जातीय जनगणना की दूर दूर तक कोई चर्चा नहीं थी. लेकिन लोकसभा में केंद्र सरकार के एक मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जातीय जनगणना की कोई योजना नहीं है. देशभर में कोई हलचल नहीं हुई, लेकिन बिहार में इस पर सियासत गरमा गई. बिहार में इन दिनों पूरी सियासत इसी मुद्दे पर हो रही है. बिहार भाजपा नेताओं ने इसका विरोध किया तो जदयू नेताओं ने खुल कर इसकी वकालत की. बिहार यात्रा पर निकले जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने इसे समय की जरूरत बताई. फिर केसी त्यागी ने भी इस पर जोर दिया. नीतीश कुमार तो इस पक्ष में थे ही. लेकिन फिर राजद ने भी जातीय जनगणना पर जोर देकर नीतीश का साथ दिया. इस बीच नीतीश कुमार ने मांग की कि केंद्र जातीय जनगणना के लिए दोबारा सोचे. हालांकि नीतीश की मांग पर अब तक केंद्र सरकार चुप है. लेकिन बिहार में तो राजनीति हो रही है. राजद नेता तेजस्वी यादव ने प्रस्ताव दिया है कि नीतीश की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिले. उनसे जातीय जनगणना का आग्रह करे. इस मुद्दे पर विपक्ष मुख्यमंत्री के साथ है और भाजपा नेता इस पर नजदीक नजर रख रहे हैं. वैसे बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों से इस तरह की मांग दो बार सर्वसम्मति से की गई है, जिसे दोनों बार केंद्र सरकार को भेजा भी गया. इसलिए नीतीश पीछे भी नहीं हट सकते. असल में मंडल की धारा से निकली राजनीतिक पार्टियां जातीय जनगणना में सियासी संभावना देख रही हैं. उन्हें लग रहा है कि राम मंदिर निर्माण आंदोलन की वजह से मंडल की राजनीति में आए बिखराव को फिर एक बार पुराने माडल पर लाने में इससे मदद मिलेगी. यह हो पाएगा या नहीं इसके बारे में फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन यह तो तय है कि सामाजिक न्याय की पक्षधर पार्टियों के लिए यह बड़ा मुद्दा है और इसे लेकर वे लंबी लड़ाई की तैयारी कर रही हैं. यों जदयू के सहयोगी दल भाजपा का रुख इस मसले पर अलग है और पार्टी के बड़े नेता इस पर कोई बात ही नहीं कर रहे हैं. भाजपा के कुछ नेताओं ने जरूर जातीय जनगणना का विरोध किया है. वैसे केंद्र सरकार ने जनगणना में नए कालम के रूप में जाति को जोड़ने की मांग ठुकरा दी है. 

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