हिसाम सिद्दीक़ी
छब्बीस जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रेक्टर रैली के दौरान लाल किले पर हुए हंगामे के फौरन बाद सीनियर सहाफी पंकज चतुर्वेदी की फेसबुक वाल पर एक बहुत ही अहम पोस्ट आ गई, जिसमें लिखा था कि मोदी की बीजेपी ने अपने कुछ आदमी लगाकर किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए लाल किले पर हंगामा करा दिया. पंकज चतुर्वेदी ने किसानों को भड़का कर लाल किले तक किसानों और टै्रक्टरों को पहुचाने वाले दीप सिद्धू की वजीर-ए-आजम मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह समेत कई बीजेपी लीडरान के साथ कई तस्वीरें भी पोस्ट कर दीं. मध्य प्रदेश से डाक्टर सुनीलम ने कहा कि उन्हें तो पहले से ही पता था कि सरकार इस तरह की साजिश करके किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश करेगी, आखिर वही हो भी गया. दिल्ली पुलिस ने जिन चालीस किसान लीडरान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. उनमें से एक भी लाल किले की तरफ नहीं था. जिस शख्स ने लाल किले की फसील (प्राचीर) पर लगे पोल पर चढकर सिखों का मजहबी झण्डा लहराया उसे भी पुलिस ने पकड़ने की कोई कोशिश नहीं की हांलाकि वह आसानी से पकड़ा जा सकता था.
मोदी हुकूमत और दिल्ली पुलिस दोनो ही अब किसानों के साथ वही रवैया अख्तियार कर रहे हैं जो उन्होंने शहरियत कानून (सीएए) के खिलाफ मुजाहिरा करने वालों के खिलाफ शुमाल-मशरिकी (उत्तर-पूर्वी) दिल्ली में हुए दंगों में अख्तियार किया था. दंगा करने का काम बीजेपी के कपिल मिश्रा और खुद को विश्व हिन्दू परिषद का लीडर बताने वाली रागिनी तिवारी ने किया था, बजरंग दल के गुण्डों ने मस्जिदों और मजारों पर चढकर उनपर भगवा झण्डे फहराए थे लेकिन अमित शाह की मातहत दिल्ली पुलिस ने यकतरफा कार्रवाई सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ की. इंतेहा यह कि दिल्ली हाई कोर्ट के जज ने कपिल मिश्रा की वीडियो फुटेज देखने के बाद आर्डर किया था कि बारह घंटे के अंदर कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए. अमित शाह की पुलिस ने कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज नही की लेकिन आर्डर करने वाले जज का तीन घंटे के अंदर तबादला कर दिया गया था.
मोदी हुकूमत अगर किसानां को मुसलमानों जैसा कमजोर समझ कर उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही है तो यह सरकार की न सिर्फ एक बड़ी भूल है बल्कि सरकार बहुत गलत जगह पंगा ले रही है. क्योकि मुल्क में तकरीबन सत्तर करोड़ किसान हैं. उनमें बेश्तर (अधिकांश) ऐसे हैं जो कम जमीन होने के बावजूद अपनी खेती पर ही गुजारा करते है. अभी तक मोदी हुकूमत, बीजेपी का आईटी सेल और सरकार का गुलाम मीडिया यह सब मिलकर यह प्रोपगण्डा कर रहे थे कि किसानों के नाम पर जो लोग सिंघु बार्डर पर बैठे हैं उनकी तादाद मुट्ठी भर है, बाकी देश भर का किसान नए किसान कानूनों को अपने लिए बहुत फायदे का समझ कर सरकार का शुक्रगुजार है. छब्बीस जनवरी को टै्रक्टर रैली ने इस प्रोपगण्डे की सारी पोल पट्टी खोल दी, जब महाराष्ट्र से वेस्ट बंगाल तक और कश्मीर से कन्या कुमारी तक सभी प्रदेशों में किसानों ने बड़ी-बड़ी टै्रक्टर रैलियां निकाल दी. रैलियों में सबसे ज्यादा किसान महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, बीजेपी सरकार वाले मध्य प्रदेश, हरियाणा जैसे प्रदेशों की रैलियों में बड़ी तादाद में किसान उमड़ पडे़. उत्तर प्रदेश के तकरीबन सभी शहरों और गांव-गांव में रैलियां निकाली गईं.
तीन-चार सरकारी एजेण्टों ने लाल किले की फसील (प्राचीर) पर पुलिस की मिलीभगत से सिख तबके का मजहबी झण्डा फहरा दिया तो लाल किले की अहमियत, तकद्दुस, वकार (पवित्रता एंव गरिमा) की दुहाई देते हुए आईटी सेल और आरएसएस के लोगों ने सोशल मीडिया पर एक हंगामा खड़ा कर दिया. ऐसा लग रहा था कि लाल किले से ज्यादा पाकीजा और काबिले एहतराम इमारत देश में दूसरी है ही नहीं. हांलाकि इसी बीजेपी के लोक सभा मेम्बर और विश्व हिन्दू परिषद के लीडर रहे वैकुण्ठ लाल शर्मा ‘प्रेम’ और उनके सैकड़ों साथियों ने कई सालों तक लाल किला, जामा मस्जिद और ताजमहल को बाबरी मस्जिद की तरह देश के माथे पर कलंक बताते हुए इन्हें तोड़ने की मुहिम चलाई थी. उस वक्त वे जो ताजमहल को तेजोमहल मंदिर और जामा मस्जिद को जमुना देवी का मंदिर बताते थे. अब मामला किसानों का आया तो अचानक सभी को लाल किला बहुत पाकीजा नजर आने लगा.
लाल किले के लिए आंसू बहाने वालों को याद दिलाना चाहते हैं कि दो हजार सत्रह में राजस्थान में बीजेपी की वसुंधरा सरकार थी, उस वक्त उद्यपुर की सेशन कोर्ट पर चढकर बजरंग दल के लोगों ने सिर्फ इसलिए भगवा झण्डा फहरा दिया था कि अदालत ने एक गरीब के टुकड़े-टुकड़े कर जलाने और पूरी हरकत की वीडियो वायरल करने वाले शम्भुलाल रेंगर को जमानत नहीं दी थी. उस वक्त किसी एक की भी आवाज नहीं निकली थी. क्या विदेशी हमलावरों (आक्राताओं) के बनाए और मोदी हुकूमत के जरिए किसी थैली शाह को सौंपे जा चुके लाल किले की अजमत और एहतराम देश की भी किसी अदालत की इमारत से ज्यादा हो गया? जदीद मरकज़
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