नरेंद्र मोदी के पिछड़ा राग पर जदयू का तंज

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

नरेंद्र मोदी के पिछड़ा राग पर जदयू का तंज

फ़ज़ल इमाम मल्लिक 
जातीय जनगणना भाजपा के गले की फांस बन गई है. बिहार में उसके सबसे पुराने सहयोगी जदयू के रुख से भाजपा और उसके नेताओं की जान सांसत में है. भाजपा के कुछ नेता इस मुद्दे पर विरोध जरूर कर रहे हैं लेकिन न तो केंद्र का और न ही बिहार का कोई बड़ा नेता जदयू के खिलाफ मुखर होकर कुछ बोल रहे हैं. भाजपा के छुटभैटे नेता जरूर बनडमरू की तरह बज रहे हैं लेकिन पार्टी ही उनके साथ खड़ी दिखाई नहीं देती है. जातीय जनगणना के मुद्दे पर जदयू का नजरिया साफ है और वह अपने रुख में किसी तरह का लचीलापन लाने को तैयार नहीं है. जदयू नेताओं का मानना है कि अगर इस बार भी चूक गए तो एक दशक बाद ही अगली जनगणना होगी और तब क्या कुछ होगा यह कहना मुश्किल है. भाजपा इससे अजमंस में है. बिहार में साथ मिल कर सरकार चला रही है और उसके दिक्कत यह है कि उसके पास भी अगर कोई चेहरा बिहार में है तो वह नीतीश कुमार का ही चेहरा है. इसलिए भाजपा नीतीश कुमार को नाराज करना नहीं चाहती. जदयू भी इस सच से वाकिफ है कि भाजपा अगर जदयू को दरकिनार करेगी तो फिर उसे न तो माया मिलेगी और न ही राम. भाजपा का पसोपेश जदयू को जातीय जनगणना के लिए ताकत दे रहा है. 

जातीय जनगणना पर सियासत हो रही है और दिन ब दिन इसकी आंच तेज होती जा रही है. बिहार में आए दिन सभा सेमिनार हो रहे हैं और जदयू नेता इन सभा-सेमिनारों में हिस्सा लेकर लोगों को गोलबंद कर रहे हैं. बात टकराव तक जा पहुंची है. जदयू संसदीय दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का मानना है कि सृजन के लिए तकलीफ उठानी पड़ती है. उपेन्द्र कुशवाहा साफ कहते हैं कि उनकी पार्टी भले ही एनडीए का हिस्सा है, लेकिन उनकी मांग नहीं मानी जाती है तो टकराव निश्चित तौर पर होगा. कुशवाहा का मानना है कि जातीय जनगणना की अनुमति नहीं देना ‘बेईमानी’ होगी. खासकर तब जबकि 2010 में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान संसद ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया था और एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान भी केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बारे में भरोसा दिलाया था. वे प्रधानमंत्री से भी सवाल करते हैं और कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को पिछड़े समुदाय का बताया था तब हम बहुत गौरवान्वित हुए थे. हम उम्मीद करते हैं कि वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जातीय जनगणना की मांग पर विचार करेंगे. उन्होंने तंज भी कसा. नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं करते हैं तो फिर सभा-सम्मेलनों में अपने को पिछड़ा कहने से उन्हें बचना होगा और हम भविष्य में इसका विरोध करेंगे. पिछड़े हैं तो पिछड़ों के हक-हकूक पर उन्हें गंभीर होना होगा. 

यूं बिहार में जदयू और भाजपा में लुकाछुपी का खेल चल रहा है. तलवारें म्यान से बाहर आती हैं. तलवारें भांजी जाती हैं और फिर म्यान में वापस रख दी जाती हैं. लंबे समय से ऐसा हो रहा है. कइयों को लगता है कि गठबंधन बस टूटा ही टूटा लेकिन ऐसा होता नहीं है. मणिपुर में जदयू विधायकों ने पाला बदल कर भाजपा की सदस्यता ली थी, तब से इसी तरह का खेल चल रहा है. दोनों दलों के प्यार और तकरार को देख कर वह शेर याद आता है-कैसा परदा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं, साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं. बयान दिए जाते हैं, बयानों का जवाब दिया जाता है. फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है और जो विपक्ष सरकार गई-सरकार गई का राग अलापते रहते हैं वे फिर से किसी नए बयान के इंतजार में जुट जाते हैं. बीच-बीच में एनडीए के सहयोगी दल हम और वीआईपी भी आंखें तरेरती है. लेकिन जीतनराम मांझी को भी पता है और मुकेश साहनी को भी कि कुल जमा चार-चार विधायक उनके पास हैं. दोनों नेताओं ने अगर एनडीए से नाता तोड़ने की कोशिश की ते उनके विधायक कभी भी पाला बदल सकते हैं. वैसे भी मुकेश साहनी के तीन विधायक तो आयातित हैं. वे भाजपा के सिपाही रहे हैं और वीआईपी के चुनाव-चिन्ह पर चुनाव लड़ कर विधायक बने हैं. इसलिए दोनों छोटे दलों पर खतरा ज्यादा है क्योंकि सत्ता के साथ बने रहना विधायक ज्यादा पसंद करेंगे, पार्टी की बजाय. इसलिए इनके नरम-गरम की परवाह न तो भाजपा को है और न जदयू को. 

