जनाबेआली ! आपकी किसान नीति क्या है ?

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जनाबेआली ! आपकी किसान नीति क्या है ?

चंचल  

 पुराने जमाने मे जब रोजही चीजों के खरीद फरोख्त के लिए बाजार की दरकार नही होती थी , दौरी , झांपी , खाँची , गठरी , झोला वगैरह में  बाजार खुद गांव के  दुआरे दुआरे आ लगता रहा . जरूरत की चीज खरीदी नही जाती थी , ले ली जाती थी एवज में  जौ , गोजयी , चना मटर और अक्सर तो दाल देकर लेनदेन हो जाया करता था . विनिमय की यह भारतीय प्रथा पूरे देश मे थी . बाजार तब भी था लेकिन जरूरत की चीज ही विनिमय तक पहुचाता था . बाजार पहले भी था लेकिन वह आपकी जरूरत के हिसाब से सामान बनाता था ,  आज भी बाजार है लेकिन शीर्षासन की स्थिति में - पहले यह  सामान बनाता है  फिर आपके अंदर जरूरत रचता है ..तब देश को बाजार बनाता है . इसके लिए बजारवाला हर तिकड़म करता है ,बाज दफे तो सरकार को ही दरबानी पर रख लेता है . उदाहरण के लिए मोदी राज का बाजार . 

 देखिये फिर बहक गया दरअसल हम ' देश ' की  बात कर रहे थे जिसे गांव कहते हैं . 

    सिंगरामऊ महाकाली केवल जौनपुर जिले की एक छोटी सी बाजार नही है , पूरे देश मे इस तरह की अनेक बसावट समूचे  भूगोल को घेरे खड़ी रही , ये बात दीगर  कि उनके नाम , उनके लोग , उनकी भाषा मुख्तलिफ हो लेकिन इन सब का मूल चरित्र एक ही रहा - हफ्ते में एक दिन का मेला . अभाव , तंगी और मनरंग की उमंग और गांव की बखरी की उमस से उबरने का एक स्थान जहाँ महिलाएं अपने आराध्य को मानी हुई मनौती के लिए ,सज- धज  कर  पचरा गाते हुए चलती और आराध्य को ' पूरी हलुआ '  चढ़ाती .  'अफगान इसनो ' म्हकौवा पावडर , होठलाली , खरीदती . दही जमाने के लिए कचरी , दूध की  मेटी , खजूर पत्ते की झाड़ू वगैरह वगैरह खरीददारी होती .(  ईदगाह का हमीद ऐसे ही  मेले से  चिमटा खरीदा होगा . ) उस जमाने तक महिलाओं की पसंदीदा मिठाई हुआ करती थी , जलेबी . चोटहिया जलेबी . ( गन्ने के रस से जब गुड़ बनने लगता है तो उसका एक अपकृष्ट हिस्सा ' चोटा ' बन जाता है यह जलेबी उसी चोटे में डुबो कर बनाई जाती है . ) चोटहिया जलेबी के तीन  'आशिक ' बदनाम थे , औरतों में मुग्धा , मख्खियों में  पीली बर्रे , और  मनचलों  में लफंगे . इनके बीच एक दूसरे से बचने की कोशिश देखना असल मेला का निचोड़ होता था . 

      जमाना बदला . नतीजा 

   मेले में जोर का शोर हुआ . लोंगो ने उचक कर देखा . -  का  भवा ? 

    - जमुना केवट  ' लात खा गया ' 

     - काहे ? 

     - काशी सिंह  परधान आ गए हैं , पंचायत होय रही है  

    - के  मारा ? 

    - मोछू मिसिर 

    - काहे मारिन ? 

     - कुच्छो नही , परधान बाबू , हम लावा रहे साग बेचने 

       मिसिर महाराज ने एक गड्डी उठाया  बोले -ई का

       रेट ? हमने कहा आठ रुपिया गड्डी . बस शुरू हो गए मारने . 

       - का चीज का साग रहा ? 

       -   इहाँ   'बथुआ ' कहते हैं , दिल्ली मयूर विहार में इसे बाथू कहते हैं . 

       पंचायत का फैसला आप पाठक की जूरी में भेज  रहा हूँ . यह फैसला अलग किस्म का है . 

   काशी सिंह प्रधान बेंच से उठे ,  जमुना केवट को एक पड़ाका मारे और फैसाला सुनाया - मोछू मिसिर ठीक किहिन , ससुर अब बथुआ भी बिकी ? गांव इत्ता दलिद्दर होय ग  बा ? 

    जमुना कहाँ जाय ? दिल्ली में छह सौ रुपये किलो गोभी  मिल रही है . सरकार के संरक्षण में . शहर में ठेला , रेढी नही घूमेंगे  कोरोना सरकार के साथ ऐलान कर रहा है लॉक डाउन .   बिहार का किसान गोभी को खेत मे ही जोत दे रहा है क्यों कि एक रुपये  भी एक गोभी के नही मिल रहे . 

     जनाबेआली ! आपकी किसान नीति क्या है ? यही तो पूछ रहा है किसान .

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