भाजपा को 40 फीसद बने रहना भी बड़ी चुनौती

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

भाजपा को 40 फीसद बने रहना भी बड़ी चुनौती

राजेंद्र द्विवेदी 
उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अपने रिकॉर्ड तीन करोड़ 44 लाख मतदाता एवं 40फीसद मतों को बचाये रखना तथा सपा एवं बसपा को 22फीसद मत से सत्ता हासिल करने के लिए 40 फीसद तक पहुंचना चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. 1985 में कांग्रेस 40फीसद मतों के साथ 269 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी. यह रिकॉर्ड भाजपा ने 32 वर्षों के बाद तोड़ा. उसे 40फीसद मत और 312 सीटें मिली. 1985 के बाद जितनी भी सरकारे बनी वह सभी 29फीसद से 33फीसद मत पाकर ही बनी. 33फीसद मत पाने का रिकॉर्ड भी 1993 में मंडल और कमंडल के बीच लड़ाई में भाजपा को मिला था. हालांकि सरकार सपा और बसपा ने मिलकर बनाई थी. 2017 के चुनाव में रिकॉर्ड 63.31फीसद मतदान हुआ था जिसमे कुल पड़े मतों का 39.67फीसद मत और वोटों की संख्या में 3 करोड़ 44 लाख मत भाजपा को मिले और अप्रत्याशित 312 सीटें जीती. दूसरे स्थान पर 311 सीटों पर लड़कर 21.82फीसद तथा 1 करोड़ 89 लाख 23 हजार 769 मत पाकर 47 सीटें जीती थी. बसपा मतों के अनुसार सपा से 3 लाख अधिक मत पाई थी उसे 22.23 फीसद मत और 1 करोड़ 92 लाख 81 हजार 340 वोट मिले लेकिन सीटें मात्र 19 ही मिली. बसपा का वोट इसलिए ज्यादा है क्योंकि वह 403 सीटों पर लड़ी थी और सपा कांग्रेस समझौते के कारण 311 सीटों पर ही चुनाव लड़ी. कांग्रेस, सपा से समझौते के बाद 114 सीटों पर लड़ी उसे मात्र 6. 25फीसद वोट और 7 सीटें ही मिली. कांग्रेस प्रदेश में सीटों की संख्या में अपना दल से पीछे और 5वे स्थान पर है. अपना दल को भाजपा से गठबंधन के बाद 9 सीटें मिली थी. 

अब सबसे गंभीर और महत्वपूर्ण सवाल यही है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता, अमित शाह का चुनावी प्रबंधन तथा मुख्यमंत्री योगीआदित्यनाथ की सरकार के उपलब्धियों के आधार पर 2017 में मिले 40फीसद वोटों को बचा पाएंगे ? दूसरी तरफ सपा के नेता अखिलेश यादव 403 सीटों पर लड़कर सरकार बनाने के लिए 40फीसद समर्थन जुटा पाएंगे ? मायावती का 2007 ब्राह्मण-दलित फॉर्मूला 2022 में भाजपा के 40फीसद मतों को चुनौती दे पायेगा ? प्रियंका गाँधी कांग्रेस की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस दिलाने में कामयाब होंगी ? छोटे दल जो जातीय एवं धार्मिक सियासत पर सत्ता का सुख भोगने के लिए जोड़-तोड़ में जुटे हैं उनकी भूमिका और रणनीति या गठबंधन किसको लाभ पहुचायेगा ? विधानसभा चुनाव 2022 के यह ऐसे सवाल हैं जिस पर अंतिम निर्णय मतगणना के बाद ही पता चल पायेगा लेकिन जिस तरह से सियासत हो रही है. भाजपा 350 तथा अखिलेश यादव 400 सीटों और मायावती बहुमत सरकार बनाने का दावा कर रही हैं. इन दावों में सच्चाई क्या होगी ? 

