किसानों को दबाने के लिए एनआईए का इस्तेमाल

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किसानों को दबाने के लिए एनआईए का इस्तेमाल

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! देश में मोदी हुकूमत आने के बाद सरकार के किसी भी फैसले की तनकीद (आलोचना) करने वालों पर तरह-तरह के संगीन मुकदमे लादने का जो सिलसिला मुसलमानों, लेफ्ट एक्टिविस्ट और जेएनयू से शुरू हुआ था वह अब किसानों और सिखों तक पहुंच गया है. एनआईए जैसी एजेंसी का बेजा इस्तेमाल करते हुए मोदी सरकार ने किसान आंदोलन में शामिल चालीस से ज्यादा सिखों, आंदोलन की कवरेज करने वाले पंजाब के दर्जनों टीवी और अखबारात के सहाफियों और आंदोलन में किसी भी तरह की मदद करने वालों पर खालिस्तानी होने का इल्जाम लगाकर नोटिस जारी करा दिया. इन लोगों पर खालिस्तान मूवमेंट की हिमायत करने और अनलाफुल एक्टिविटीज प्रीवेंशन एक्ट (यूएपीए) जैसे संगीन केस भी लगाए गए हैं. यह अलग बात है कि आंदोलन करने वाले किसानों के ‘संयुक्त मोर्चा’ ने फैसला कर दिया है कि कोई भी किसान लीडर एनआईए के सामने हाजिर नहीं होगा. मोदी और उनकी सरकार एनआईए का इस्तेमाल करने में इतना आगे निकल गई कि उस अदाकार दीप सिंह सिद्धू तक को खालिस्तानी करार देकर नोटिस जारी कर दिया गया जिस सिद्धू ने 2019 के लोक सभा एलक्शन में गुरूदासपुर में बीजेपी उम्मीदवार सनी देओल के एलक्शन की न सिर्फ बागडोर संभाल रखी थी बल्कि एलक्शन के दौरान गुरूदासपुर में ही रहकर सनी देओल को जिताने में मदद की थी. एनआईए ने दीप सिंह सिद्धू के भाई मनदीप सिंह को भी नोटिस जारी किया है. मोदी सरकार देश के कानून, संविद्दान और लोकतन्त्र के खिलाफ एनआईए, सीबीआई, ईडी और दीगर एजेंसियों का मुसलसल इस्तेमाल करती जा रही है और यह तरीका कानूनी दहशतगर्दी जैसा है, संविद्दान का मुहाफिज कहा जाने वाला सुप्रीम कोर्ट न सिर्फ खामोश है बल्कि कई मामलों में सरकार के साथ खड़ा दिखता है. मुसलमानों और लेफ्ट पार्टियों के खिलाफ सख्त से सख्त कानून का बेजा इस्तेमाल सरकार ने कर लिया क्योकि वह कमजोर है अब सिखों पर हाथ डाला जा रहा है. इसका अगर कुछ उल्टा असर हुआ तो क्या उसकी जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट पर नहीं होगी?

अपने दो-तीन थैलीशाह दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए मोदी और उनकी सरकार किसान कानून जैसे देश के लिए जहर साबित होने वाले कानून लाकर किसानों और सिखों को होस्टाइल करने का काम कर रही है. वह किसी भी कीमत पर ठीक नहीं है. खालिस्तान नाम की कोई चीज देश में 1986 के बाद से नहीं है अब तकरीबन छब्बीस-सैंतीस साल बाद एनआईए और मोदी सरकार खालिस्तान-खालिस्तान कहकर ऐसा लगता है कि सिख नौजवानों को फिर से गुमराही और तबाही के रास्ते पर द्दकेलने पर तुली हुई है. अगर देश में खालिस्तान नाम की कोई चीज थी तो एनआईए को किसानों के आंदोलन के तकरीबन दो महीने बाद ही क्यों दिखी अभी तक यह एजेंसी क्या कर रही थी. दिल्ली में रजिस्टर्ड और लंदन से काम करने वाला सिखों का एक एनजीओ ‘खालसा एड’ पूरी दुनिया में किसी भी आफत के वक्त लोगों को खाना पहुंचाने का काम करता है. किसान आंदोलन के चलते ‘खालसा एड’ को भी खालिस्तानी कह दिया गया. अब अगर लंदन कनाडा और अमरीका में रहने वाले सिख अपने मुल्की और गैर मुल्की एनजीओज के लिए फण्ड रेजिंग का काम करते हैं तो वह खालिस्तानी हो गए. फिर बी के मोदी जो अपनी मोदी टायर की कम्पनी बंद करके तकरीबन सत्ताइस साल से लंदन में विश्व हिन्दू परिषद के गैर मुल्की ट्रेजरार बनकर पूरी दुनिया से फण्ड रेजिंग कराकर वीएचपी को देते हैं वह क्या है? और उनके इकट्ठा किए हुए फण्ड का हिसाब-किताब कहां है. क्या विश्व हिन्दू परिषद पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ मध्य प्रदेश जैसी दहशत फैलाए हुए है उसमें बी के मोदी के जरिए इकट्ठा की गई रकम का इस्तेमाल हो रहा है.

प्राइम मिनिस्टर नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने नेशनल कहे जाने वाले टीवी चैनलों को तो रोक रखा है कि वह किसान आंदोलन से मुताल्लिक खबरें न दिखाए बल्कि उनके खिलाफ दिखाएं. किसान आंदोलन की खबरें तफसील से दिखाने वाले पंजाब के लोकल चैनलों, के टीवी, अकाल चैनल और सिख चैनल वगैरह ने पंजाब और देश के दूसरे हिस्सों के अलावा ब्रिटेन, अमरीका और कनाडा तक किसान आंदोलन की भरपूर खबरें दिखाई. तो मोदी सरकार की नजर में यह चैनल दहशतगर्द और खालिस्तानी हो गए. मुक्तसर से ‘के टीवी’ के लिए काम करने वाले जसबीर सिंह, अमृतसर से काम करने वाले तेजिन्दर सिंह और अकाल चैनल के मोनू सिंह को एनआईए ने इसलिए नोटिस भेज दिया कि इन लोगों ने सरकारी हुक्म के मुताबिक किसान आंदोलन के खिलाफ खबरें दिखाने के बजाए सही खबरें दिखाई. पंजाब ही नहीं हरियाणा के भी कई सहाफियों को नोटिस भेजा गया है. जिनकी तादाद बीस से ऊपर बताई जाती है.

जालंद्दर के बलवंत सिंह सिखों और दलितों के लिए लिखने वाले मुसन्निफ (लेखक) हैं, उन्होने हमेशा सिख दलितों की आवाज उठाई. जबसे किसान आंदोलन शुरू हुआ वह किसान आंदोलन के हक में लिख रहे हैं. उन्होने बताया उन्हें अक्टूबर में कोरोना हो गया था तभी से वह मुसलसल जेरे इलाज है और अपने घर में है. उन्होने एनआईए के नोटिस के जवाब में अपना मेडिकल सर्टिफिकेट भेज कर कहा कि जब तक उनकी तबीयत न ठीक हो जाए उन्हें न बुलाया जाए. लेकिन सरकार इसलिए नाराज है कि वह घर में लेट कर ही किसान आंदोलन के लिए क्यों लिख रहे हैं.

एनआईए ने विनेर सिंह को भी समन भेजा है. अंबाला के इस फ्रीलांस सहाफी से हाल में पूछा गया है कि यूके और कनाडा से ब्राडकास्ट होने वाले एक सिख टीवी चैनल से उसने छः लाख रूपए हासिल किए हैं. 65 साल के गुरूचरण सिंह को भी समन जारी किया गया है जो सिख जंगजू जगतार सिंह हवारा के साथी हैं. उन्होने कहा कि मैंने उन लोगों के कुन्बों को रकम दी है जिन्होने किसान तहरीक के दौरान अपनी जान गंवाई है. उन्होने कहा कि शायद सरकार मुझसे यह जानना चाहती है कि मेरे फण्ड का जरिया क्या है. होशियारपुर के 37 साल के नोबेल सिंह और 55 साल के करनैल सिंह जो सिख तंजीम ‘आवाज कौम’ से जुड़े हुए हैं उन्हें भी एनआईए ने समन जारी किए हैं. नोबेल सिंह ने बताया कि हम किसान तहरीक से पहले दिन से जुड़े हैं और होशियारपुर के टोल प्लाजा को ब्लाक किए जाने में हिस्सा लिया और मुजाहिरीन के लंगर चला रहे हैं. करनैल सिंह ने बताया कि हम इन समन से खौफजदा नहीं हैं और किसानी कानूनों के खिलाफ अपना एहतेजाज जारी रखेंगे.

