इतनी देर कर दी पुलिस ने आते आते

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इतनी देर कर दी पुलिस ने आते आते

फज़ल इमाम मल्लिक
बिहार में इन दिनों इंसाफ की गुहार खूब लगाई जा रही है. पुलिस के मुखिया से लेकर सत्ताधारी दल के नेता से लेकर मंत्री तक इंसाफ की दुहाई देकर मुंबई पुलिस को लगातार कठघरे में खड़ा करते रहे हैं. लेकिन बिहार में बिहार की बेटी को न्याय दिलाने में पुलिस कितनी तत्पर है इसकी बानगी देख-सुन कर सिहरन होती है और न्यायिक व्यवस्था सवालों में खड़ी हो जाती है. मुंबई पुलिस पर दो महीने तक मुकदमा दर्ज नहीं करने का आरोप लगाने वाली बिहार पुलिस तो मुकदमा दर्ज होने के दस साल बाद पीड़िता के घर बयाने लेने के लिए जाती है. पता नहीं पुलिस महानिदेशक को अपनी पुलिस की इस कार्यशैली पर शर्म आई या नहीं, लेकिन हमें तो आई.  जान की बाजी लगाने वाले और आम आदमी की औकात की बात करने वाले पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय की चुप्पी सवालों में है और लोग सुशासन की दुहाई दे रहे हैं. सुशासनकाल की कथा है यह. चमकदार बिहार नीतीश कुमार ने बना डाला था, तब की कथा है. जंगलराज के बाद की कथा. लेकिन जंगलराज में तो ऐसी कथा न सुनी गई न देखी गई. लेकिन सुशासनकाल में नीतीश सरकार और पुलिस का लिजलिजा चेहरा तब भी देखने को मिला था जब आधी रात में बारह साल की एक बच्ची नवारुणा का अपहरण कर लिया जाता है, सरकार और पुलिस का अमानवीय चेहरा तब भी देखने को मिला था जब मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड में बच्चियों के साथ दरिंदगी हुई और पुलिस व नीतीश कुमार अपराधियों को बचाने में लगे रहे और अब फिर से बिहार शर्मसार हुआ और न्याय शर्मिंदा. सुशासन की बात छाती फाड़ कर कहने वाली नीतीश कुमार की सरकार पंद्रह साल से गरीबों, पिछड़ों और वंचितों को किस तरह से न्याय देती होगी यह इसकी बानगी भर है. बिहार में पुलिस का यह चेहरा क्रूर और संवेदनहीन है और सरकार का भी.

इत्तफाक यह है कि यह घटना भी उसी मुजफ्फरपुर शहर का ही है जहां पुलिस और सरकार पीडितों को न्याय दिलाने में नाकाम रही. मुजफ्फरपुर के अखाड़ा घाट में रहने वाली सत्रह साल की नाबालिग के साथ दबंगों ने बलात्कार किया. पीड़िता का परिवार दस साल तक न्याय के लिए दर-दर की गुहार लगाता रहा लेकिन क्या पुलिस और क्या सरकार किसी ने उनकी नहीं सुनी. उन्हें हर दर से मायूसी हाथ लगी. लेकिन दस साल बाद पुलिस को केस की याद आई और वह पीड़िता के घर पहुंची तब तक बहुत देर हो चुकी थी. घटना 2010 की है और दस साल बाद पुलिस पीड़िता के घर जांच के लिए पहुंची. सुशासन की जय हो.

अखाड़ाघाट रोड इलाके में दस साल लड़की के साथ दुष्कर्म के अलावा आरोपी ने बालिका के साथ दुष्कर्म करने के अलावा जानलेवा हमला भी किया था. पुलिस ने बलात्कारी को बचाने के लिए मुकदमा तक दर्ज नहीं किया, लेकिन कोर्ट की दखल के बाद 22 अगस्त 2010 को नगर थाने में बलात्कार का मामला दर्ज हुआ .

धारा 376 के साथ ही जानलेवा हमले का भी मुकदमा दर्ज किया गया था. लेकिन पुलिस ने किसी तरह की कार्रवाई की. पीड़िता और उसके परिजन कार्रवाई के लिए पुलिस और प्रशासन के चक्कर काटते रहे. लेकिन पुलिस ने उस फाइल को आगे करने की बजाय रद्दी की टोकरी में डाल दिया. हाल ही में नीरज कुमार मुजफ्फरपुर के एसपी बने तो उन्होंने पुराने केसों की फाइलों की पड़ताल की. मुकदमों की समीक्षा करने लग गए. शायद इस तरह के अफसरों को काम करने का जनून है या सिरफिरे ठहरे. इसलिए मामला उनके हाथ लगा तो वे चौंके और फिर आनन-फानन में जांच शुरू की गई. पुलिस अधीक्षक ने बलात्कार पीड़िता का बयान लेने के आदेश दिए. बयान लेने के लिए जांच अधिकारी इंस्पेक्टर राजपत कुमार को वहा भेजा गया. काफी मशक्कत के बाद दारोगा की पीड़िता के पिता से मुलाकात हुई. इंस्पेक्टर राजपत कुमार ने दस साल पहले हुए बलात्कार की जांच की बात उनसे बताई तो पीड़िता के पिता पुलिस के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और कहा हमें बख्श दीजिए. वापस चले जाएं. अब हमें न्याय नहीं चाहिए. उनकी बेटी की शादी हो चुकी है. इस केस के चक्कर में उसका बसी-बसाई जिंदगी उजड़ जाएगी. जो आरोपी था वह भी कब इलाके को छोड़कर जा चुका.

पीड़िता के पिता ने कहा कि अब आप किसे गिरफ्तार करेंगे. आप अब केस को ही छोड़ दें और इसे खत्म कर दें. पिता की खरी-खरी सुन कर पुलिस अधिकारी लौट गए. बताया जा रहा है कि अब इस केस की साक्ष्य की कमी के आधार पर क्लोजर रिपोर्ट लगाने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए केस डायरी को फाइनल कर दिया गया है. नवारुणा कांड के समय तो अपने गुप्तेश्वर पांडेय ही आईजी थे, 2010 में भी वे मुजफ्फरपुर में थे या नहीं कहा जा सकता, लेकिन कलंक तो उनकी पुलिस पर ही लगा है.


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