सिविल नाफरमानी .न मारेंगे , न मानेंगे!

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सिविल नाफरमानी .न मारेंगे , न मानेंगे!

चंचल  
5 जून 74 ,9 अगस्त 42 .   इन  तारीखों का वास्ता महज भारतीय उपमहाद्वीप तक ही महदूद नही रहा , इन  तारीखों को सारी दुनिया ने एहतियातन  अपने तवारीख में जोर्ड रखा है कि जालिम  हुकूमत को  बेदखल करने का का एक हथियार यह  भी है जो न खंजर उठाता है ,न सीना चाक करता है बल्कि खुद तकलीफ से गुजर कर अपनी बात पर अड़ा रहता है .इसका नाम है सिविल नाफरमानी .न मारेंगे , न मानेंगे.  
 सिविल नाफरमानी की खोज और उसका प्रयोग , भारत की  एक चलती फिरती प्रयोगशाला   में 1910 से बे नागा  होना शुरू हो चुका था .इसके प्रयोगकर्ता रहे गांधी जी . प्रयोग जो 10  और 42 के बीच हुआ उसके  बहुत सारे पन्ने जुड़े हैं .लेकिन अभी यहां तो बस सिविल नाफरमानी पर ही बात करनी है . 
   9 अगस्त  42 को जब कांग्रेस ने क्विट इंडिया और   करो या मरो का नारा दिया तो उसी रात बापू समेत सारे नेता जेल में .पर दूसरी कतार जिन्हें  समाजवादी कहा जाता है,  सामने आ गए और कांग्रेस का नेतृत्व दुगुनी ऊर्जा से उठा दिए .लम्बी कहानी है . 
  42 का समाजवादी 74 में फिर सिविल नाफरमानी लिए नई तब्दीली  के बहाने से सड़क पर .5 जून 74 उसी का एक पड़ाव है . 
    पटना का गांधी मैदान जन और जोश दोनो से भरा पड़ा है . आज उसका नेतृत्व करने वाला वही जेपी है जो 42 में 40 साल का युवा विद्रोही था , हजारीबाग की जेल लांघ कर बाहर आ गया था .आज वह 72 साल का युवा मंच पर है .नारा देता है - सम्पूर्ण क्रांति . 
   इस आंदोलन की कथा बहुत दिलचस्प है .73 का वाकया है .अहमदाबाद साइंस कॉलेज की कैंटीन में समोसे का दाम आठ आना बढ़ गया .बस .दो  छात्र नेता बाहर आये .उमाकांत मांकड़ और मनीषी जानी .अहमदाबाद से उठी   चिनगारी  समूचे देश मे फैल गई . 
   जे पी बहुत आग्रह और कुछ शर्तों के साथ इस छात्र आंदोलन की कमान अपने हाथ मे लिया .शर्त एक थी आंदोलन हरहाल में अहिंसक होगा .जे पी का मैदान में उतरना अंतराष्ट्रीय खबर बन गयी . पटना का कदम कुँवा आंदोलन का केंद्र विन्दु  था .गुजरात से चिमन भाई की सरकार गिरी , फिर एक एक करके सारी सरकारें गिरती रही और 12 जून 75 को दिल्ली की सल्तनत भसक गई . 
       बाकी वाक्यात बिहार में बैठे हैं भाई शिवानंद तिवारी  जी   उनसे पूछिये . 
    कल छोटी छोटी घटनाए  जेरे बहस करूँगा । 
 

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