कैसे हो कोरोना के दौर में पढ़ाई

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

कैसे हो कोरोना के दौर में पढ़ाई

बृजेश वर्मा

कोरोना वायरस की मार्फत फैली कोविड-19 बीमारी ने तरह-तरह की समस्‍याएं पैदा की हैं. इनमें सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण है – स्‍कूली शिक्षा। शिक्षा की इस बदहाली का तीखा असर झुग्‍गी बस्तियों की गरीब आबादी को झेलना पड रहा है.

कोविड ने हर किसी को अपनी तरह से प्रभावित किया है। इस दौरान लोगों के रोजगार छिनने और पूरे देश की अर्थव्यवस्था के बेपटरी होने की बहुत चर्चा हो रही है। सरकारों द्वारा बड़े-बड़े राहत पैकेजों की घोषणाएं की गई हैं जिनमें सारा फोकस इस बात पर है कि बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर कैसे लाया जाए। इस कोशिश में श्रम कानून, पर्यावरण कानून, कोयला खनन से जुड़े नियमों में बदलाव लाये गए हैं. ये बदलाव एक तरफ़ मज़दूर वर्ग का शोषण करते हैं, तो दूसरी तरफ़ उनकी अगली पीढ़ी को गुणवत्तापूर्ण और उनकी आर्थिक क्षमताओं के लायक शिक्षा से वंचित रखकर शोषण के लिए तैयार करते हैं.

लॉक डाउन के दौरान बहुत से प्राइवेट स्कूल ‘ऑन लाइन शिक्षा’ को चालू रखने का प्रयास कर रहे हैं. इससे वे बच्चों के पालकों पर फीस का दबाव बना पाएँगे और अपनी शिक्षा की दुकान को आर्थिक रूप से मजबूत कर पाएँगे। शिक्षा का यह रूप कितना कारगर होगा इस पर एक प्रश्नचिन्ह तो है ही. इस प्रयास में भी सस्ते प्राइवेट स्कूलों में यह सुविधा नहीं है, क्योंकि इन बच्चों के घरों में एंड्राइड फ़ोन की अनुपलब्धता और उसके लिए नेट बैलेंस के लिए पैसे न होना बच्चों की पढ़ाई में एक बड़ी रुकावट है.

‘ऑनलाइन कक्षाओं’ के कारण वंचित समुदाय के बच्चे खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं. वे सुविधा-संपन्न बच्चों से पीछे रह जाएंगे, इस प्रकार के विचार उनमें आ रहे हैं। नतीजे में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है, वे अवसाद में भी जा रहे हैं। केरल के मज़दूर परिवार की बच्ची एंड्राइड फ़ोन नहीं होने की वजह से अपनी ‘ऑनलाइन क्लास’ में शामिल नहीं हो पा रही थी, जिसके चलते उसका आत्महत्या जैसा कदम उठा लेना वंचित समुदाय के बच्चों की मानसिक स्थिति से अवगत कराता है.


अगर हम सरकारी स्कूलों की बात करें तो वहां शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चे मेहनतकश मजदूर वर्ग के हैं जो दलित, आदिवासी, मुस्लिम और विमुक्त व घुमक्कड़ (पारधी, नट, दफाले, कुचबंदिया, कंजर, कलंदर, कालबेलिया आदि) समुदायों से ताल्लुक रखते हैं। ये समुदाय देश की कुल आबादी का बडा हिस्‍सा हैं.

नयी परिस्थितियों ने इन समुदायों को आर्थिक दृष्टि से तोड़कर रख दिया है। दिहाड़ी मजदूरों की मज़दूरी नहीं मिल रही, कबाड़ बीनने वालों को भी सड़कों पर कबाड़ नहीं मिल रहा, जो कबाड़ मिल रहा है उसे कबाड़ी आधी कीमत पर खरीद रहे हैं। लोकल ट्रांसपोर्ट नहीं चल रहे जिससे लोग काम के लिए दूर की जगहों पर नहीं जा पा रहे। इस स्थिति ने लोगों की कमाई ख़तम कर दी है, परिवार फाकाकशी को मजबूर हैं।

