किसान आंदोलन को बदनाम करने के बाज आये

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किसान आंदोलन को बदनाम करने के बाज आये

नई दिल्ली .किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के संयोजक मंडल के सदस्य , अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य एवं पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने बताया कि देश भर में संयुक्त किसान मोर्चा तथा अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर पांच लाख से अधिक ट्रैक्टर और वाहन  किसान परेड में शामिल हुए.  25 लाख से अधिक किसानों ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर हाथ मे तिरंगा झंडा लेकर  शांतिपूर्ण तरीके से तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने तथा सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की कानूनी गारंटी को लेकर सरकार के सामने प्रभावशाली तरीके से आंदोलन में भागीदारी की . किसानों के आंदोलन में युवाओं की भागीदारी सराहनीय रही. किसान सँघर्ष समिति ने कहा है कि किसान परेड ने गणतंत्र दिवस को नया स्वरूप प्रदान किया है. जिसकी सराहना पूरे देश को करनी चाहिए.

किसान सँघर्ष समिति ने उत्तराखंड के किसान की शहादत पर आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा है कि दिल्ली पुलिस इसके लिए जिम्मेदार है.किसान सँघर्ष समिति ने  गत 62 दिनों में शहीद हुए 151 किसानों की स्मृति में दिल्ली में शहीद स्तम्भ बनाये जाने की मांग की है. सुनीलम द्वारा जारी बयान में कहा है कि केंद्र सरकार को किसानों के धैर्य की परीक्षा अब और अधिक नहीं लेनी चाहिए तथा प्रधानमंत्री को सामने आकर जल्दी से जल्दी तीनों कानूनों को रद्द करने की घोषणा करनी चाहिए.  किसान संघर्ष समिति ने  गोदी मीडिया द्वारा कुछ जगहों पर पुलिस के साथ हुई झड़पों और लाल किले को तिल का ताड़ बनाकर पेश किया है.


गोदी मीडिया द्वारा यह बताने की कोशिश की जा रही है कि आंदोलन बेकाबू  हो गया है , जिसका उद्देश्य देश में भ्रम और झूठ फैलाना है. जबकि सच यह है कि आंदोलन पूरी तरह अहिंसक और अनुशासित था, है और रहेगा.डॉ सुनीलम ने कहा कि देश के किसानों ने तिरंगा हाथ में लेकर अनुशासित किसान परेड कर यह बतला दिया है कि राष्ट्र किसानों के लिए सर्वोपरि है.

 डॉ सुनीलम ने बताया कि कल गाजीपुर बॉर्डर पर उन्होंने कहा था कि दिल्ली पुलिस द्वारा ही आंदोलन को बदनाम करने के लिए षड्यंत्र किया जा सकता है.वही सच निकला.

 सुनीलम ने कहा कि जिस तरह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के लिए रोज वीआईपी मूवमेंट रूट लगाए जाते हैं, उसी तरह के अगर लाखों किसानों की रैली के लिए रूट लगा दिए जाते तो किसानों को रास्ता भटक कर परेशान नहीं होना पड़ता. रूट लगाने की जगह दिल्ली पुलिस द्वारा तमाम सड़कों पर बैरियर लगाए गए जिससे कुछ स्थानों पर यह स्थिति बनी.


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