पीयूसीएल की अध्यक्ष प्रो डेज़ी नारायण नहीं रहीं

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

पीयूसीएल की अध्यक्ष प्रो डेज़ी नारायण नहीं रहीं

आलोक कुमार 
पटना.पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज , बिहार  की अध्यक्ष एवं जाने-माने प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रो डेज़ी नारायण नहीं रहीं.पटना एम्स में अंतिम सांस ली.वे 70 साल की थीं.पिछले कुछ दिनों से प्रो.डेज़ी नारायण ब्रेन हैमरेज से जूझ रही थीं.उनको पटना एम्स में भर्ती कराया गया था.एम्स के द्वारा हर तरह की कोशिश करने के बाद भी प्रो.डेज़ी को बचाया नहीं जा सका. 

पटना विश्वविद्यालय इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष व  मानवाधिकार कार्यकर्ता थीं प्रो.डेज़ी नारायण. इस दौर के वाम-जनवादी आंदोलन के समर्थक बुद्धिजीवी के बतौर पटना की  प्रतिष्ठित शख्शियत रहीं प्रो. नारायण का भाकपा- माले व आइसा , ऐपवा व महिला आंदोलन  से सजीव संबंध रहा है. वे आजीवन आंदोलन की एक सच्ची व सक्रिय समर्थक बनी रहीं. यह असमय आयी हुई एक बड़ी क्षति है.प्रगतिशील नागरिक आंदोलन में पैदा हुआ एक बड़ा शून्य है. 

बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रो. कंठ गणित के प्रोफेसर थे. लेकिन, सिविल सेवा की तैयारी इतिहास, अर्थशास्त्र, जीएस आदि में समान रूप से कराते थे. उनके छात्रों के शब्दों में साइंस और आ‌र्ट्स में उनकी समान पकड़ थी.मानवाधिकार संरक्षण के लिए पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी सेल से लगातार जुड़े रहे.निधन के समय तक उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे.शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन के लिए उन्होंने चार दशक पहले 'ईस्ट एंड वेस्ट एजुकेशनल सोसाइटी' का गठन किया था. इसके साथ शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए वॉलंटरी फोरम फॉर एजुकेशन, बिहार एवं आरटीई फोरम आदि प्रमुख हैं.इनसे प्रो.डेज़ी नारायण जुड़ी थीं. 

ऐपवा ने प्रो.डेज़ी नारायण के निधन पर शोक जताया, महिला आंदोलन और मानवाधिकार आंदोलन के लिए इसे  बड़ी क्षति बताया. अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने प्रो.डेज़ी नारायण के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि यह बिहार के मानवाधिकार आंदोलन और महिला आंदोलन के लिए बड़ी क्षति है. 

ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो.भारती एस कुमार, राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे, सचिव शशि यादव, सहसचिव अनिता सिन्हा ने अपने संयुक्त शोक संदेश में प्रो.डेजी नारायण को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा है कि उनकी मृत्यु से महिलाओं के पक्ष में मजबूती से उठने वाली एक बेबाक, निर्भय आवाज आज मौन हो गई है. आने वाले समय में इसकी भरपाई मुश्किल है.  

प्रो. डेज़ी नारायण इतिहास की विद्वान थीं, बिहार ही नहीं देश भर में एक बुद्धिजीवी के रूप में प्रतिष्ठित थीं. पटना विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्त होने के बाद भी वह जनआंदोलनों में सक्रिय थीं.वह कक्षाओं में छात्रों के बीच हों, गोष्ठियों में हों या सड़कों के आंदोलन में, हर जगह लोग उन्हें प्रतिष्ठा देते थे और उनकी बातें गंभीरता से ली जाती थी. ऐपवा को प्रो. डेज़ी नारायण का लम्बे  समय से समर्थन, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहा है आज हम सब उनके परिजनों के  साथ इस दुख में शामिल हैं और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं. 

सामाजिक कार्यकर्त्ता सुमन सौरव ने कहा है कि मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों को बुलंद आवाज देने वाली महान व्यक्तित्व की धनी, इतिहास विभाग की ख्यातिप्राप्त प्राध्यापिका (पटना विश्वविद्यालय) व पीयूसीएल बिहार इकाई की अध्यक्ष प्रो. डेज़ी नारायण के असामयिक निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि व शत-शत नमन.डेज़ी मैम का निधन हम जैसे सामाजिक कार्यकर्त्ता के लिए अपूरणीय क्षति है,जिसे शब्दों में व्यक्त कर पाना संभव नहीं.फादर फिलिप मंथरा,फादर जोस,सिस्टर सुधा वर्गीस आदि ने भी श्रद्धांजलि दी हैं.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :