सावित्रीबाई फुले की 190वीं जयंती

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सावित्रीबाई फुले की 190वीं जयंती

आलोक कुमार

पटना.भारत में शिक्षा की नींव डालने वालीं सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की साझी विरासत पर ऐपवा ने अभियान चलाया. राजधानी पटना में यह अभियान चलाया गया. आखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा ) ने अभियान का आगाज किया और पर्चा जारी किया.इस अवसर पर तीन काले कृषि कानूनों व प्रस्तावित बिजली बिल वापस करने की की गई मांग.

ब्राह्मणबाद, पितृसत्ता व साम्प्रदायिकता के खिलाफ समानता, भाईचारा व आजादी के लिए ऐपवा के  3 जनवरी सावित्री बाई फुले के जन्मदिन से 9 जनवरी फातिमा शेख के जन्मदिन के बीच चलने वाले अभियान के तहत विभिन्न जिलों में गोष्ठी सेमिनार, मार्च का आयोजन किया गया. पटना सिटी में राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे, आशियाना नगर में राज्य सचिव शशि यादव, भोजपुर में इंदू सिंह, सिवान में सोहिला गुप्ता, मालती  राम, गया में रीता वर्णवाल ,नवादा में सावित्री देवी, हाजीपुर में साधना सुमन ने कार्यक्रम में भाग लिया.

 पटना सिटी में मुख्य वक्ता ऐपवा राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे ने कहा कि आज उन्हीं विचारों व शक्तियों का बोलबाला है जिनके खिलाफ सावित्रीबाई ताजिंदगी फातिमा शेख के साथ मिलकर कर संघर्ष चलाती रही.उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए हमें बालिकाओं के हक अधिकार की लड़ाई को आगे बढ़ाना होगा.

  तलाश पत्रिका की सम्पादक मीरा दत्ता ने कहा वे चुनौतियां आज भी मौजूद हैं जिनके खिलाफ सावित्रीबाई फुले व फातिमा शेख ने संघर्ष किया. मौजूदा सरकार स्त्री, दलित , मुस्लिम व किसान विरोधी है. हम इस मौके पर तीनों कृषि कानूनों व प्रस्तावित बिजली बिल वापस लेने की मांग करते हैं.


ऐपवा सहसचिव विभा गुप्ता ने स्वरचित कविता हमारी विरासत का पाठ किया. ऐप्रोचपेपर आइसा की अनुमाला मेहता ने पढ़ा.कार्यक्रम को भाकपा-माले पटना सिटी सचिव नसीम अंसारी, नेता अन्य मेहता, राजेश कुशवाहा ने भी संबोधित किया.अध्यक्षता ऐववा नगर सहसचिव विभा गुप्ता व संचालन पटना सिटी सचिव राखी मेहता ने किया.


 भाकपा-माले के ललन यादव, रोशन, सुरेश जी, महेश, गोपाल वर्मा, रामबाबू,बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ की सहसचिव संजू देवी, कोषाध्यक्ष सीमा देवी, रूबी खातून ऐपवा की गिरिजा देवी, कमला देवी, ममता देवी,जसवा देवी भी मौजूद थीं.

सावित्रीबाई  का जन्म  3 जनवरी को महाराष्ट्र में हुआ था. 9 साल की उम्र में उनका विवाह 13 साल के ज्योतिबाफुले  के साथ हुआ था. उस समय के समाज में किसी भी जाति की लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई  करना बहुत कठिन था फिर भी ज्योतिबा फुले ने सावित्रीबाई को  पढ़ाई के लिए प्रेरित किया. फुले के नेतृत्व में आरंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद सावित्रीबाई शिक्षक प्रशिक्षण सर्टिफिकेट की पढ़ाई के लिए अहमदनगर गईं, जहां फातिमा शेख उनकी सहपाठी थी.


औपचारिक शिक्षा के बाद फुले और सावित्रीबाई ने मिलकर  भीलवाड़ा  नाम की जगह पर लड़कियों के लिए पहला स्कूल शुरू किया.  यह स्कूल सभी जाति की लड़कियों के लिए था. और इसी साल इन्होंने दलित लड़कियों के लिए एक और स्कूल शुरू किया. इस तरह 1848 से 1852 के बीच इन दोनों लोगों ने मिलकर कम से कम12 स्कूलों की स्थापना की. लड़कियों और शूद्रों (दलित और अतिपिछड़े) के लिए स्कूल खोलना और महिला शिक्षकों का उन्हें पढ़ाना यह दोनों ही उस समय के समाज में किसी  सामाजिक क्रांति से कम न था.स्कूल जाते समय सावित्रीबाई पर गाँव वाले पत्थर और गोबर फेंकते, पर इससे सावित्रीबाई  का लड़कियों को शिक्षित करने का संकल्प और  ज्यादा मजबूत हुआ.सावित्रीबाई ने महिलाओं को शिक्षा के लिए सिर्फ  इसलिए जागरूक नहीं  किया कि वह एक अच्छी गृहणी बनें बल्कि वह चाहती थी कि महिलाएं पुरुषों  के बराबर अधिकार प्राप्त कर सकें.

सावित्रीबाई  ने बाल विवाह और नशा  के ख़िलाफ भी अभियान चलाया साथ ही उन्होंने  गर्भवती बाल विधवाओं के लिये आश्रय घर  की भी शुरूआत की थी.ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और जाति आधारित  गुलामी से समाज को मुक्त कराने के उद्देश्य से  सन 1873 में  ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की गई तो सावित्रीबाई इसकी महिला इकाई की अध्यक्ष थीं.इसकी साप्ताहिक बैठकों में जनता को शिक्षित करने और विधवा पुनर्विवाह जैसे मसलों पर खुलकर चर्चाएँ तेज होती थीं. 1897 में पुणे जिले में व्यापक पैमाने पर प्लेग नामक महामारी फैल गई.सावित्रीबाई निजी स्तर पर राहत कार्य में जुट गईं  और खुद प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हो गई.





खासकर दलित और मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को शिक्षित करने में सन्‌ 1848 के दौर में अहम योगदान दिया था. फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी को हुआ था.फ़ातिमा शेख़ सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं. जब ज्योतिबा और सावित्री फुले ने लड़कियों के लिए स्कूल खोलने का बीड़ा उठाया, तब फ़ातिमा शेख़ ने भी इस मुहिम में उनका साथ दिया.  फ़ातिमा शेख़ ने सावित्रीबाई के स्कूल में पढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी संभाली, इसके लिए उन्हें समाज के विरोध का भी सामना करना पड़ा था.ज्योतिबाफुले के पिता ने जब दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे उनके कामों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था, तब फ़ातिमा शेख़ के बड़े भाई उस्मान शेख़ ने ही उन्हें अपने घर में जगह दी.

आज जब समाज  में हिंदू-मुस्लिम  के बीच  विभाजन, दलित उत्पीड़न  और महिलाओं पर हिंसा बढ़ती जा रही है तब जरूरी हो जाता है कि हम इन  दो नायिकाओं को याद करें जिन्होंने आज से डेढ़ सौ साल पहले हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करते हुए दलितों और महिलाओं की शिक्षा के लिए  कंधे से कंधा मिलाकर सँघर्ष किया.

आज इस देश मे सरकार  जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बोल रही है, साम्प्रदायिक जहर घोलकर नफ़रत फैलाने की राजनीति कर रही है. मनुस्मृती को जायज मानते हुए महिला विरोधी कानूनो का निर्माण कर रही है. संविधान में  बालिग लड़का लड़की को अपनी मर्जी से शादी करने और अपना धर्म चुनने के अधिकार के विरुद्ध योगी सरकार 'लव जिहाद' का नाम लेकर  एक ऐसा कानून लायी है जिसमे शादी के बाद धर्म परिवर्तन करने पर नवविवाहितों को  प्रताड़ित किया जा रहा है. हमें  भाजपा के इस घृणित  महिला विरोधी  हमलों का हर स्तर पर विरोध करना होगा.3- 9 जनवरी 2021 , सावित्रीबाई फुले और  फ़ातिमा शेख की साझी विरासत को याद करें  और   महिलाओं की  सम्पूर्ण आज़ादी के लिए सँगठित सँघर्ष करें  और महिला आंदोलन को मजबूत बनाएं.

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