रवि भोई
रायपुर .छत्तीसगढ़ में भाजपा बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है. पहले प्रदेश के प्रभारी महासचिव और सचिव बदले, फिर राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री भी नए आ गए. अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस ) के छत्तीसगढ़ प्रांत प्रमुख भी बदल गए. नौ साल से प्रांत प्रमुख रहे बिसहाराम यादव की जगह डॉ. पूर्णेन्दु सक्सेना को कमान सौंपी गई है. अच्छे हड्डी रोग विशेषज्ञ की छवि वाले डॉ. सक्सेना फ़िलहाल कांग्रेस शासित राज्य में संघ को किस तरह गति और दिशा देते हैं, साथ ही भाजपा से कैसे तालमेल बैठाते हैं, उस पर सबकी नजर है. निर्वाचन के साथ ही संघ पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हमले ने राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है. माना जा रहा है कि बदलाव के साथ संघ छत्तीसगढ़ में अपने लोगों में नया जोश पैदा करने और भाजपा को मजबूत करने का काम कर सकता है. संघ और दूसरे सहयोगी संगठन भाजपा की बड़ी ताकत हैं. कहा जा रहा है कि भाजपा में अब नए चेहरों को आगे लाने और जिम्मेदारी देने की कवायद चल रही है. खासतौर से आक्रामक और साफ-सुथरी छवि वालों को तलाशा जा रहा है.
त्रिपाठी और सोनी की विदाई कब ?
भारतीय टेलीकाम सर्विस के अधिकारी वीके छबलानी छत्तीसगढ़ सरकार से रिलीव हो गए. लोग अब कहने लगे हैं कि इस सर्विस के अधिकारी एके त्रिपाठी और मनोज कुमार सोनी की राज्य शासन से विदाई कब होगी. त्रिपाठी और सोनी साहब ने जिस विभाग में ज्वाइनिंग दी थी, वहां से सात साल बाद भी इधर-उधर नहीं हुए हैं. भूपेश सरकार ने सितंबर 2019 से टेलीकाम सर्विस के अधिकारी पोषण चंद्राकर को बीजापुर जिला पंचायत का मुख्य कार्यपालन अधिकारी बनाया है. इसके पहले ये मंत्रालय में शिक्षा विभाग में तैनात थे. मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले पोषण चंद्राकर 2009 बैच के टेलीकाम अधिकारी हैं. कहते हैं पोषण चंद्राकर को मूल विभाग में भेजने के लिए राजपत्रित अधिकारी संघ और दूसरे कर्मचारी नेताओं ने सरकार को पत्र लिखा है. लोगों को सरकार के कदम का इंतजार है.
छपवाने और छापने का खेल
कांग्रेस के एक नेता आजकल छपवाने और छापने के खेल में लगे हैं. करीब डेढ़ दशक से छपवाने के काम में लगे नेताजी अब सरकारी छपाई संस्था की शोभा बढ़ा रहे हैं. कहते हैं नेताजी दो नावों में पांव रखकर "दिन दूनी रात चौगुनी" कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. कहा जाता है छपाई संस्था में "हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा होई जाय" वाली बात है. छपा-छपाई वाले नेताजी का इंस्टेंट काम देखकर कुछ सरकारी उपक्रम के गणपतियों को ईर्ष्या भी होने लगी है. यह तो किस्मत है. कहते हैं किस्मत चमकने के बाद भी नेताजी की हर बात पर रोने की आदत गई नहीं, पर वादे जरूर भूल गए.
समारोह से दूरी का तरीका
राजनीति में जूनियर-सीनियर का मायने नहीं होता, लेकिन ब्यूरोक्रेसी में जूनियर-सीनियर बड़ा मायने रखता है. इसी के अनुरूप काम भी होता है. कहते हैं कि गणतंत्र दिवस परेड में जूनियर अफसरों की बराबरी में बैठना न पड़े, इस कारण राज्य के एक सीनियर अफसर छुट्टी लेकर राजधानी से बाहर चले गए. राजधानी में न होने से गणतंत्र दिवस समारोह से स्वाभाविक दूरी बन गई. यह तो समय का खेल है, कभी कोई ऊपर, तो कोई नीचे. पर समय के अनुरूप फैसला मनुष्य के हित में होता है. कहते हैं- अपनी इज्जत अपने हाथ.
लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं.
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