ईसाइयों को आरक्षण दिए जाने की मांग

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ईसाइयों को आरक्षण दिए जाने की मांग

आलोक कुमार 
पटना.भारत के राष्ट्रपति ने 10 अगस्त 1950 को एक फरमान जारी कर ईसाई और मुस्लिम दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से इनकार कर दिया था.इसके विरोध में पूरे भारत के दलित ईसाइयों के द्वारा काला दिवस मनाया गया.दलित मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति की तरह आरक्षण दिए जाने की मांग की गयी. 

बता दें कि 10 अगस्त 1950 को तत्कालीन कांग्रेस पार्टी की सरकार ने राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी कराकर सिर्फ हिंदू दलित को अनुसूचित जाति का आरक्षण का लाभ प्रदान करने की व्यवस्था की थी. वहीं सन् 1956 में सिख धर्म की दलित जातियों को और सन् 1990 में बौद्ध धर्म की दलित जातियों को अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ दिया गया लेकिन मुसलमानों और ईसाई धर्म की दलित जातियों को अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया.10 अगस्त 1950 के राष्ट्रपति के अध्यादेश को वापस लिए जाने की मांग की ताकि मुसलिम और ईसाई जाति के दलितों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके.उन्होंने कहा कि अगर इसे वापस नहीं लिया गया तो एक विशाल जनआंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे. 10 अगस्त 1950 के इस अध्यादेश को लागू किए जाने के विरोध में हम आज के दिन को काला दिवस के रुप में मनाते है.  

वहीं भारतीय कैथोलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के दलित विभाग के सचिव फादर विजय कुमार नायक ने कहा, "हमारा शांतिपूर्ण प्रदर्शन तब तक जारी रहेगा जब तक कि हमें न्याय नहीं मिल जाता. हमें बड़ी उम्मीद है कि इस साल हमारे मामले की सुनवाई भारत के सुप्रीम कोर्ट में होगी." 

वे भारत में कलीसियाओं की राष्ट्रीय परिषद द्वारा दायर एक याचिका का जिक्र कर रहे थे जिसमें दलित ख्रीस्तियों के लिए शिक्षा, नौकरियों और कल्याणकारी लाभों में विशेषाधिकार प्राप्त करने और अत्याचारों के खिलाफ एक विशेष कानून के तहत सुरक्षा के लिए अनुसूचित जाति का दर्जा मांगा गया है.    

दलील में तर्क दिया गया कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले एससी व्यक्ति को लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि धर्म में बदलाव से जाति नहीं बदलती है. एनसीसीआई, भारत में प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स कलीसियाओं के लिए एक विश्वव्यापी मंच है. एनसीसीआई के महासचिव असिर एबेनेज़र ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि इसकी याचिका 2013 में दायर की गई थी और भारत की शीर्ष अदालत, जनवरी 2020 में इसकी जांच करने के लिए सहमत हुई थी. हालांकि, कोविद -19 महामारी के कारण सुनवाई में देरी हुई. 

फादर नायक ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले सात दशकों से दलित ईसाइयों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है.हमें जनता को संगठित करना होगा और मामले को देखने के लिए संवैधानिक निकायों पर दबाव बनाना होगा.उन्होंने कहा, "देश की सभी कलीसियाएँ दलित ईसाइयों को उनका हक देने के पक्ष में हैं. हमें जनता को संगठित करना होगा और मामले को देखने के लिए संवैधानिक निकायों पर दबाव बनाना होगा. 

फादर नायक ने कहा कि वे राष्ट्रीय राजधानी में एक रैली आयोजित करना चाहते थे, लेकिन इसे महामारी प्रतिबंधों के कारण रोका गया. फिर भी, मांग बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पूरे भारत में कई लोग एकत्र हुए. 10 अगस्त को पूरे भारत के दलित ख्रीस्तीयों द्वारा काला दिवस मनाया जाता है क्योंकि 1950 में उसी दिन राष्ट्रपति का एक फरमान जारी किया गया था जिसमें ईसाई और मुस्लिम दलितों को इस आधार पर अनुसूचित जाति का दर्जा देने से इनकार किया गया था कि उनके धर्म, जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं देते हैं.हालांकि, सरकार द्वारा नियुक्त आयोगों ने भी कहा है कि यह फैसला संविधान की भावना के खिलाफ थी. 
 

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