सरकार के खिलाफ विपक्ष का साझा बयान जारी

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सरकार के खिलाफ विपक्ष का साझा बयान जारी

लखनऊ .उत्तर प्रदेश सरकार के घोर अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक रवैये के खिलाफ उत्तर प्रदेश के दस विपक्षी दलों का संयुक्त बयान-कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष डा मसूद, सीपीआई के प्रदेश सचिव डा गिरीश, सीपीएम के प्रदेश सचिव डा. हीरालाल यादव, सीपीआई माले के प्रदेश सचिव सुधाकर यादव, फारवर्ड ब्लाक के प्रदेश अध्यक्ष अभिनव कुशवाहा, राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष अशोक सिंह, लोकतांत्रिक जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जुबैर अहमद कुरैशी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उमाशंकर यादव, समाजवादी जन परिषद के प्रदेश अध्यक्ष विक्रमा मौर्य ने संयुक्त रूप से निम्नलिखित प्रेस वक्तव्य जारी किया-

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के अधोहस्ताक्षरित राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों  ने उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि वह प्रदेश के किसानों की समस्याओं का निराकरण करने के बजाय उनकी आवाज दबाने के लिए असंवैधानिक रवैया अख्तियार कर रही है और पुलिस प्रशासन का नाजायज प्रयोग कर रही है. लोकतान्त्रिक तरीकों से सत्तारूढ़ हुयी भाजपा की राज्य सरकार प्रतिरोध की हर आवाज को कुचलने के लिए तमाम गैर कानूनी हथकंडे अपना रही है और लोकतन्त्र को नेस्तनाबूद करने पर आमादा है.

उत्तर प्रदेश में किसानों और उनके समर्थन में की जाने वाली हर शांतिपूर्ण कार्यवाही और लोकतान्त्रिक आंदोलनों को  बाधित किया जा रहा है. प्रदेश में शांतिपूर्ण धरने,  प्रदर्शनों को रोका जा रहा है, किसान जत्थों को दिल्ली जाने अथवा आंदोलनकारी किसानों को  रसद पहुंचाने से  रोका जा रहा है, यहाँ तक कि सभा करने, पर्चे बांटने और किसानों के पक्ष में अनशन करने वालों को भी गिरफ्तार किया जा रहा है. आपातकाल की ज्यादतियों को पीछे छोड़ने वाली ये कारगुजारियाँ किस नियम कानून के तहत की जा रही हैं, सरकार बताने को तैयार नहीं है. योगी सरकार सत्ता के मद में सारी लोकतांत्रिक सीमाओं को पार कर रही है. उसने गांव-गांव में किसानों की जासूसी करने के लिए पूरी नौकरशाही को लगा दिया है.

अधोहस्ताक्षरित का मानना है कि प्रदेश के किसान तीनों कृषि कानूनों और विद्युत बिल 2020 की वापसी चाहते हैं. वे एमएसपी की गारंटी चाहते हैं क्योंकि उन्हें किसी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल नहीं पा रहा. हद तो यह है कि एमएसपी के आधे मूल्य पर उन्हें अपनी उपजें बेचनी पड़ रही हैं. सरकारी खरीद तक दलालों के जरिये की जा रही है. ऐसे समय में जब बिजली डीजल खाद कीटनाशक एवं बीज आदि के दामों में भारी बढ़ोत्तरी हुयी है किसानों को लागत भी वापस नहीं मिल पा रही है. किसान सम्मान निधि द्वारा दी जारही धनराशि द्वारा उनके घावों को भरना तो दूर जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही है.


उत्तर प्रदेश के किसान सरकार की खोखली नीतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं. चीनी मिलों पर किसानों का करोड़ों बकाया पड़ा हुआ है. कर्ज में डूबे किसान आत्महत्यायें कर रहे हैं. आवारा पशुओं से फसलों की रखवाली के लिए उन्हें इस शीतकाल में न केवल रात रात भर जागना पड़ रहा है अपितु आवारा पशुओं के हमलों में अपनी जानें गंवा रहे हैं . दिसंबर माह में ही प्रदेश में कई दर्जन किसान आवारा पशुओं के जानलेवा हमलों के शिकार हुये हैं. योगी सरकार गोरक्षक होने का ढोंग करती है जबकि तमाम गोधन भूखों प्यासा मारा फिर रहा है और किसानों की फसल को रौंद रहा है. बिजली कटौती, नहर बंबों में पानी न आने और जलस्तर नीचे चले जाने से किसान अलग परेशान है.


योगीराज में लुटा- पिटा, तबाह हाल किसान अपने हक की आवाज नहीं उठा पा रहा. उनके समर्थक किसान संगठन और राजनैतिक दलों को भी सरकारी दमन का शिकार बनाया जा रहा है. जबकि सत्तापक्ष की गतिविधियां और किसानों को भ्रमित करने को बड़ी बड़ी सभाएं सारे कानूनों को ताक पर रख कर अंजाम दी जा रही हैं. लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यह असहनीय और अस्वीकार्य है. सरकार को इससे बाज आना चाहिये.

ऐसी स्थिति में प्रदेश के राज्यपाल महोदय को हस्तक्षेप कर राज्य में लोकतान्त्रिक गतिविधियां बहाल करने के लिए आवश्यक कदम उठाना चाहिए .  माननीय उच्च न्यायालय से भी मामले का स्वतः संज्ञान लेकर उचित कदम उठाने की अपील है.किसान आंदोलन में भाग लेनेे जानेेे वाले किसानों एवं उनकेे समर्थन में की जानेे वाली शांतिपूर्ण कार्यवाही और गतिविधियों को रोकने, फर्जी मुकदमों में फंसाने आदि अलोकतांत्रिक और गैर संवैधानिक रवैए से उत्तर प्रदेश सरकार बाज आए. केंद्र सरकार तीनों कृषि कानून और बिजली संशोधन विधेयक 2020 वापस ले.

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