हुकूमत तो आढ़तियों के साथ है !

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हुकूमत तो आढ़तियों के साथ है !

चंचल 

हम फिर कहते हैं - किसान उत्पाद और उसका व्यापार सूबे की सरकार का विषय है , केंद्र सरकार इसपर कोई दखलंदाजी नही कर सकती , केंद्र का दखल  गैर  संवैधानिक आचरण है , इसका विरोध हर हाल में हर नागरिक को करना होगा . सरकार ऐसा क्यों कर रही है , अब किसी से छिपा नही है . आइये अब किसान के लूट का  खुलासा किया जाय . किसान उत्पाद और उपभोक्ता के बीच जो माध्यम है उसे बाजार कहते हैं . बाजार आढ़तिये के पास होता है . वह अन्न से खेलता है . धूमिल कहते हैं - 

               एक आदमी रोटी बेलता है , 

                एक आदमी रोटी खाता है 

                एक तीसरा भी आदमी है , 

                 जो न रोटी बेलता है , न ही रोटी खाता है 

              वह रोटी से खेलता है . 

               मैं पूछता हूँ , यह तीसरा आदमी कौन है ? 

                मेरे देश की संसद मौन है . 

                                ( संसद से सड़क तक ) 

    तीन सतर  में  कविता खुल जाती है . रोटी बेलने वाला  किसान है , खाने वाले हम सब हैं , खेलने वाला अंबानी , अडानी और बाबा डिपर है . संसद मतलब  हुकूमत , वह आढ़तियों के साथ है . यह खेलता कैसे है वह जान लीजिए बहुत आसान है . बाजार के दो हिस्से हैं एक खुदरा दूसरा थोक .  मजेदार खेल यहां से चलता है . आढ़तिया  खरीदता थोक में है और बेचता है खुदरा में . उदाहरण देखिये - किसान के खेत मे अनाज तैयार है , आढ़तिया उसे  किलो में नही , थोक में  खरीदेगा . गेहूं खरीदा 14 00 रुपये क्विंटल  यानी 14 रुपये किलो . वह इसे आंटा बनाएगा , उसे बेचेगा 50 से 500 रुपये किलो तक . इसी गेहूं से बनने वाले मैदा , सूजी ,   बिस्कुट 200 फीसद मुनाफे पर बाजार में उतारेगा . सारे उत्पाद का यही हाल है . इस लूट को रोकने का रास्ता क्या है ? 

     एक - सरकार कानून से रोके . एक लाइन में - ' खरीद और विक्री के बीच एक और डेढ़ का अंतर हो इससे ज्यादा नही . उदाहरण के लिए अगर किसान से 1 रुपये किलो आलू खरीदा तो आलू से बननेवाले उत्पाद की कीमत डेढ़ से ज्यादा न हो . 

     दो - जनता बाजार पर ताला लगा दे .  किसान खुद आंटा , मैदा , सूजी , बिस्कुट वगैरह बनाये और अपने केंद्र से उसकी विक्री करे . इस  जगह अपनी बेरोजगार फौज को इस काम मे लगा दे . 

 एक उदाहरण देखिये - गांव  कैथी ,  जिला बनारस के वल्लभ पांडे ने एक शुरुआत की है . उन्होंने खेती पर प्रयोग किया . मोटे अन्न की उपज . बाजरी लगाया , तैयार किया . अब खरीददार नही मिल रहे . बाजार के आढ़तियों ने कहा 14 रुपये में गेहूं है तो बाजरी 10 या 12 रुपये किलो में लेंगे . इसका हल पांडे जी ने निकाल लिया और थोक  बजरी को खुदरा में तब्दील कर दिया   . बजरी का आंटा बनवा लिया ,  एक किलो की पैकिंग की और 30 रुपये किलो में बाजार तक पहुंचा दिया , यही बजरी का आंटा बाजार में 70 रुपये से लेकर 200 रुपये तक जा रहा है . 

बहिष्कार और विकल्प गांधी जी किसानों  सौंप कर गए हैं . यह मुल्क किसानों का है .  जिल्लेसुभानी ! कल यही धनपशु देश छोड़ कर भागेगा पर भाग्यविधाता किसान खेत मे खड़ा मिलेगा .


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