पैसों की कमी और बड़ों के पास काम नहीं होने से बच्चों पर कमाई का दबाव पड़ा है। भोपाल शहर की जिन 50 बस्तियों तक हम पहुँच रहे हैं वहाँ स्कूल जाने वाले अधिकांश बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे हाथ में फावड़ा, कुल्हाड़ी, हंसिया टाँगे काम के लिए निकल रहे हैं और उन्हें आँगन या गार्डन की घास काटने, पेडों की छंटाई, पत्तियां साफ़ करने के काम मिल पाते हैं। इनसे 30-40 रूपए की कमाई हो जाती है। कभी-कभी उन्‍हें इतना भी नहीं मिल पाता।


माता-पिता सोचते हैं कि बच्चों के पास दिनभर कोई काम नहीं होता। यहाँ-वहां बैठने-बतियाने से अच्छा है सब्जी ही बेचने चले जाएं। इससे खालीपन भी नहीं होगा और परिवार की आमदनी भी हो जाएगी। बंजारा समुदाय में शराब बनाना पुश्तैनी धंधा है। जो बच्चे स्कूल जा रहे थे, वे अब  शराब बेचने का धंधा कर रहे हैं. 

6-7 साल तक के बच्चे भी कॉलोनियों, घरों और चौराहों पर भीख माँगने जा रहे हैं। कोई अपनी माँ के साथ तो कोई अकेले ही 6-7 किलोमीटर दूर माँगने के लिए निकल रहे हैं। मांगने में जब तक 50 रूपए न हो जाएं, बच्चे घर नहीं लौटते। इस प्रकार 4-6 घंटे तक बच्चे भीख मांगते रहते हैं और घरों से बाहर होते हैं। इस दौरान बहुत बार बच्चे मास्क नहीं पहने होते और बहुत सारे अनजान लोगों से मिल रहे होते हैं.

जिन बच्चों की पढ़ाई छूटी है उनके मानसिक स्वस्थ्य पर भी असर हुआ है। बच्चे चिडचिडे और गुस्सैल हो रहे हैं। कई बच्चों ने अपने आप को चोट पहुँचाने जैसे कदम भी उठाये हैं। जो बच्चे ठीक से पढ़ लेते थे वे अभी अटक.अटक कर पढ़ रहे हैं। बच्चों का खुद पर भरोसा कम हुआ है और आत्मविश्वास भी टूटा है. हमने जब बच्चों को अपने लॉकडाउन के अनुभव लिखने को कहा तो बच्चों के हाथ कांप रहे थे, वे बार-बार पेज फाड़ रहे थे.


एक बच्ची ने अपनी टीचर को चिट्ठी में लिखा कि ‘सॉरी दीदी! आपने मुझे बहुत अच्छे से पढ़ना-लिखना सिखाया, किन्तु अब मैं भूल गयी हूँ. मुझे माफ़ कर दीजिये.‘ इस प्रकार बच्चे आत्मग्लानि में जा रहे हैं. कहीं-कहीं बच्चे लिखना-पढना भूल गए हैं और यह अहसास बच्चों को दुखी कर रहा है.


सरकारी स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया में बड़ी कक्षाओं के बच्चे बहुत ही तनाव से गुजरे हैं. सरकारी स्कूलों में पढने वाले हाईस्कूल और हायर-सेकेंडरी स्कूलों के बच्चों के पास अपने एडमिशन और बोर्ड नामांकन की फीस देने के लिए पैसे ही नहीं हैं। कुछ बच्चों ने किस्तों में पैसे जमा करने की बात कही। बच्चों ने बताया कि उनकी पढ़ाई न रुके इसके लिए मम्मी-पापा ने घरों की चीज़ें,  जैसे-टेलीविज़न, सोने की चेन इत्यादि बेचकर या गिरवी रखकर फीस जमा की है.


