सतीश जायसवाल
बिहू के लिए यहां आया तो. लेकिन समय पर पहुंच नहीं पाया.बिहू पर्व की पूजा पाठ और अनुष्ठान सुबह ही सम्पन्न हो चुके थे.क्या करता ? रश्मि और तनवीर के साथ घर पर ही रहा.घर में घर मिला.घर का भोजन मिला.और हम कोई डेढ़ महीने बाद मिले.कल हम सब साथ-साथ रहे !यह भी एक जश्न ही हुआ.आज ब्रह्मपुत्र पर शाम की क्रूज़ का कार्यक्रम बना.और एक पुरानी शाम का दुहराव हो गया. कोई चार वर्ष पहले,
21 मई 2016 को हमने अल्फ्रेस्को के जिस क्रूज़ से ब्रह्मपुत्र को शाम में देखा था, आज भी वही क्रूज़ मिल गया.और तो और, ब्रह्मपुत्र भी वैसी ही मिली.मई महीने की उस शाम की तरह धुन्ध में.लेकिन उस शाम से बिल्कुल अलग, एक अकेली लड़की भी क्रूज़ पर दिखी.क्रूज़ पर भीड़ में एक अकेली लड़की कुछ अलग सी दिखी.क्योंकि वह बिल्कुल अकेली थी.और अपने अकेलेपन में भी सम्पूर्ण सी.
उससे बात करने का मन हुआ. किसी अकेली लड़की से बात करने पर उसके एकान्त में खलल डालना हो सकता था. सांवली रंगत वाली वह अकेली लड़की फिर भी आकर्षक लग रही थी.और अब उसके अकेलेपन का आकर्षण कुछ कुछ समझ में आने लगा था, जिस वजह से वह सुन्दर लग रही थी.इस समय वह ब्रह्मपुत्र की थिरी हुयी जलसतह जैसी शांत और सौम्य है.
अकेलेपन का सौंदर्य जितना सौम्य होता है ! उतनी ही सौम्य.ब्रह्मपुत्र की तरह गहन.भरी-भरी.उसने किनारे वाली टेबल अपने लिए बुक की थी.और ब्रह्मपुत्र की जलसतह के नज़दीक थी.शायद इतनी देर से वह ब्रह्मपुत्र के जल से संवाद कर रही थी.या शायद भूपेन हजारिका का कोई गीत याद कर रही थी.उसके वहां से हटते ही उसकी वह कुर्सी और टेबल एकदम से सूनी हो गई.और वहां एक खालीपन भर गया.ब्रह्मपुत्र से बहुत पीछे चला गया बलुई तट भी अब और सूखा और, और भी दूर ,और दूर से भी अधिक दूर दिखने लगा ..
असम, 15 जनवरी 2021)
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