कोलकता में ठेले की चाय पीते थे एसपी

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

कोलकता में ठेले की चाय पीते थे एसपी

सतीश जायसवाल 

हिन्दी साहित्य में भी, ग़ालिब की रुमानियत थपकी देती है तब चाय के लिये रास्ते खुलते हैं.अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी का प्रेम उस रुमानियत से कम नाज़ुक कहां था ? उनके बारे में मशहूर है कि अमृता प्रीतम साहिर की पी हुई सिगरेटों के टोटे अपने पास सम्हाल कर रखती थीं.तो, साहिर के पास भी चाय का वह प्याईला रहा जिसमें कभी अमृता ने चाय पी थी.

शिमला  की किसी बरसती शाम का, कृष्णा सोबती का संस्मरण है -- और घंटी  बजती रही.  उनके इस संस्मरण में मैं गिनती करता  रहा कि कृष्णा सोबती ने उस शाम में कितनी बार चाय पी ? उनकी वह चाय शिमला की उस बरसती शाम को हद दर्ज़े तक रूमानी बना रही थी.लेकिन आखीर में उस संस्मरण ने रूमान को उदासी में अकेला छोड़ दिया.घण्टी बजती रही लेकिन उस तरफ से किसी      ने फोन नहीं उठाया.क्योंकि अब वो था ही नहीं, उस तरफ जिसे फोन उठाना था .अब तक इस किस्म की उदासियों के साथ तो हमने अकेली शराब की संगत को ही जाना था.हाँ,बाद में हिन्दी में एक उपन्यास भी आया --चाय का दूसरा कप।'' यह दूसरा कप भी कुछ इसी तरह का खालीपन हमारे लिए छोड़ता है.क्योंकि उस दूसरे कप में चाय पीने वाला अब है ही नहीं.अब तो चाय पर कवितायें भी लिखी जा रही हैं.छत्तीसगढ़ के एक कवि हैं -- संजीव बक्शी.उनकी एक कविता है --खैरागढ़ में कट चाय और डबल पान.

खैरागढ़ के आसपास पान की अच्छी खेती होती है.इसलिए आधी चाय के साथ डबल पान वहाँ के चलन में है.लेकिन वैसे भी चाय की चाल एकल नहीं होती,वह संगत में चलती है.कभी सिगरेट की संगत में चली तो, कभी पान के साथ जोड़ बनाकर चली.इधर रामलाल टी स्टाल और बगल में मंसूर पान महल.पान की दुकान साथ ना हो तो चाय का अड्डा सूना-सूना सा लगता है.

और अड्डेबाजी के बिना चाय में मज़ा कहाँ ?

दोस्तों के बीच ''कट चाय'' का एक ज़माना रहा है.जिन दिनों ठेलों-गुमटियों पर हिन्दी के साहित्यकार मित्रों के अड्डे हुआ करते थे वो दिन कट चायके ही थे.कट चाय का मतलब आधी चाय.और आधी चाय का मतलब एक छोटे कप या काँच के छोटे से गिलास में आधी चाय.शायद अभिजात्य के विरुद्ध आम आदमी के लिए लिखने वाले साहित्यकारों की वह एक अपनी मुद्रा भी थी.कुछ-कुछ 

विद्रोही सी.साहित्य के साठोत्तरी दशक में तरह-तरह के आन्दोलनों से जुडी ऐसी कई-कई मुद्राएँ कलकत्ते से चलकर इलाहाबाद तक पहुंच रही थीं.और उनके साथ उनकी तरह की चाय के चलन भी.इलाहाबाद में सतीश जमाली और उनके साथियों की अड्डेबाज़ीत की एक जानी-पहिचानी जगह थी.सिविल लाइन्स में सेन्ट्रल बैंक के सामने वाला चाय का ठेला.तो अमीनाबाद,लखनऊ में ''कंचना'' वह अड्डा थी.''कंचना'' की चाय का नाम इसलिए भी हुआ कि  वहां के एक कवि वह चला रहे थे.

कलकत्ते में (हिन्दी समाचार साप्ताहिक) रविवार के सम्पादक रहे सुरेन्द्र प्रताप सिंह अपने दोस्तों को चाय पिलाने के लिए अक्सर वहाँ, टी बोर्ड के सामने वाले, एक ठेले पर लेकर जाना पसंद करते थे.उस चाय में चाय के साथ,कलकत्ता के मिट्टी वाले कुल्हड़ों का स्वाद भी शामिल होता था.कलकत्ता आकर यहां,भारतीय भाषा परिषद् में ठहरने वाले साहित्यकारों को.नीचे उतरते ही मिट्टी के कुल्हड़ वाली वह चाय अब भी मिल जाती है.थियेटर रोड पर ही.चौरसिया जी की गुमटी वाली दुकान में.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :