संजय कुमार सिंह
आज लगभग सभी अखबारों में मायावती के भाई की बेनामी संपत्ति जब्त किए जाने की खबर पहले पन्ने पर है. खबर की खास बात यह है कि संपत्ति बेनामी है पर मायावती के भाई की है और यह जरूर बताया है कि कैसे उसके मायावती के भाई का होने का शक है. इसमें सिर्फ दैनिक भास्कर ने ठोस कारण दिया है. पर यह नहीं पता चल रहा है कि ऐसी खबरें उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले ही कैसे आती हैं. आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में उपचुनाव होने हैं. और आज मायावती ही नहीं, आजम खां के खिलाफ भी खबर है. हालांकि यह भिन्न मुकदमों के कारण है और उन्होंने कहा है कि ये फर्जी हैं तथा सरकारी साजिश. हम इससे झुकने वाले नहीं हैं. मायावती का मामला और साफ है.
दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित खबर के अनुसार तथ्य यह है कि आयकर विभाग की दिल्ली स्थित बेनामी निषेध इकाई (बीपीयू) ने 16 जुलाई को इस व्यावसायिक भूखंड को जब्त करने का अस्थायी आदेश जारी किया था. खबर आज छपीहै। जांच के दौरान आयकर विभाग ने पाया कि जमीन के हिस्सेदारों का एक जटिल जाल है. जिनके नाम पर बेनामी संपत्ति है, उनमें कम से कम छह कंपनियां शामिल हैं, छह में कई फर्जी हैं. आयकर विभाग के आदेश के अनुसार इन कंपनियों के कई हिस्सेदार हैं परंतु इनसे होने वाले लेनदेन का लाभ अकेले आनंद कुमार और उनकी पत्नी विचित्र लता को मिल रहा था. हो सकता है यह खबर सही हो और जांच का निष्कर्ष भी.
दूसरी ओर, तथ्य यह भी है कि 2003 में भी ऐसा हुआ था. बसपा का कहना है कि कोर्ट से हमें न्याय मिला था. विधानसभा चुनाव से पहले या नोटबंदी के समय आनंद कुमार के खाते में 1.43 करोड़ रुपये और करीबी के खाते में 104 करोड़ रुपये जमा कराए गए थे. अखबार (रों) ने नहीं बताया है कि तब क्या हुआ था. खबर यह भी थी कि चुनाव के बाद कह दिया गया कि सब ठीक था जबकि इसका राजनीतिक नुकसान पार्टी को हो चुका था. बसपा प्रमुख मायावती ने इस कार्रवाई को केंद्र सरकार की साजिश बताया है. उन्होंने ट्वीट किया, भाजपा केंद्र की सत्ता का अभी भी दुरुपयोग कर अपने विपक्षियों को जबरन फर्जी मामलों में फंसाकर उन्हें प्रताड़ित कर रही है. इसी क्रम में अब मेरे भाई-बहनों को भी जबरदस्ती परेशान किया जा रहा है, जो अति-निंदनीय है. बसपा इससे डरने व झुकने वाली नहीं है.
संभव है, मामला राजनीतिक हो. ऐसे में अखबारों से यह अपेक्षा तो की ही जाएगी कि वे मायावती का भी पक्ष छापें पर ऐसा है नहीं. हिन्दी अखबारों में दैनिक हिन्दुस्तान और जागरण ने इस खबर को कॉलम सेंटीमीटर के हिसाब से सबसे लंबा छापा है. दैनिक हिन्दुस्तान ने तो छह कॉलम में लीड बनाया है और मायावती का पक्ष भी है लेकिन दैनिक जागरण में मायावती का पक्ष नहीं है. दैनिक जागरण ने इस खबर के साथ भूमाफिया घोषित किए गए सपा सांसद आजम खां - खबर भी छापी है पर आजम खान का भी पक्ष नहीं है. मायावती के पक्ष के साथ यह खबर नवोदय टाइम्स में है पर राजस्थान पत्रिका में पहले पन्ने पर नहीं है.
नवभारत टाइम्स में यह खबर टॉप पर दो कॉलम में है, मायावती के भाई पर शिकंजा, 400 करोड़ का प्लॉट जब्त. नभाटा ने चार बहुमंजिली निर्माणाधीन इमारतों वाले एक प्लाॉट की फोटो छापी है जो चारदीवारी के दूसरी तरफ नजर आ रहे हैं. इस तरफ हरी घास या फसल है और इसे जब्त कर लिया गया है - ऐसा कुछ तस्वीर से नहीं लग रहा है. इस तस्वीर की जगह मायावती का पक्ष होना चाहिए था. लिखा है, सूत्रों का मानें तो इस मामले में अब सीबीआई और ईडी में भी केस दर्ज होगा.लेकिन जो हुआ है वह नहीं लिखा है. मायावती के भाई भी अब राजनीतिक हस्ती हैं उन्हें राजनीतिक रूप से बदनाम या परेशान करने वाली खबर के साथ उनका पक्ष भी हो सकता था.
इस कार्रवाई के राजनीतिक होने की शंका तो है ही और लगता है अमर उजाला ने इस बात का ख्याल रखा है. खबर बहुत बड़ी नहीं है और ना अनावश्यक फैलाई गई है. इसके साथ मायावती का पक्ष भी है. अमर उजाला ने आजम भू माफिया घोषित शीर्षक खबर को साथ मिलाकर बॉटम बनाया है. मुख्य शीर्षक है, शिकंजा : बसपा और सपा के दिग्गजों पर निगाहें टेढ़ी, जमीन मामलों में की कार्रवाई. लिखा नहीं है पर प्रस्तुति से लगता है कि अखबार इसे राजनीतिक विरोधियों की निपटाने की कार्रवाई मानता है. अमर उजाला ने आजम खान का पक्ष भी छापा है.
दैनिक भास्कर ने भी इस खबर को पहले पन्ने पर छापा है (आजम खां वाली नहीं) पर खबर में बताया गया है कि सूत्रों के अनुसार आनंद पिछले कुछ महीनों से आयकर विभाग के रडार पर थे. ईडी भी उनकी संपत्ति की जांच कर रहा है. पिछले साल दिल्ली के कारोबारी एसके जैन भी बेनामी संपत्ति की जांच के दायरे में आए थे. आरोप है कि जैन ने बेनामी संपत्ति के अधिग्रहण में आनंद की मदद की थी. ईडी ने उसे गिरफ्तार किया था. खबर के साथ संदर्भ देने का यह अच्छा उदाहरण है.
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