यह बीसियों साल पुरानी बात है .तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी तब लालचौक तक की तिरंगा यात्रा पर थे और पुलिस ने जम्मू में उनके दल को रोका हुआ था.श्रीनगर में क़ानून व्यवस्था और स्थानीय जनआक्रोश ऐसा था कि जोशी दल का तिंरंगा फहराना संभव न था.अटलजी की पहल पर सरकार और भाजपा में वार्ताहुई और यह तय हुआ कि भारी पुलिस सेना बंदोबस्त के बीच जोशी को ले जाकर झंडा फहराने की रस्म अदायगी करवा दी जाये . मप्र कॉडर के जॉंबाज पुलिस अफसर अशोकपटेल वहॉं कश्मीर में तैनात थे और आसिफ इब्राहीम व विजयरमन भी संभवत: विशेष ज़िम्मेदारियों के साथ वहीं पदस्थ थे. जोशीएवं एक छोटे दल को भारी सुरक्षा के साथ श्रीनगर लाया गया , छावनी में ठहराया गया और अगली सुबह लाल चौक ले जाकर झंडा फहराने का तय हुआ. उस पूरीरात और सुबह से ही श्रीनगर में रॉकेट दागे जा रहे थे और सुरक्षा बलों के लिये चुनौती थी कि कैसे बगैर बाल भी बाँका हुये वापिस सुरक्षित कैसे लाया जाये. जब अगली सुबह बख्तरबंद गाड़ियों का क़ाफ़िला लालचौक के लिये रवाना हुआ तो अशोकपटेल एवं जोशी एक ही जीप में थे लेकिन पता चला कि जोशीदल के पास राष्ट्रध्वज ही नहीं था. तत्काल वायरलेस से आदेश कर छावनी से तिरंगा मँगाया गया . राकेट लगातार दागे जा रहे थे पर मध्यस्थों ने इतना तय करवा लिया था कि धॉंय धू होती रहे पर किसी भी रॉकेट का निशाना लाल चौक न हो .
जब फ़ौजी गाड़ियों का क़ाफ़िला लाल चौक पहुँचा तो धमाकों की आवाज़ बहुत तेज़ हो चुकी थीं और अशोक पटेल ने लगभग खींच कर जोशी जी को जीप से उतारा तो वे उतरते ही जमीन पर गिर पडे थे, उन्हें उठाकर हाथ में झंडा पकड़ा कर सुरक्षा बलों ने फोटो खिंचवाया और तत्क्षण पुन: जीप पर लादकर वापिस फ़ुल स्पीड से छावनी की ओर लौटे. किसी अन्य दलसदस्य को मौक़ा ही नहीं मिला कि वे तिरंगा पकड़ भी सकें. अशोक पटेल ने जोशी की बदहवास स्थिति का जो मौखिक बयान किया वह मैं पूरा नहीं लिख रहा हूँ. उस समय के अख़बारों में अलबत्ता वह फोटो जरूर छपा था जिसे देखकर ही समूचे घटनाक्रम का अंदाज़ा स्पष्ट हो जाता है. उसी दल मे एक और सज्ज्न थे जो आज हमारे प्रम हैं पर वे तब नोटिस किये जाने योग्य नहीं थे.मोदी पर फिल्म का वह दृश्य कितना झूठा और फर्जी प्रोपेगैंडा है कि लाल चौक पर मोदी ने तिरंगा फहराया. यह हमारे सुरक्षा बलों का प्रशंसनीय अनुशासन है कि इन घटनाओं का रहस्योद्घाटन बाद में आमतौर पर कभी भी सार्वजनिक नहीं किया.
अशोक पटेल अब इस दुनिया में नहीं है पर दो भूपू आईपीएसअफसर है जो चुनकर अपनी बहादुरी राष्ट्रभक्ति व ईमानदारी के लिये श्रीनगर पदस्थ किये गये थे , वे भी मप्र कॉडर के हैं . मुझे नहीं मालूम कि उस दिन की घटना के अशोक पटेल के वर्णन से कितना सहमत हैं या वे अपनी ओर से भी कुछ जोड़ना चाहेंगें क्योंकि उन दोनों की भी अलग अलग भूमिकायें भी महत्वपूर्ण रही होंगी .
मैनें इसलिये लिख दिया कि जो मुझे बताया वह सनद रहे और उपरोक्त सत्यकथा पूरी सत्यकथा के रूप में सामने आये और दस्तावेज के रूप में लिखी जाये
मकसद यह कि कश्मीर में सामान्य हालात बनानें में व स्थानीय नागरिकों को मुख्य राष्ट्रीय धारा में लाने में कितनी मेहनत व धैर्य लगता है और टुच्ची चुनावी राजनीति एक दिन में सब गुडगोबर कर देती है और फिर दसियों साल तक भारत राष्ट्र के एक भूभाग को अपना बनाये रखने के लिये हजारों लोग पुनर्निर्माण में लगते है जबकि अंतत: संवाद और भाईचारे से ही रास्ता निकल पाता है . बंदूक से कभी नहीं. पाकिस्तानी प्रम इमरान खान का आज का यह बयान महत्वपूर्ण है कि चुनाव बाद मौजूदा सरकार यदि आयेगी तो वार्ता शुरु होकर सामान्यीकरण की ओर चलेंगें.
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