मोदी की मुश्किल किसान चुने या थैलीशाह !

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मोदी की मुश्किल किसान चुने या थैलीशाह !

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली. चोरी छिपे अपने कारपोरेट दोस्तों को हर तरह का फायदा पहुंचाने वाले नरेन्द्र मोदी के मुतनाजा (विवादित) जरई (कृषि) कानून के खिलाफ किसानों की तहरीक के तकरीबन चौबीस दिन हो गए हैं. इस दरम्यान कड़ाके की ठंड में दिल्ली बार्डर पर बैठे तकरीबन डेढ दर्जन से ज्यादा किसानों की जानें चली गईं. करनाल गुरूद्वारा के चीफ पैंसठ साल के संत बाबा राम सिंह ने सोलह दिसम्बर को गोली मारकर खुदकुशी कर ली अपने सुसाइड नोट में उन्होंने खुदकुशी की वजह इन काले कानूनों को ही बताया है और कहा कि यह बिल किसानों पर सरकार का जुल्म है. मैं जुल्म बर्दाश्त नहीं कर सकता क्योकि जुल्म सहना और करना दोनों एक जैसे हैं. इसलिए मैं अपनी जिंदगी खत्म करता हूं. इस आंदोलन के दौरान किसानों ने एक दिन की भूक हड़ताल भी कर ली पूरे देश के टोल प्लाजा दिन भर के लिए फ्री कराए. सभी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेटों को मेमोरण्डम सौंपे, कुल मिलाकर सात बार सरकार के साथ बातचीत भी कर ली, लेकिन सरकार में बैठे लोगों खुसूसन गौतम अडानी और मुकेश अंबानी की हिदायत (निर्देश) पर यह कानून बनवाने वाले नरेन्द्र मोदी बार-बार यह कह रहे हैं कि किसानों को गुमराह (भ्रमित) करने की सिजश की जा रही है. उनके वजीर पार्टी के लोग और उनका गुलाम मीडिया किसानों को बदनाम करने के लिए उन्हें कभी खालिस्तानी, कभी पाकिस्तानी, कभी दहशतगर्द, कभी टुकड़े-टुकड़े गैंग तो कभी लेफ्टिस्ट की साजिशों में फंसे होने जैसे इल्जाम लगा रहे हैं. वजीर-ए-आजम जिस तरह किसानों के मसायल से निपट रहे हैं उससे बिल्कुल साफ है कि वह यह मसला हल करना ही नहीं चाहते. हल करेंगे भी कैसे, किसानों का कहना है कि उन्हें इन तीनों कानूनों की वापसी के अलावा कोई और बात सुननी नहीं है तो दूसरी तरफ सरकार अडानी और अंबानी के दबाव में किसी भी कीमत पर कानून वापस लेने को तैयार नहीं है.

वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी बार-बार यह कह रहे हैं कि किसानों को गुमराह (भ्रमित) किया जा रहा है. अगर गुमराह किया जा रहा है तो आप और आपकी एजेंसियां क्या कर रही हैं. जो लोग किसानों को गुमराह कर रहे हैं अगर आप ईमानदार हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई कराइए. आपको तो पता होना चाहिए कि कौन लोग हैं जो किसानों को गुमराह कर रहे हैं और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो क्या सिर्फ अपने कारपोरेट दोस्तों को पूरा देश सौंपने के लिए गद्दी पर बैठे हैं. बरेली में कही गई अपनी बात पर अमल कीजिए, फकीरी का मुजाहिरा करिए, झोला उठाइए और चल दीजिए. अगर आप कड़ाके की सर्दी में चौबीस घंटे सड़क पर पड़े देश के लाखों किसानों की बात सुनने को तैयार नहीं हैं तो आपको मुल्क का वजीर-ए-आजम बने रहने का भी हक हासिल नहीं है.

