मौका है ,एक पाव राख 354 रुपए में लें

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मौका है ,एक पाव राख 354 रुपए में लें

चंचल 

फोटो में जो पैकेट है उसे देखिये .अंग्रेजी में सब लिखा है , यह उनके बाजार की भाषा है . आपकी भाषा मे वही सब लिख दें तो यकीनन आप सारे कपड़े  वहीं उतार  कर , सीधे घर नहीं जांयगे लोग आपको पकड़ कर 'कांके' लेकर चले जांयगे . यह नही पूछेंगे कि ऐसा क्यों हुआ ? सवाल पूछना गाली है,  और गाली इस निजाम में बलात्कर से भी ज्यादा संगीन जुर्म है . बिहार की नीतीश सरकार का  फतवा जारी हो गया है . हम आपके कपड़े के बाहर होने की दास्तां लिख रहे थे - 

    ' जरूरत के मुताबिक बाजार में समान तैयार होता था , ' उसकी जगह  थोड़ा सा  रद्दो बदल हुआ है , - 'अब बाजार में सामान बन जाएगा तब आपकी जरूरत तैयार की जाएगी . ' 

    कभी यह कहावत थी - ' राख पात के कीमत ना होत '

 आज भी गांव में कोई राख बेच के दिखा दे तो जानू . कमबख्त लबे,  सड़क फ़टही पनही  खा के घर लौटेगा . क्यों कि उसके पास पैकिंग का सऊर नही है , समान के नाम का अंग्रेजी तर्जुमा नही है , और दुकान में ए सी नही है .  

      जनाबेआली ! इस पैकेट में राखी है , यानी राख . कंडे की राख नही , लकड़ी की राख . बर्तन माजने के लिए दाम है 250 ग्राम यानी एक पाव का , मात्र  300 रुपया .  अब राख निर्माता आपकी दयनीय स्थिति देख कर 11 रुपये की छूट दे रहा है बगैर आपके कहे .लेकिन चूंकि यह राख आपको ढोना नही पड़ेगा , इसे कम्पनी आपके घर तक पहुंचाएगी तो , भाड़ा तो देना ही होगा . ज्यादा नहीं मात्र 65  रुपये .  पाव भर राख हुई 289+65 = 354 . 

    एक पाव राखी 354 रुपए . और बनारस के भाई  वल्लभ पाण्डेय  के बजरी  को आढ़तिये 12 रुपये किलो भी देने को तैयार नही,  यानी बजरी के एक पाव 250 ग्राम की कीमत हुई 3  रुपये मात्र . 

     भविष्य बांचती काशी के बाबू हरिशन्द्र बहुत पहले कह गए हैं 

      टका  सेर भाजी , टका सेर खाजा . 

                    कब ,?

                     जब - 

      अंधेर नगर , चौपट राजा 

 किसान रैली की तैयारी करिये .

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