भाजपा सरकार की मंदिर हड़पो नीति!

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भाजपा सरकार की मंदिर हड़पो नीति!

शंभूनाथ शुक्ल 

हम नैताला लौट आए थे. ठाकुर जी ने बाहर कुछ कुर्सियाँ लगा दीं और चाय व जलपान का प्रबंध करने लगे. गंगोत्री पुरोहित समाज के प्रधान पंडित सुरेश सैमवाल सरकार के चार धाम परियोजना और इन धामों का एक सरकारी ट्रस्ट बनाए जाने से खिन्न थे. उन्होंने कहा, हम अपने जीते-जी तो यह ट्रस्ट नहीं बनने देंगे. हालाँकि पुरोहित समाज उत्तराखंड हाई कोर्ट में अपनी लड़ाई हार चुका है, किंतु समाज इसकी समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट गया हुआ है. स्वयं भाजपा के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी पुरोहित समाज की कोर्ट में पैरवी कर रहे हैं. इसलिए सुरेश जी समेत सभी 500 पंडितों को उम्मीद है, कि अदालत उनके पक्ष में फ़ैसला देगा. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कोर्ट का फ़ैसला आने से पूर्व ही पंडितों से गंगोत्री मंदिर की चाबी छीनना चाहते हैं. 

सुरेश जी ने बताया कि भाजपा सरकार और आरएसएस की नीयत हिंदू मंदिरों पर क़ब्ज़ा करने की है. ये 1986 के माता वैष्णो देवी श्राईन एक्ट की तरह क़ानून बनाना चाहते हैं. मगर माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड में राज्यपाल संरक्षक होता है और सरकार एक सीईओ नियुक्त करती है. इसमें संशोधन कर अब भाजपा एक ऐसा धर्मार्थ ट्रस्ट बना रही है, जिसमें राज्यपाल संरक्षक और मुख्यमंत्री ट्रस्ट का प्रमुख होगा. सुरेश जी का कहना है, कि यह ग़ैर क़ानूनी और संविधान के विरुद्ध है. कोई भी मुख्यमंत्री कैसे किसी धर्म-विशेष के ट्रस्ट का प्रमुख होगा? उसके लिए तो सभी धर्म समकक्ष हैं तो हिंदुओं के प्रति इतनी ममता क्यों? 

उत्तराखंड के चार धामों (बद्रीनाथ, केदार नाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) में से बदरी-केदार के लिए 1939 में एक ट्रस्ट बनाया गया था. इसका नाम था- “यूनाइटेड प्रॉविन्स श्री बद्रीनाथ एंड केदारनाथ टेम्पल एक्ट 1939”- इस क़ानून के तहत बदरी और केदार के मंदिरों की देख-रेख होती थी. 1863 में जब ब्रिटिश राज भारत में स्थापित हुआ, तब उसके तहत बने क़ानून के अनुच्छेद 20 के अंतर्गत श्री बद्रीनाथ और श्री केदारनाथ मंदिरों की देखभाल के लिए यह क़ानून बना था. इसमें राज्य सरकार या उसकी अनुपस्थिति में यूपी के गवर्नर को अधिकार थे कि वह एक समिति बना कर इसका अध्यक्ष व सदस्य नियुक्त करे. अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा मिलता था किंतु मुख्यमंत्री या सरकार को समिति के कामकाज में दख़ल की इजाज़त नहीं थी. आज़ादी के बाद उत्तर प्रदेश की सरकारों ने इसे यथावत चलने दिया. उत्तराखंड की सरकारों ने भी इसमें दख़ल नहीं किया. जबकि इस बीच तीन बार बीजेपी और तीन ही बार कांग्रेस की सरकार वहाँ रही. पर मौजूदा भाजपा सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आरएसएस के कहने पर पहले तो यूपी का बद्री-केदार एक्ट रद्द किया. उनका तर्क था, कि जब उत्तराखंड अलग हो गया है, तो हम यूपी का एक्ट क्यों मानें? परंतु रावत जी भूल जाते हैं, कि यूपी में मुख्यमंत्री इस समय उत्तराखंड के ही महाराज जी हैं. 

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने न पद पर आने के तत्काल बाद 31 मार्च 2017 को न सिर्फ़ “यूनाइटेड प्रॉविन्स श्री बद्रीनाथ एंड केदारनाथ टेम्पल एक्ट 1939” क़ानून रद्द किया बल्कि विधि आयोग के ज़रिए एक प्रस्ताव भिजवाया कि उत्तराखंड के चारों हिंदू धार्मिक धामों का एक ऐसा साझा श्राइन क़ानून बनवाया जाए, जिससे गंगोत्री और यमुनोत्री का चढ़ावा सरकार के खाते में जाए. अभी तक गंगोत्री और यमुनोत्री के लिए कोई ट्रस्ट नहीं है. गंगोत्री में सैमवाल और यमुनोत्री में उनियाल ब्राह्मण पुरोहित हैं. चारों धामों के पुरोहित एकजुट होकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का विरोध कर रहे हैं. इस पर मुख्यमंत्री उन्हें कांग्रेस का एजेंट बता रहे हैं. इससे परस्पर द्वेष व कलह बढ़ रहा है. मुख्यमंत्री की यह हठधर्मिता उन्हें ले डूबेगी, सुरेश जी ने नाराज़गी भरे स्वर में कहा. 

सरकार का कहना है, कि इन धामों के लिए पूरे देश से तीर्थ यात्री आते हैं. उनके लिए यहाँ कोई व्यवस्था यहाँ पंडित लोग नहीं करते. इसलिए सरकार यात्रा मार्ग को सुगम बनाएगी और चारों धामों के बीच कनेक्टिविटी सीधी करेगी. सरकार के इस कथन से तीर्थ पुरोहित और अधिक चिढ़ गए हैं. उनके मुताबिक़ हज़ारों वर्ष से हम लोग अपने जजमानों की सुविधा का ख़्याल करते आए हैं. वे कुछ दें या न दें लेकिन हमारे लिए ये जजमान हमारे अतिथि होते हैं. उनके ठहरने, खाने-पीने और उनकी सेवा हम करते आए हैं. ऐसे ही नहीं हमारी बहियों में हमारे जजमानों का पूरा ब्योरा रहता है. हम अपने जजमान से न तो कुछ अतिरिक्त पैसा लेकर उन्हें वीवीआईपी पूजा करवाते हैं न किसी को छोटा-बड़ा समझते हैं. जो कुछ जजमान अपनी श्रद्धा से हमें देता है, उसे हम स्वीकार करते हैं. हमारे लिए मैकू, मटरू, रामचंद्र और शिवराज सिंह बराबर हैं. दम तो इन पुरोहितों की बात में है. मैंने स्वयं आज तक किसी पुरोहित को किसी विशेष पूजा के लिए ज़िद करते अथवा विशेष दक्षिणा के लिए दबाव डालते देखा है. उल्टे जिन मंदिरों में ट्रस्ट काम देखता है, वहाँ ज़रूर ज़्यादा दक्षिणा के लिए विशेष पूजा होती है. 

मथुरा और द्वारिका के द्वारिकाधीश मंदिर में यह लूटपाट होती है और सरकार इसे करवाती है. माता वैष्णो देवी मंदिर में भी खूब लूट होती है. तीर्थ पुरोहित अथवा बारीदारी व्यवस्था को भंग करना पुरोहितों और श्रद्धालुओं के साथ अन्याय है.

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