बहुत खरनाक है टीबी ,इससे बच कर रहें

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बहुत खरनाक है टीबी ,इससे बच कर रहें

आलोक कुमार

पटना. भारत में 2019 में ट्यूबरक्यूलॉसिस (टीबी) के 24 लाख केस सामने आए.इतना ही नहीं, 79,144  लोगों की टीबी से मौत हुई.विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमानों की तुलना में यह संख्या काफी कम है. हर तिमाही में लगभग 20,000 लोगों की मौत टीबी से होती है.इसकी तुलना में कोविड-19 से पिछले साढ़े तीन महीनों में भारत में लगभग 15,000 लोगों की मौत हुई है.

2018 के टीबी मरीजों के आंकड़े देखें तो 2019 में 11 फीसदी केस बढ़े हैं.डब्ल्यूएचओ ने 26.9 लाख टीबी मरीजों का अनुमान लगाया था, भारत के आंकड़े उसके नजदीक है.अनुमानित आंकड़ों और आधिकारिक आंकड़ों में यह अंतर दर्शाता है कि लाखों केस मिसिंग हैं.टीबी प्रोग्राम के तहत ये मरीज छूट गए हैं.



विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 4.4 लाख मौतों का किया था अनुमान.टीबी पर जारी एक वार्षिक रिपोर्ट में सामने आया है कि 2017 में लगभग 10 लाख टीबी मरीजों का डाटा एकत्र नहीं हो पाया था.वहीं इसमें इस बार कमी आई है और सिर्फ 2.9 केस ही छूटे हैं. रिपोर्ट दर्शाती है कि 79,144 टीबी मरीजों की 2019 में मौत हुई. हालांकि यह आंकड़ा भी डब्ल्यूएचओ के अनुमान से बहुत कम है. डब्ल्यूएचओ ने 4.4 लाख मौतों का अनुमान लगाया था.निजी स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र के साथ अधिक सम्पर्क और अन्य पहलों के चलते आंकड़ों में आई है. अधिकारियों ने बताया कि 2019 में 24.04 लाख टीबी मरीजों की लिस्टिंग की गई और इस लिहाज से इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 14 फीसदी बढ़ोतरी हुई है.वहीं निजी क्षेत्र में करीब 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अनिवार्य अधिसूचना नीति, निजी प्रदाता सहायता एजेंसी (PPSA) कार्यक्रमों की शुरुआत और निजी प्रदाताओं को प्रोत्साहन वृद्धि के कारण आंकड़ों के कलेक्शन में बढ़ोत्तरी हुई है.टीबी ट्रीटमेंट सर्विस के कारण टीबी मरीजों के इलाज में वृद्धि हुई है.2018 में जहां 69 फीसदी मरीजों को इलाज मिल सका वहीं 2019 में इसका आंकड़ा 81 फीसदी रहा. हर टीबी मरीज की एचआईवी जांच जहां 2018 में 67 फीसदी थी, वहीं 2019 में यह बढ़कर 81 फीसदी हो गई.



रिपोर्ट से सामने आया है कि आधे मरीज सिर्फ पांच राज्यों में सामने आए. उत्तर प्रदेश के 20 फीसदी, महाराष्ट्र से 9 फीसदी, मध्य प्रदेश से 8, राजस्थान से 7 और बिहार से 7 फीसदी टीबी के मरीज मिले है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार 2025 तक देश से टीबी से मुक्त करा लेगी. यह लक्ष्य वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले ही पूरा कर लिया जाएगा.

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि महत्वाकांक्षी लक्ष्य के अनुरूप कार्यक्रम का नामकरण संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) से बदलकर राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) कर दिया गया है.राज्य टीबी सूचकांक पर अंक के हिसाब से 50 लाख से ज्यादा आबादी वाले राज्यों में गुजरात, आंध प्रदेश और हिमाचल प्रदेश टीबी नियंत्रण के मामले में टॉप पर हैं.वहीं 50 लाख से कम जनसंख्या वाले टॉप राज्य त्रिपुरा और नगालैंड हैं.दादर एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले केंद्र शासित प्रदेश चुने गए हैं. हर्षवर्धन ने कहा कि इस रैंकिंग से सभी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए प्रोत्साहित होंगे.


डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि इस वर्ष की मुख्य विशेषता यह है कि पहली बार केंद्रीय टीबी डिविजन (सीटीडी) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा क्षयरोग उन्मूलन के लिए किए गए प्रयासों पर एक त्रैमासिक रैंकिंग जारी की.विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में भारत में 27.9 लाख मरीजों के साथ टीबी से प्रभावित सूची में नंबर एक पर है. 2016 में करीब 4.23 लाख मरीजों की मौत हुई है.विश्व स्वास्थ्य संगठन को टीबी रिपोर्ट 2017 जारी की है. 2025 तक भारत टीबी मुक्त होने की महात्वाकांक्षी योजना है लेकिन इस रिपोर्ट में भारत की स्थिति चिंताजनक है.

दुनिया भर में सबसे ज्यादा टीबी के मामले भारत में है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में सबसे ज्यादा टीबी के मामले भारत, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस और पाकिस्तान में दर्ज किए गए हैं.पिछले साल 27.9 लाख मरीज टीबी से संक्रमित पाए गए. चीन में टीबी संक्रमित मरीजों की संख्या भारत की एक तिहाई है जबकि चीन की आबादी भारत से ज्यादा है. सबसे ज्यादा टीबी के मरीज इंडोनेशिया में हैं. यहां टीबी मरीजों की संख्या 10.2 लाख है. वहीं फिलीपींस और पाकिस्तान में करीब 5 लाख से ऊपर टीबी मरीज हैं.


भारत ने 2025 तक तपेदिक मुक्त होने का लक्ष्य तय किया है. जिसका मतलब है कि भारत को प्रति 1,00,000 पर एक मामले तक आना होगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल भारत में प्रति 1,00,000 पर 211 मामले दर्ज किए जाते हैं.वर्ष 2015 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 25 लाख टीबी के मरीज थे, अब तक करीब 17 लाख मरीजों का ही नोटीफिकेशन हुआ है. करीब साढ़े चार लाख मरीजों की मौत टीबी से होती थी.हालांकि टीबी के नये मरीज और दोबारा इसकी चपेट में आने मरीजों की के उपचार की सफलता दर 2016 के 69 फीसद से बढ़कर 2017 में 81 फीसदी हो गई.

भारत में 2018 में तपेदिक के करीब 5.4 लाख मामले दर्ज ही नहीं हुए. ऐसा तब हुआ हैै जबकि भारत इस बीमारी से सबसे ज्यादा जूझ रहे आठ देशों में शामिल है.विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2018 में तपेदिक मरीजों की संख्या में पिछले साल की तुलना में करीब 50,000 की कमी आई.


साल 2017 में भारत में टीबी के 27.4 लाख मरीज थे जो साल 2018 में घटकर 26.9 लाख रह गए.एक लाख लोगों पर टीबी मरीजों की संख्या साल 2017 के 204 से घटकर साल 2018 में 199 हो गई.डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में 30 लाख टीबी के केस राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम में दर्ज नहीं हो पाते. भारत में 2018 में टीबी के करीब 26.9 लाख लाख मामले सामने आए और 21.5 लाख मामले भारत सरकार के राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत दर्ज हुए.यानी 5,40,000 मामले इसमें जगह नहीं पा सके.

 टीबी के इलाज की कारगर दवा रिफामसिन के हताश करने वाले आंकड़े सामने आए हैं. इस दवा के निष्प्रभावी मामलों की संख्या 2017 में 32 फीसदी थी.यह संख्या 2018 में बढ़कर 46 फीसदी हो गयी.रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य सेवा का बड़ा ढांचा कमजोर है और कर्मचारियों की कमी की समस्या देखने को मिल रही है. इसके अलावा बीमारी का शुरुआती दौर में पता लगने में दिक्कत और सही इलाज का मिलना चुनौती बनी हुई है.खराब रिपोर्टिंग भी एक प्रमुख समस्या है.


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