मालगुडी डेज़ वाली कस्तूरी अक्का नहीं रहीं

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मालगुडी डेज़ वाली कस्तूरी अक्का नहीं रहीं

डा उषारानी राव

पिछले दिनों दोड्डमने की सर्वेसर्वा कस्तूरी अक्का का निधन हो गया. यह समाचार अंदर तक उदास कर गया. पिछले वर्ष आपसदारियाँ समूह के साथ अगुंबे प्रवास  के दौरान उनके यहां ठहरने का अवसर मिला था. उनके दो दिन के आत्मीय आतिथ्य से पूरे परिवार से घनिष्ठता हो गई थी. उनका स्नेहिल व्यक्तित्व एवं बार-बार चाय,कॉफी नाश्ता आदि के आग्रह करने की शैली मन मस्तिष्क में बसी है.उनकी जीवटता सरलता एवं सौम्यता अविस्मृत कर देने वाली है. कस्तूरी अक्का को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं. उन्हें पूरी तरह जानने के लिए स्मृति में कैद इस यात्रा के बारे में और मालगुडी डेज धारावाहिक से दोड्डमने की लोकप्रियता के इतिहास को जानना आवश्यक है.

पिछले वर्ष आपसदारियाँ समूह की भ्रमण श्रृंखला के तहत आदरणीय सतीश जायसवाल के आमंत्रण पर समूह के साथ जब मैं दोडुमने पहुंची तो आश्चर्यचकित रह गई. मुख्य द्वार से अंदर जाने पर बीचोबीच विशाल आंगन और चारों तरफ बने हुए कमरों को देखकर भारतीय गांव के गृह निर्माण शैली का सुखद एहसास हुआ. यह भवन अद्वितीय काष्ठकारी से मन मोह रहा था. वहाँ दिल्ली ,छत्तीसगढ़ और पटना से साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र से चर्चित लेखकों की टीम पहले ही पहुंची हुई थी. पटना के वरिष्ठ कथाकार विकास कुमार झा जी ने हम सबका परिचय घर के लोगों से कराया. हम सबको वहां पहुंचने में रात हो चुकी थी. मंगलूर( मलनाड) शैली का भोजन किया हमने. इसके बाद एक छोटी सी बैठकी हुई.

अगले दिन सुबह कस्तूरी अक्का के हाथ  की कॉफी पीकर हम जैसे ही घर के बाहर  सड़क पर आए  तो आसमान से सफेद बादल सड़क पर उतर कर हमारा स्वागत कर रहा था . अद्भुत नजारा था. अभी हम सब बादलों के पार जाने की कोशिश में थे कि झमाझम बारिश होने लगी. ऐसा त्वरित जलपात कि क्षण भर में भिगो दें. हम दोडुमने लौट आये. वर्षा की बूंदों की धार की ध्वनि के बीच विकास कुमार झा जी ने 'वर्षावन की रूपकथा' के कुछ अंशों को सुनाया. यह उपन्यास अगुंबे के सामाजिक जीवन, वहां के प्राकृतिक सौंदर्य तथा विशेष रुप से अगुंबे का मालगुडी के रूप में चर्चित होना साथ ही दोड्डमने और कस्तूरी राव का इससे जुड़ना आदि सारे विषयों पर अत्यंत रोचक और सरल-सहज भाषा में लिखा गया है. मेरे लिए यह हैरान कर देने वाला था कि एक लेखक उत्तर भारत से आकर

दक्षिण भारत के छोटे से गांव के प्रति अभिभूत होकर उसके सामाजिक आर्थिक राजनीतिक जीवन शैली को अत्यंत संतुलित और रोचकता के साथ रेखांकित कर सकता है. हमारे इस समूह 

आद.ब्रजेन्द्र त्रिपाठी,शम्भूनाथ शुक्ल,डॉ0 धीरेन्द्र बहादुर सिंह,डॉ0 सिद्धेश्वर सिंह,

डॉ0 विजय शर्मा, मृदुला शुक्ला,डॉ0 शीला तिवारी,विकास कुमार झा ,सतीश जायसवाल जी और मैं. शाम की बैठकी में कविताओं की सांझ जैसे अगुंबे के कला सौंदर्य में डूब जाने जैसा था. उस घने अरण्य में बसे कोबरा सेंटर का भ्रमण भी अपने आप में रोमांचक रहा. लगातार वर्षा होने वाले इस स्थान पर भींगते हुए सर्प वन को घूमना और वापस लौटते हुए जोंक के द्वारा हम सभी के रक्त का आस्वादन भी यादगार है.

