मीर तक़ी मीर की कब्र कहां है

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मीर तक़ी मीर की कब्र कहां है

डा शारिक़ अहमद ख़ान

आज शाम फिर तलाश-ए-मीर में निकले लेकिन फिर मीर न मिले.लखनऊ के सिटी स्टेशन के क़रीब पहुंचे तो हमने 'भीम के अखाड़े 'का पता जानना चाहा,कई लोग जमा हो गए,नौजवान भी और बुज़ुर्ग़ भी.नौजवानों ने कहा कि 'अखाड़ा',यहाँ अखाड़ा कहाँ है,बूढ़ों ने भी यही दोहराया,कहा कि नहीं साहब यहाँ कोई अखाड़ा नहीं है,ये सुन हम कुछ नाराज़ हो गए,हमने तेज़ आवाज़ में कहा कि था यहीं अखाड़ा,भीम का अखाड़ा यहीं था,आप लोगों को कुछ नहीं पता,कहाँ चला जाएगा अखाड़ा.ये सुन लोग ज़रा सहम गए,सोच रहे होंगे कि बॉडी से भी लगता है कि ये कोई ख़तरनाक पहलवान है,लगता है ये लड़ने के लिए अखाड़ा ढूंढ रहा है,हम लोग कुछ बोलें तो कहीं हम लोगों से ही ना लड़ जाए,लिहाज़ा चुप रहो.अब हम चल दिए.बरसों पहले भी एक बार हमने भीम का अखाड़ा खोजने की कोशिश की थी ताकि ये पता चल सके कि शायर मीर तक़ी मीर की कब्र कहां है.

लेकिन नहीं पता चला.अब इस दुनिया में कोई ऐसा शख़्स ज़िन्दा नहीं होगा जिसने मीर की आख़िरी आरामगाह देखी हो,हुक़ूमत को भी नहीं मालूम,इतिहासकारों और साहित्यकारों ने भी मीर की कब्र खोजने की काफ़ी कोशिश की थी लेकिन नहीं खोज पाए थे,तब सरकार की मदद से सतहटी पर नकली निशान-ए-मीर बनवाया गया.शोध से मेरा अंदाज़ा है कि मीर की कब्र लखनऊ के सिटी स्टेशन के क़रीब के भीम के अखाड़े के आसपास कहीं थी जहाँ अब रेल की पटरियाँ बिछी हैं,दो पटरियों के बीच बची जगह पर कुछ वक़्त तक कब्र दिखती रही,फिर मीर का नाम खुदी पटिया ग़ायब हुई,आख़िर में रेलवे की कारस्तानी से मीर की पूरी कब्र ही ग़ायब हो गयी,लोग भूल गए कि मीर कहाँ सोए हैं,अब मीर के सिरहाने रेलगाड़ियाँ बेसुरा संगीत छोड़ते हुए गुज़रती हैं,मीर के कद्रदान चाहें भी तो मीर के सिरहाने जाकर मीर का कोई शेर नहीं गुनगुना सकते.अब तो पूरा भीम का अखाड़ा ही ग़ायब हो गया,मीर दिल्ली से जब लखनऊ आए तो उन्होंने नवाब साहब को मुर्ग़ों की लड़ाई में मशगूल देखा,मीर नवाब के कसीदे काढ़ने लगे,वज़ीफ़ा पाने लगे,लखनऊ में ही बस गए और लखनऊ में ही मरे.मीर ने कहा था कि 'सिरहाने मीर के आहिस्ता बोलो,टुक अभी रोते-रोते सो गया है'.लेकिन उसी मीर के सिरहाने से रेलगाड़ियाँ शोर मचाती दौड़ती हैं,जैसे बहादुरशाह ज़फ़र की अंतिम इच्छा अधूरी रह गई थी वैसे ही मीर की भी रह गई.बहरहाल,मीर की कब्र तो नहीं मिली लेकिन मीर तक़ी मार्ग का पत्थर मिल गया,जिसके ऊपर गाड़ी की हेडलाइट की रोशनी डाल हमने तस्वीर उतार ली.

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