यह हेड लाइन है आंदोलन कर रहे किसानो के अख़बार ट्राली टाइम्स की .जो गुरमुखी और हिंदी में भी है . ट्रॉली टाइम्स का पहला संस्करण बृहस्पतिवार रात छापा गया, और देर रात उसे सिंघू और टिकरी बॉर्डर पहुंचा दिया गया. शुक्रवार सुबह उसे आंदोलनकारी किसानों के बीच बांट दिया गया.इसके प्रकाशन में लगी टीम के मुताबिक दो हजार प्रतियां प्रकाशित करने में बारह हजार रूपये लगे जो किसानो ने ही दिया .
वर्ष 1988 में जब बोट क्लब पर पांच लाख किसानों का धरना चल रहा था तब जनसत्ता में खबरों की जगह कम पड़ गई .खुद मैं ही आंदोलन की सात आठ खबर लिखता .इसे देखते हुए जनसत्ता के संपादक प्रभाष जोशी ने किसान आंदोलन के लिए दोपहर का जनसत्ता निकाल दिया था जो सिर्फ किसान आंदोलन की खबर देता था .एक वो दौर था आज किसान आंदोलन को मीडिया का बड़ा हिस्सा ही बदनाम करने में जुट गया तो धरने पर बैठे किसानों ने ट्राली टाइम्स अखबार निकाल दिया है.अब मीडिया अपना अखबार खुद निकाले खुद पढ़े .किसान अपना अखबार पढ़ रहा है .पत्रकार अंबरीश कुमार की फेसबुक पोस्ट से
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