चूंकि मोदी के लाए हुए तीनों कानून सिर्फ और सिर्फ अडानी और अंबानी के हक में हैं. इसलिए वह उनकी खूबियां भी नहीं बता पा रहे हैं. बार-बार एक ही रट लगाए हैं कि यह बिल किसानों के लिए बहुत फायदे के हैं. इससे अच्छे कानून आज तक किसानों के लिए कोई सरकार नहीं लाई इससे किसान मालामाल हो जाएंगे वगैरह-वगैरह. हालांकि वह गलतबयानी कर रहे है. अगर आसान अल्फाज में कहा जाए तो मोदी के पहले कानून में यह कहा गया है कि अब देश में जरूरी अशिया (आवश्यक वस्तु) से मुताल्लिक पुराना कानून नहीं चलेगा और कोई भी शख्स अपनी मर्जी और सलाहियत (क्षमता) के मुताबिक नए कानून के मुताबिक जितना सामान चाहे स्टोर कर सकता है. दूसरा कानून मंडियों से मुताल्लिक है कि अब मंडियों में ही काश्तकार अपना सामान बेचने के लिए पाबंद नहीं होंगे, मंडियों के बाहर भी सनअतकार या व्यापारी किसानों से उनकी पैदावार खरीद सकेंगे. किसानों का यही कहना है कि आपने जरूरी अशिया स्टोर करने के कानून को खत्म कर दिया तो फसल पर अडानी जैसे लोग लाखों-करोड़ों टन गल्ला सस्ता खरीद कर अपने गोदामों में भर लेंगे और बाद में जब देश को जरूरत होगी तो यह लोग वही गल्ला तीन-चार गुनी कीमतों पर फरोख्त करेंगे इन्हें कौन रोकेगा?

मोदी का जो कानून यह कहता है कि किसान अपनी उपज को सिर्फ मंडी में ही फरोख्त करने के लिए पाबंद नहीं होगा, मंडी के बाहर भी व्यापारियों को बेच सकेंगे. मंडी के बाहर के व्यापारियों के लिए कानून में न तो ऐसी कोई शर्त है कि उनका रजिस्ट्रेशन होगा या नहीं होगा. अगर वह किसानों की उपज खरीद कर आधे या उससे कम या ज्यादा पैसे बाकी करके भाग जाएंगे तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी? तीसरे वह अगर मंडी के बाहर खरीदारी करेंगे तो किसानों को उनकी उपज के लिए सरकार के जरिए तय किए गए मिनिमम सपोर्ट प्राइस के मुताबिक भुगतान करेंगे या नहीं करेंगे? इसीलिए किसानों का बुनियादी मतालबा यह था कि सरकार मिनिमम सपोर्ट प्राइस को कानूनी हैसियत दे. इसके लिए सरकार किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हुई तो किसानों ने अपना मतालबा तब्दील करके यह कह दिया कि सरकार तीनों कानून वापस ले.

मोदी का तीसरा किसान कानून कांट्रैक्ट फार्मिंग या ठेके पर खेत लेने का है. व्यापारियों, धन्ना सेठों और कारपोरेट घरानों को यह छूट दी गई है कि वह फसल बोने से पहले काश्तकारों की जमीन कांट्रैक्ट यानी ठेके पर ले लें. जाहिर है इसमें छोटे किसान ज्यादा फंसेंगे. उनका यह भी नुक्सान होगा कि अगर यह लोग किसानों की जमीन आलू बोने के लिए दस हजार रूपए बीघा लेते हैं और बाद में आलू की कीमतें बाजार में तीन गुनी हो जाएं तो क्या खेत किराए पर लेने वाला काश्तकार को कुछ पैसे ज्यादा देगा? हरगिज नहीं देगा. दूसरा नुक्सान यह होगा कि किराए पर जमीन कोई भी व्यापारी एक साल के लिए नहीं लेगा. वह कम से कम पांच या दस साल के लिए लेगा. इतनी लम्बी मुद्दत के लिए किसान एक तय शुदा शरह (दर) पर जमीन क्यों देने लगा. पैदावार का मामला तो यह हे कि किसानों की हर तरह की पैदावार की कीमत में हर साल इजाफा होता रहता है. फिर इस कानून में मोदी ने यह बात क्यों नहीं शामिल की कि ठेके पर ली गई जमीन के किराए में हर साल बीस से चालीस फीसद तक इजाफा किया जाएगा. यह इसलिए नहीं शामिल किया कि वह हर हाल में किसानां का गला दबाकर अपने कारपोरेट दोस्तों का भला करना चाहते हैं और दावा यह कि वह तो किसानों के भले के लिए कानून लाए हैं अगर किसानों ने आपसे अपने भले के लिए कभी कानून लाने के लिए कहा ही नहीं बल्कि मना कर रहे हैं तो आप कौन होते हैं जबरदस्ती उनके लिए कानून बनाने वाले.जदीद मरकज़

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