लेकिन जदयू जरूर भाजपा की परेशानी बढ़ा रहा है. जदयू सामाजिक न्याय का पक्षधर रहा है. नीतीश कुमार और जदयू ने तीन मुद्दों पर भाजपा से अलग लाइन ले रखी है. भाजपा का अपना एजंडा है लेकिन नीतीश कुमार के रहते भाजपा अपने एजंडे को बिहार में तो लागू नहीं ही करा सकती है. भाजपा की मजबूरी बिहार में यह है कि तमाम दावों के बावजूद उसके पास भी जो चेहरा है वह नीतीश कुमार का ही चेहरा है इसलिए नीतीश कुमार जनसंख्या नियंत्रण कानून हो या फिर धर्मानंतरण या फिर जातीय जनगणना या पेगसस, भाजपा को घेरते हैं. जनसंख्या नियंत्रण कानून पर नीतीश कुमार ने साफ-साफ भाजपा को संदेश दिया, यह कदम सही नहीं है. जनसंख्या कानून से नहीं रोकी जा सकती, लोगों को जागरूक करना होगा और महिलाओं को शिक्षित करना होगा, तभी इस मसले को सुलझाया जा सकता है. उन्होंने इसके लिए चीन की मिसाल भी दी थी. लेकिन जदयू अब भाजपा और केंद्र सरकार को जातीय जनगणना के मुद्दे पर लगातार घेर रही है. 

जातीय जनगणना को लेकर बिहार में सियासी कोहराम मचा है. केंद्र सरकार ने जनगणना शुरू करने का एलान किया है. कायदे से तो जनगणना पूरी हो जानी चाहिए थी लेकिन कोरोना की वजह से इसमें देर हुई. केंद्र सरकार ने कहा है कि जनगणना के दौरान एससी-एसटी के लोगों की भी गणना की जाएगी. लेकिन जदयू जातीय आधार पर जनगणना की मांग कर रहा है. यानि कि जनगणना के दौरान सरकार इसका भी रिकार्ड रखे कि किस जाति के कितने लोग हैं. फिर जातिवार लोगों का डेटा सार्वजनिक किया जाए. नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से मांग की फिर वे बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री से मिले और उनसे कहा कि वे जाति के आधार पर जनगणना कराएं. नीतीश के मुताबिक हमारा मानना है कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए. बिहार विधान मंडल ने 18 फरवरी, 2019 और फिर बिहार विधान सभा ने 27 फरवरी, 2020 को सर्वसम्मति से इस आशय का प्रस्ताव पास कर इसे केंद्र सरकार को भेजा था. केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए. 

नीतीश का मानना है कि जातीय जनगणना होने से जो पिछड़े तबके और गरीब गुरबा लोग हैं उन्हें भी कई सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा. भाजपा का रुख इससे अलग है. कुशवाहा ने कहा कि भाजपा अलग पार्टी है और जदयू अलग पार्टी. गठबंधन में भले ही हम एक साथ हैं लेकिन हमारी राय अलग-अलग हो सकती है. है. 

जातीय जनगणना के मुद्दे पर फिलहाल भाजपा और जदयू में तलवारें तनी हुईं हैं. भाजपा नेताओं का कहना है कि किसी भी कीमत पर जातीय जनगणना नहीं होगी. भाजपा विधायक हरि भूषण ठाकुर ‘बचौल’ ने साफ किया कि बिहार में जातीय जनगणना नहीं होने दी जाएगी. भाजपा विधायक ने कहा कि जातीय जनगणना अब तक देश में नहीं हुई है और अगर शुरू से कोई व्यवस्था बनी हुई है तो इसमें बदलाव का सवाल ही नहीं है. हरी भूषण ठाकुर ने कहा कि जनसंख्या को लेकर नीति निर्धारण करने वाले लोग बेवकूफ नहीं थे. उन्होंने बहुत सोच समझकर जातीय जनगणना की इजाजत नहीं दी.  जातीय जनगणना से समाज में दूरी बढ़ेगी और इससे देश के टुकड़े हो जाएंगे. वैसे इस मुद्दे पर विपक्ष का साथ भी नीतीश कुमार को मिल रहा है. राजद सहित दूसरे दलों ने जातीय जनगणना कराए जाने को वक्त की जरूरत बताया. भाजपा के नेता भले नीतीश कुमार का विरोध कर रहे हैं लेकिन सच यह भी है कि उनका विरोध बहुत दूर तक नहीं जा पाएगा. क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार भाजपा की नहीं भाजपा नीतीश कुमार की बैसाखी पर खड़ी है. केंद्रीय नेतृत्व भी इस सच को जानता है इसलिए भाजपा के कद्दावर नेता भी नीतीश कुमार के खिलाफ बयान देने से परहेज करते हैं. जातीय जनगणना हो या धर्मांतरण या फिर जनसंख्या नियंत्रण, भाजपा नीतीश कुमार पर दबाव बनाने की कोशिश में है लेकिन उसे भी पता है कि नीतीश कुमार उसके दबाव में कम ही आते हैं. 

 

 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :