आखिरी ख़त फिल्म याद है

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आखिरी ख़त फिल्म याद है

वीर विनोद छाबड़ा

दिन तो आज का था पर सन था 1942 .सुपर स्टार राजेश खन्ना का जन्म दिन है आज . राजेश खन्ना को यूनाइटेड प्रोडूसर्स टैलेंट हंट ने खोजा था. उन्हें सबसे पहले नासिर हुसैन ने साइन किया था. लेकिन जीपी सिप्पी की रविंद्र दवे निर्देशित ‘राज़’ पहले फ्लोर पर गयी. मगर चेतन आनंद की ‘आख़िरी ख़त’ और नासिर हुसैन की ‘बहारों के सपने’ पहले रिलीज़ हो गयी. ये तीनों ही बाक्स आफ़िस पर फ्लाप रहीं. हां आलोचको ने ज़रूर दबे लफ्ज़ों में ऐलान किया कि राजेश में अच्छे कलाकार के गुण प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं. 

मैंने राजेश खन्ना की तमाम फ़िल्में देखी हैं. दरम्याना कद, साधारण रंग-रूप और नैन-नक्श. एक नज़र में कुछ भी नहीं, ब्वाय लिविंग नेक्स्ट दूर वाली इमेज. लेकिन इसके बावजूद सुपर स्टार. वो यकीनन एक मिथक थे. वरना ‘हाथी मेरे साथी’ जैसी बेहद साधारण सुपर-डुपर हिट न होती. आज भी मैं उस दौर के ‘रहस्य’ को नहीं समझ पाया कि जनता किसमें क्या देख कर फर्श से अर्श पर बैठा देती है. तब तो आज जैसा मीडिया हाईप भी नहीं था, जिस पर राजेश को सुपर स्टार बनाने का इल्ज़ाम लगता. 

हां राजेश की मृत्यु को ज़रूर मीडिया द्वारा उसके ‘चौथे’के बाद भी अस्थि विसर्जन तक खूब भुनाया गया.  मौजूदा पीढ़ी को बताया कि कभी राजेश खन्ना नामक मिथक रूपी सुपर स्टार होता था. 

मुझे राजेश की हर फिल्म में उसका सुपर स्टार होने का अहम छाया दिखा जिसमें मैं उसमें सुपर स्टार के भार तले दबे कलाकार की तलाशता रहा. ये मुझे मिला भी. मगर चंद फिल्मों में. आख़िरी ख़त, खामोशी, आराधना, अमर प्रेम, दो रास्ते, आनंद, इत्तिफ़ाक़, सफ़र, बावर्ची, नमक हराम, दाग़, अविष्कार, प्रेम कहानी, आपकी कसम, अमरदीप, अमृत, अवतार, थोड़ी सी बेवफ़ाई, अगर तुम न होते, जोरू का गुलाम, आखिर क्यों, सौतन और पलकों की छांव में. परफारमेंस तलाशते निर्देशकों की पहली पसंद राजेश ही थे.

राजेश खन्ना पहले सुपर स्टार तो थे. उसके बाद अमिताभ सुपर स्टार हुए. लेकिन मैं राजेश को ज्यादा भाव दूंगा. राजेश के अलावा किसी और को हर तबके के, हर उम्र के दर्शक की बेपनाह मुहब्बत नहीं मिली. वो भले कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करते थे और एमपी भी रहे, लेकिन सरकारी भोंपू की तरह नहीं बजे. उनमें रेंज और वैरायटी भी ज्यादा थी. हर तरह के किरदार करने की सलाहियत थी. किरदार की खाल में बहुत ज्यादा घुसते थे. 

मगर सब कुछ होते हुए भी राजेश ‘मुकम्मिल’ नहीं थे. उनके संपूर्ण कैरीयर और निज़ी जीवन में भारी उथल-पुथल चलती रही. इसने सुर्खियां बन कर उनके सुपर स्टारडम और आर्टिस्ट मन को ग्रहण लगा दिया. 

एक वजह यह भी रही कि राजेश ने अपने हिस्से की बाक्स आफिस चमक-दमक ’नमक हराम’ में सह-कलाकार अमिताभ बच्चन के हाथ अनजाने में सौंप दी. सुना है इस फिल्म में मूल कहानी में अमिताभ के किरदार को मरना था. परंतु राजेश को लगा कि दर्शक के आंसू अमिताभ के लिये बहेंगे. तब उन्होंने कहानी में हेर-फेर कराई. खुद मरना पसंद किया. पर दांव उल्टा पड़ा. अमिताभ अपनी पावरफुल ड्रामाटाईज़्ड परफारमेंस के दम पर हरदिल अजीज़ हो गए. लाख कोशिशों और करतबों के वो बावजूद ‘बाऊंस बैक’ नहीं कर पाए. 

सिल्वर और गोल्डन जुबली की लंबी फेहरिस्त का बादशाह राजेश खन्ना, एक के बाद एक मिली अनेक नाकामियों को हज़म नहीं कर पाया. यही बात उन्हें ज़िंदगी भर सालती रही और 18 जुलाई 2012 को बेवक़्त और बेवजह ‘अच्छा तो हम चलते हैं’ कह गया. आज भी दुनिया को राजेश का मशहूर संवाद ‘पुष्पा, आई हेट टीयर्स’ गुदगुदाता है. 

मैं हर उस पैंतालीस-छियालिस साल के शख्स को देखकर मुस्कुराता हूं जिसका नाम राजेश है. ये यकीनन राजेश खन्ना की लोकप्रियता के दौर के प्रोड्क्ट है। मुझे गर्व है कि मैं राजेश खन्ना नाम के अदाकार के मुक्कमल इतिहास का गवाह हूं.

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