चंचल
वर्ष 1972 में हमे मरहूम देवब्रत मजूमदार ने काशी विश्वविद्यालय में सयुस (समाजवादी युवजन सभा ) का संयोजक बना दिया . तुर्रा यह कि तब तक हमने विश्वविद्यालय को जाना भी नही था और हम सबसे जूनियर रहे .बहैसियत हमने संयोजक एक खत मधु लिमये को लिखा .यह वो दौर था जब मधुलिमये सरकारी मंत्रियों के लिए बाघ घोषित हो चुके थे .प्रश्नकाल में जब मधु लिमये सदन में खड़े हों और जिस मंत्री की तरफ निगाह उठा दें ,वह बगल झांकने लगता था .डॉ लोहिया के असल उत्तराधिकारी घोषित हो चुके थे .हमें उम्मीद नही थी कि हम जैसों के खत का जवाब भी मधु जी देंगे .लेकिन ऐसा नही हुआ .वापसी का खत मधु जी मिला और यह खत 75 तक तक हमारी थाती रही .आपातकाल में पुलिस ने जो कमरे की जामा तलासी ली उसमे जो कई अमूल्य जिनिस गायब हुए उसमे कई बेहतरीन खत रहे , मधुलिमये का जवाब उनमे ऊपर था .
बहरहाल मधु जी से रिश्ता बन गया .एक दिन देबू दा ने बताया कल 'डीलक्स ' से मधु जी आ रहे हैं सुबह सात बजे स्टेशन पहुंच जाना .पहुंच गए .पहली मुलाकात जो रुबरु हो रही थी , बहुत अच्छी नही रही .मधु जी देखा डिब्बे से बाहर निकले .देबू दा ने हमारा परिचय कराया .मधु जी कहा हाँ जानता हूँ इसकी चिट्ठी मिली थी .अब और क्या चाहिए था , जिसके नाम पर सरकार कांपती है वह पुरालाल जैसे गांव के एक किसी तरह बारहवीं पास गवार को जानते हैं यह कम बात है? तब तक हम फूल चुके थे .इसी झटके में हिंदी पट्टी का गांव जग गया और हमने अपनी रवायत का निर्वहन करते हुए अपना हाथ उनके बैग की तरफ बढ़ा दिया कि हम लेते चलते हैं .लेकिन मामला उलट गया , बड़े जोर से मधु जी चीखे , हम अपाहिज हैं क्या ? हम अपना सामान ले चल सकते हैं .जितना हम फूले थे उसी अनुपात में पिचक गए .इसी बात को आराम से बोल सकते थे लेकिन वह ऊंची आवाज ? बाद में पता चला वो कभी धीमी आवाज में बोलते ही नही थे .बाद में हम मधु जी के प्रिय और सबसे छोटे लोंगों में दर्ज हो गए और आखीर तक रहे .
आपातकाल में हम बनारस सेंट्रल जेल में रहे और मधु जी नरसिंहगढ़ जेल में .मधु जी से खूब खतो किताबत हुई .सब संकलन में था लेकिन सब गायब .शायद प्रो0 अरुण ( मुजफ्फर पुर ) के पास सुरक्षित हो जिसे हमने जार्ज के चुनाव प्रदर्शनी में लगाये थे जब जार्ज जेल में थे . बहरहाल .77 चुनाव में हमने मधु जी कहा हम भी चुनाव लड़ेंगे .मधु जी उसी पंचम सुर में बोले ,बिल्कुले नही , तुम विश्वविद्यालय का चुनाव लड़ो .इस आंधी में मत उलझो यहां तो गधे भी जीतेंगे .वह जरूरी है .
और हम संसद तक नही पहुंच पाए .
नमन मधु जी
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