यह तो निश्चित है जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांव, गरीब, किसान, दलित, पिछड़े, महिलाओं के लाभ के लिए उनके खातों में सीधे धनराशि दे रहे हैं. 15 करोड़ राशन कार्ड धारकों को अन्न महोत्सव के तहत प्रति व्यक्ति 5 किलों आनाज 2 करोड़ 48 लाख किसानों के खातों में किसान सम्मान निधि की 6 हज़ार रूपये की धनराशि और उज्जवला योजना के दूसरे चरण में पहले चरण में लाभ से वंचित रहे परिवारों को गैस कनेक्शन, 40 लाख से अधिक लोगों को आवास, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक सभी वर्गों के बच्चे महिला छात्र आदि को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में 7 करोड़ 37 लाख से अधिक परिवारों के खातों में सीधे धनराशि पहुँचाना आदि ऐसे कल्याणकारी कार्यों से लगभग 24 करोड़ आबादी का हर परिवार कहीं न कहीं विशिष्ट वर्ग को छोड़कर लाभान्वित हो रहा है. प्रधानमंत्री के सीधे लाभ देने की योजनाओं से मतदाता 2022 में भाजपा की सरकार का समर्थन करेंगे या फिर कोरोना संकट में हुई परेशानी, मॅहगाई, रोजगार आदि तमाम ऐसे मुद्दों पर भाजपा के विरोध में मतदान करेंगे. 

जिस तरह से मोदी एवं योगी सरकार हर छोटे से छोटे कल्याणकारी कार्यों को इवेंट बनाकर व्यापक प्रचार प्रसार करती है, क्या मतदाताओं पर इसका प्रभाव पड़ेगा ? विपक्ष सपा नेता अखिलेश यादव परसेप्शन के आधार पर भाजपा के विकल्प के रूप में चर्चा में है. लेकिन सवाल यही उठ रहा है कि क्या अखिलेश यादव मोदी के कल्याणकारी योजनाओं से लाभवन्तित होने वाले मतदाओं को सरकार की नाकामियों के खिलाफ अभियान चला कर जोड़ने में कामयाब होंगे. अखिलेश के लिए सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी और मीडिया की एकतरफा भाजपा को लाभ पहुंचाने तथा भाजपा से नाराज मतदाओं को एकजुट करने, ओवैसी जैसे मुस्लिम सियासत करने वाले नेताओं से मुसलमानों के मतों में विभाजन रोकने तथा पिछड़ी जातियों में बटें हुए पिछड़े वर्ग के नेताओं को साथ में जोड़ने और भाजपा से नाराज चल रहे ब्राह्मणों को सम्मान के साथ सपा में लाने में कामयाब होंगे. यह बहुत बड़ा सवाल है और अखिलेश यादव के चुनाव प्रबंधन उनकी क्षमता और योग्यता का सबसे का बड़ा इम्तिहान भी है. जहाँ तक बसपा का सवाल है उसको लेकर नकारात्मक परसेप्शन बन गया है कि मायावती की सियासी कार्य शैली और हर कदम सपा को कमजोर करने और भाजपा को लाभ पहुंचाने वाला है. 2007 जैसे स्थिति बसपा की नहीं है और न ही वैसी राजनीतिक परिस्थितियां है. कांग्रेस की रणनीति पर तय होगा कि प्रियंका का चेहरा उत्तर प्रदेश में आगे लेकर चुनाव में उतरेंगे और परम्परागत मतदाता ब्राह्मण दलित और मुस्लिम को महत्व देकर साथ में जोड़ेंगे या फिर संघर्षशील लल्लू के कंधों पर ही कांग्रेस को चुनावी जीत का प्रयास करेंगे। 

यह अभी राजनीतिक परिस्थितयां और सियासत जो हो रही है उसमे निश्चित रूप से जाति एवं धर्म प्रमुख मुद्दे होंगे लेकिन इसके साथ ही योगी सरकार की नाकामी और मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं भी अहम् भूमिका निभाएंगी. समय तय करेगा कि 2022 में कोरोना से पीड़ित परिवारों की आह, महगाई तथा बेरोजगारी जीतेंगे या फिर मोदी के योजनाओ से लाभान्वित होने वाले लाभार्थी मौजूदा परिस्थितियों में अप्रत्याशित परिणाम देने के लिए एकतरफा किसी दल विशेष के पक्ष मे नहीं है.

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