आज खिचड़ी है

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आज खिचड़ी है

चंचल  

आज से सूर्य उत्तरायण हो जाता है , कारण सूर्य की पूरब से पश्चिम की अनवरत चलनेवाली यात्रा नही है,  बल्कि  सूर्य का चक्कर काटती पृथ्वी की एक  दिशा  है,  जो सूर्य को उत्तरायण दर्शाती है . इस यात्रा से हमे क्या लेना देना , हमे तो नहाने का खौफ और ननिहाल से आये खिचड़ी की ' बहंगी '  से  अतरे ढूंढें की सोंधी महक और  कुरकुरी  मिठाई  की ललक में डूबने उतराने की याद अब तक सताती है .  

    यह बचपन की बात रही . थोड़ा बड़े हुए - 

      'सूर्य  उत्तरायण हो रहे हैं आज , बैठ जांयगे मकर राशि मे ,आज से दिन बड़ा होगा , भोर में स्नान करके नया वस्त्र धारण करना  चाहिए , तत्पश्चात किसी पवित्र पात्र में नवान्न छू कर  , ब्राह्मणों को दान करना चाहिए साथ में  ' सिधा ' और मुद्रा औकात भर दान में दे  तो बड़ी पुण्य मिलती है और सारी कामना की  पूर्ति होती है . '  कहते हुए पंडित इंद्रजीत उपाधयाय  गाढ़े मोटे मारकीन के कुर्ते की जेब से एक अदद जनेऊ निकाल कर टिका देते '  शर्व मंगल मांगल्ये , शरवे शिवा शाधिके ' 

का सस्वर पाठ करते करते अचानक जोर की जम्हाई लेने की वजह से मुह खुल जाता और शाधिके के बाद वाला हिस्सा खुले मुह के पास बजती चुटकी के साथ अश्रुत चला जाता . 

    और बड़े हुए . तालिबे इल्म हुए . मदरसे में बोरिया बिछा  कर पढ़ाई आगे बढ़ी तो बेंच और डेस्क पर जगह मिली -  सूर्य किधर से निकलता है ? 

       - सर ! पूरब से . 

       - किसने किसने कहा ?  सब ऊपर बेंच पर खड़े हो जाओ . कौन बैठा रहा गया है ? 

       - बाबू लाल 

        - सूर्य किधर  से निकलता है , तुम्हे नही मालूम ? साइंस में कैसे आ गए . जाओ  रिक्सा खींचो . बेवकूफ कहीं के . 

       - सर ! आइंस्टाइन भी इसी तरह का बेवकूफ रहा जब तक स्कूल में पढ़ाई करता रहा .  फेल भी हुआ है 

     -  बकवास मत करो . आइंस्टाइन को जानते हो ,  गलैलियो को नही जानते जिसने कहा सूर्य अपनी कह स्थिर है पृथ्वी उसका चक्कर काटती है , यह पढ़ने के बाद भी  तुम्हारा यह कहना कि सूरज पूरब से निकलता है , बेहूदगी है . 

     और हम बेहूदा हुए पड़े हैं . 

और बड़े हुए - बर मरे कि कन्या , अपुन को दक्षिना से मतलब .  दक्षिना में उत्सव है , मस्ती है , नवान्न की आमद है उसे जिया जाय . एक लोटा पानी ही तो डालना है झट से कंकड़ स्नान कर लो बाद बाकी मस्ती तो है ही. 

और आनंद लेना हो , उत्सव को उपयोगी बनाना हो तो  चलो किसानों के संगम में उतर लो जो दिल्ली घेरे खड़ा है. भांगड़ा हो जाय.

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