चंचल
फोटो में जो पैकेट है उसे देखिये .अंग्रेजी में सब लिखा है , यह उनके बाजार की भाषा है . आपकी भाषा मे वही सब लिख दें तो यकीनन आप सारे कपड़े वहीं उतार कर , सीधे घर नहीं जांयगे लोग आपको पकड़ कर 'कांके' लेकर चले जांयगे . यह नही पूछेंगे कि ऐसा क्यों हुआ ? सवाल पूछना गाली है, और गाली इस निजाम में बलात्कर से भी ज्यादा संगीन जुर्म है . बिहार की नीतीश सरकार का फतवा जारी हो गया है . हम आपके कपड़े के बाहर होने की दास्तां लिख रहे थे -
' जरूरत के मुताबिक बाजार में समान तैयार होता था , ' उसकी जगह थोड़ा सा रद्दो बदल हुआ है , - 'अब बाजार में सामान बन जाएगा तब आपकी जरूरत तैयार की जाएगी . '
कभी यह कहावत थी - ' राख पात के कीमत ना होत '
आज भी गांव में कोई राख बेच के दिखा दे तो जानू . कमबख्त लबे, सड़क फ़टही पनही खा के घर लौटेगा . क्यों कि उसके पास पैकिंग का सऊर नही है , समान के नाम का अंग्रेजी तर्जुमा नही है , और दुकान में ए सी नही है .
जनाबेआली ! इस पैकेट में राखी है , यानी राख . कंडे की राख नही , लकड़ी की राख . बर्तन माजने के लिए दाम है 250 ग्राम यानी एक पाव का , मात्र 300 रुपया . अब राख निर्माता आपकी दयनीय स्थिति देख कर 11 रुपये की छूट दे रहा है बगैर आपके कहे .लेकिन चूंकि यह राख आपको ढोना नही पड़ेगा , इसे कम्पनी आपके घर तक पहुंचाएगी तो , भाड़ा तो देना ही होगा . ज्यादा नहीं मात्र 65 रुपये . पाव भर राख हुई 289+65 = 354 .
एक पाव राखी 354 रुपए . और बनारस के भाई वल्लभ पाण्डेय के बजरी को आढ़तिये 12 रुपये किलो भी देने को तैयार नही, यानी बजरी के एक पाव 250 ग्राम की कीमत हुई 3 रुपये मात्र .
भविष्य बांचती काशी के बाबू हरिशन्द्र बहुत पहले कह गए हैं
टका सेर भाजी , टका सेर खाजा .
कब ,?
जब -
अंधेर नगर , चौपट राजा
किसान रैली की तैयारी करिये .
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