जिन बच्चों ने पूरी फीस जमा नहीं की, उन्हें स्कूल की ऑनलाइन पढ़ाई के ग्रुप से जोड़ा नहीं गया, जिससे वे बहुत हीन भावना महसूस कर रहे हैं। बच्चों ने बार-बार शिक्षकों से विनती की कि उन्हें ग्रुप में जोड़ लीजिये, ताकि उनकी पढ़ाई न छूटे, किन्तु टीचर बिलकुल भी सकारात्मक नहीं रहीं। इस सबसे बच्चे भारी मानसिक तनाव से गुजरे हैं। जिन घरों में दो से ज्यादा बच्चे हैं, वहां लड़कियों की पढ़ाई छूटने की प्रबल संभावना है। लॉकडाउन में लड़कियां और विशेष ज़रूरत के बच्चे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

बाल-विवाह बढ़ रहे हैं। शादी में जिन समुदायों में लड़के के परिवार वालों द्वारा लड़की के परिवार को पैसे देने का रिवाज़ है वहां आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता बच्चियों की शादी करवा रहे हैं, ताकि इस स्थिति में कुछ राहत मिल सके। जिन बच्चियों की पढ़ाई अच्छी चल रही थी, उन पर भी शादी का दबाव बढ़ रहा है। कब स्कूल खुलेंगे या आगे शिक्षा का क्या स्वरुप होगा, कैसे वे अपनी पढाई कर पाएंगी? इसको लेकर धुंधलापन बना हुआ है।

मेहनतकश समुदायों के बच्चों को शिक्षा पाने के लिए सरकारी स्कूल ही उम्मीद बने हुए हैं, किन्तु इस दौर में वहां भी फीस जमा कर पाना एक बहुत बड़ी चुनौती बना हुआ है। कुछ बच्चे फीस माफ़ी के लिए शिक्षा अधिकारी के पास भी गए, किन्तु वहां भी उन्हें निराशा ही मिली। इन विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ सकारात्मक प्रयास किये जा सकते हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई में नियमितता बनी रहे और वे पढ़ाई से जुड़ पाएं.


बच्चों ने कहा कि उनके लिए बहुत अलग-अलग तरह की कहानी की किताबें मिलनी चाहिए। इसके लिए उनकी बस्ती में लाइब्रेरी लगनी चाहिए। स्कूलों में भी लाइब्रेरी खुलनी चाहिए जिससे बच्चे स्कूलों में आकर किताबें ले जा सकें। वे अच्छी किताबें पढ़ सकें और पढ़ना न भूलें इससे वे और अच्छे से पढ़ना सीख पायेंगे। मिडिल स्कूल के शिक्षकों को सप्ताह में दो-तीन दिन हमारी बस्ती में आकर नियमों का पालन करते हुए पढ़ाना चाहिए, ताकि बच्चे पढ़ाई से जुड़े रहें और जहाँ बच्चों को मुश्किल आ रही हो, शिक्षकों से पूछ सकें.


बच्चों की ओर से यह भी सुझाव थे कि हम लोगों की पढ़ाई छूट रही है. ऐसे ही चलता रहा तो हमारा स्कूल छूट जाएगा। पांचवी से ऊपर के बच्चों के लिए स्कूल में हैण्डवाश की ठीक व्यवस्था, मास्क की अनिवार्यता और दूरी पर बैठक व्यवस्था के साथ स्कूलों को खोल देना चाहिए. इस दौर में शिक्षा का सबसे ज्यादा नुकसान गरीब बच्चों का ही हो रहा है जो पढ़ाई छूटने की कगार पर खड़े हुए हैं.

अभी सरकारी स्कूलों में एडमिशन के साथ भारी बोर्ड फीस ली जा रही है। सरकारें प्राइवेट स्कूलों से फीस न वसूलने की बातें कर रही हैं, किन्तु सरकारी स्कूल खुद ही इतनी अधिक फीस वसूल कर रहे हैं। सरकारी स्कूलों में बच्चों से कोई भी फीस नहीं ली जानी चाहिए. बच्चों ने कहा कि हर दिन का नेट रिचार्ज बच्चों के मोबाइल पर करवाना चाहिए, ताकि वे ऑनलाइन पढ़ाई कर सकें.(सप्रेस)फोटो डेक्कन हेरल्ड से साभार 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :