सुनीता झा को जानते हैं आप

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सुनीता झा को जानते हैं आप

आलोक कुमार

दरभंगा.और वह आज सहायक पुस्तकाध्यक्ष के रूप में 37 साल तक काम करने के बाद सेवानिवृत्त हो गयीं.मारवाड़ी महाविघालय में सुनीता झा का पर्दापण 31.01.1984 को हुआ था. महाविघालय के प्रधानाचार्य डॉ0 श्याम चन्द्र गुप्त ने श्रीमती सुनीता झा, के छिपे हुए व्यक्तित्व के बारे में विस्तृत जानकारी  विदाई समारोह के दौरान दी.


इस कॉलेज का प्रधानाचार्य होने के नाते डॉ0 श्याम चन्द्र गुप्त ने श्रीमती सुनीता झा, के छिपे हुए व्यक्तित्व के बारे में कहा कि इनके विदाई समारोह में आप सभी को परिचित कराता हूँ.श्रीमती झा बहुत सालों से हमारे कॉलेज के सबसे जिम्मेदार व्यक्ति रहीं हैं और आपने एक अच्छे कर्मचारी होने की सभी जिम्मेदारियों का पूरी प्रतिबद्धता से पालन की है. मुझे आज अपने कॉलेज के इतने होनहार कर्मचारी कि विदाई का बहुत दुख है हालांकि, नियम और भाग्य को बदला नहीं जा सकता. 'आप और आपका कठिन परिश्रम सदा हमारे दिलों में रहेगा'. भगवान के आशीर्वाद से आपकी सभी व्यक्तिगत आकांक्षाएं पूरी हों.उन्होंने कहा कि  सेवानिवृत्ति का मतलब आपके सक्रिय जीवन का अंत नहीं है, बल्कि आप वह सभी चीजें कर सकते हैं, जो आप करना चाहते हैं. सेवानिवृत्ति के लिए बहुत- बहुत शुभकामनाएं. आप कड़ी मेहनत के प्रतीक हैं.पुनः सम्पूर्ण महाविद्यालय परिवार आपके स्वस्थ, समृद्ध, दीर्घायु और खुशहाल जीवन की कामना करते हैं.


अपनी मां सुनीता झा के बारे में प्रीति पीटर ने कहा कि एक लाइब्रेरियन और सहायक पुस्तकाध्यक्ष पद पर रहते मां ने सात पुस्तकें लिखी और पुस्तकालय को समर्पित कर दीं.आज आपने मारवारी महाविघालय से मान -सम्मान के साथ सेवानिवृत्त हुई हैं.आप रिटायर हैं मगर टायड नहीं हैं.आज से तो आपको महाविघालय की जिम्मेदारी से मुक्त हो गई लेकिन अब हम चार भाई -बहनों की परीक्षा शुरू हो गई है.  आप हमलोगों आशीर्वाद दीजिए कि हम सब आपकी तरह ही कर्तव्य पारायण सिद्ध हों.आपकी हर उम्मीद को पूर्ण कर सकें.आपकी अभिलाषा सदैव हमारी खुशहाली में निहित रही है.

आज ईश्वर से हम भी प्रार्थना करते  हैं  कि आपने  जटिल राहों से गुजरते हुए जितनी मुश्किलों का सामना किया है ,अब  स्वस्थ और प्रसन्न होकर हम सबके साथ समय बितायें और अपनी लेखनी को आगे बढ़ाएं मां आपने इतना कुछ दिया है जिस ऋण को चुकाना तो मुश्किल है लेकिन इतना अवश्य कहूंगी कि हम सब आपको सदैव अपना आदर्श मानते आए हैं और मानते रहेंगे . हम धन्य हैं कि हमने माता के रूप में आपको पाया.मंजिल तो मिल गई है लेकिन अभी मीलों है चलना.

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