सिख यूथ पावर ऑफ पंजाब (एसवाईपीओपी) के तीन अराकीन पलविन्दर सिंह, परमजीत सिंह अकाली और प्रदीप सिंह को समन मौसूल हुए हैं. पलविन्दर सिंह 18 जनवरी को एनआईए के सामने हाजिर हुए. किसान तंजीमों का कहना है कि हमें एनआईए के सामने पेश होने की जरूरत नहीं है मगर हम लोग पेश हुए क्योकि हम लोगों के पास छुपाने के लिए कुछ नहीं है. परमजीत सिंह अकाली ने कहा कि हमारी तंजीम सिंघु बार्डर पर लंगर चला रही है. रंजीत सिंह दमदी टकसाल अपने को एक खालिस्तानी एक्टिविस्ट बताते हैं मगर उन्होने एसएफजे के साथ कुछ नहीं किया है. हमने किसानी कानूनों के खिलाफ एहतेजाज करने वालों को पगड़ियां तकसीम कीं. हमारे पास इसके बिल हैं. हम 2012 से बतौर खालिस्तानी एक्टिविस्ट सरगर्म हैं और हमने कभी भी गैर जम्हूरी तरीका नहीं अख्तियार किया या तशद्दुद किया. मैं अब किसान तहरीक का हिस्सा हूं क्योकि पंजाब में हर कोई इससे जुड़ा है.

सद्दायाना के गुरप्रीत सिंह मंटू मालवा मनोखतादी सेवा (इंसानियत की खिदमत) नाम का एक एनजीओ चलाते हैं जिसने सिंघु बार्डर पर एक लंगर का एहतेमाम किया है. गुरप्रीत सिंह ने कहा कि समन जारी करके सरकार हमारे हौसलों को पस्त करने की कोशिश कर रही है. सुरेन्दर सिंह थकरीवाला एक सिख एक्टिविस्ट हैं और सिंघु बार्डर पर कयामपजीर हैं और वहां किसानों को पानी, बिस्कुट और भिंडरावाले की तस्वीर वाली टीशर्टें तकसीम करते हैं. एनआईए हमें द्दमकाना चाहती है. मैं एनआईए की नोटिस पर किसान यूनियनों की हिदायत पर अमल करूंगा. जंग सिंह को भी एनआईए ने समन जारी किया है जो उन सिख कैदियों के मामलों को देखते हैं जिनकी सजाएं पूरी हो चुकी हैं मगर जेल से बाहर नहीं आ सके हैं. वह कहते हैं कि मैं किसान तहरीक में भी सरगर्म हूं. सरकार हमें नोटिस भेज कर यह साबित करना चाहती है कि किसानों के एहतेजाज के पसेपुश्त खालिस्तानियों का हाथ है. रिशमजीत बग्गा और नरेश दोनों लुद्दियाना के कारोबारी हैं और ननकाना बस कम्पनी के पार्टनर हैं उन्हें भी समन मिले हैं. होम मिनिस्ट्री के जराए ने बताया कि जिन्हें समन जारी हुए हैं उन्होने हाल ही में बैरून् मुमालिक से उन जराए से फण्ड मिला है जो मश्कूक हैं. इस वक्त जिन्हें समन जारी किए गए हैं न वह मुल्जिम हैं न मुश्तबा अगर उन्होने बैरून मुमालिक से फण्ड वसूल किया है तो एजेंसी को यह पूछने का अख्तियार है कि यह फण्ड उन्हें कैसे मिला.जदीद मरकज़


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