पिछले पच्चीस वर्षों से बेंगलुरु में रहते हुए भी अगुंबे की ऐसी यात्रा एवं कस्तूरी अक्का का ऐसा आतिथ्य अन्यत्र दुर्लभ लगा. कस्तूरी अक्का एवं पूरे परिवार के आत्मीय स्वभाव से  लिपटे हुए दोडुमने

का इतिहास बहुत पुराना है. डेढ़ सौ साल पहले बना यह दोडुमने मालगुडी डेज धारावाहिक के जरिए चर्चित हुआ.

चिकमंगलूर जिले के गांव अगुंबे में बना हुआ यह विशाल गृह अपने आप में एक आश्चर्य है. कहते हैं 1807 में वासुदेव राव जी ने बनवाया था .अठ्ठाईस कमरों वाला  यह बड़ा घर में पिछले कई दशकों से देश- विदेश के पर्यटकों का मन मोह रहा है. वर्ष 1939 में जवाहर लाल नेहरू जी और मैसूर के दीवान मिर्जा इस्माइल

भी अतिथि रह चुके हैं. इस घर की वास्तुकला की विशिष्टता यह है कि घर के अंदर के विशाल आंगन से आकाश को निहारा जा सकता है. सदैव धूप रोशनी और हवा का संचार घर के सभी कमरों को जीवंत रखता है. नागराज वस्तारे इस घर के वास्तु विशेषज्ञ थे.

कस्तूरी अक्का के पति जयंतराव की मृत्यु के बाद कस्तूरी अक्का ही देखभाल करती हैं. वे बताती हैं कि अस्सी के दशक में प्रख्यात निर्देशक शंकरनाग टीवी,सीरियल मालगुड़ी डेज के लिए अगुंबे आए, तो इस घर को देखते ही रह गए. तुरंत उन्होंने इस घर को धारावाहिक के लिए चयन किया. मालगुड़ी वास्तव में लेखक आर. के. नारायण का एक काल्पनिक औपन्यासिक गांव था, जिसमें 'स्वामी एंड फ्रेंड्स' कहानी को इसी दोड्डमने में छायांकित की गयी थी. इस कहानी के द्वारा हमारी सांस्कृतिक विशेषताओं की विविधता देखने को मिलती है. यह हम सब जानते हैं कि इस धारावाहिक ने विश्व स्तर पर प्रसिद्धि पायी . अगुंबे का दोडुमने और मालगुड़ी डेज़ सामाजिक सौंदर्य की वृद्धि में अनूठे हैं.

कस्तूरी अक्का के अनुसार "व्यवसायिकता एवं विज्ञापन से दूर दोड्डमाने में हर वर्ष बारह सौ के करीब अतिथि ठहरते हैं." उन्होने कभी भी रहने के लिए किराया और खाने के लिए कीमत निश्चित नहीं किए. अतिथि अपनी इच्छा अनुसार उनको जो देते हैं, ले लेती हैं. पर्यटक अगुंबे के इस विशिष्ट बड़े घर के रहन, खान-पान का आनंद उठाते हैं. प्रकृति प्रेमियों के लिए उनके द्वार सदैव खुले रहते हैं. मलनाड शैली का भोजन जिसमें अनेक प्रकार की चटनियां, रसम, अचार ,चटनी पाउडर आदि सम्मिलित हैं, विशेष रूप से लोगों को पसंद आता है. कस्तूरी अक्का स्वयं खाना पकाकर, परोस कर, वहां के विशिष्ट स्थलों के भ्रमण की व्यवस्था करते हुए सत्कार की परंपरा को अब तक निभाती रहीं. 16 दिसंबर 2020 को 75 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हुआ. जब कभी भी अगुंबे और मालगुड़ी डेज़् की बात होगी तो दोडुमने और कस्तूरी अक्का अविस्मृत रहेंगी. उन्हें पुनः पुनः सादर विनम्र श्रद्धांजलि एवं नमन.

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