ओ छेर छेरा, कोठी ले धान हेरते हेरा..

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

ओ छेर छेरा, कोठी ले धान हेरते हेरा..

सतीश जायसवाल 

रायपुर .छेरछेरा ओ छेर छेरा, कोठी ले धान हेरते हेरा...पौष पूर्णिमा की बिखरी चांदनी का पर्व छत्तीसगढ़ में छेर छेरा है.इस समय धान कट कर कोठी में पहुंच चुका होता है.बस्ती से बाहर पैरे की खरही देखकर पता चलता है कि फसल अच्छी हुई है.छेर छेरा इसकी खुशी मनाने का पर्व है.नाचने-गाने का.

बच्चे और बड़े टोलियां बनाकर निकलते  हैं.घरों के सामने पहुंचकर आवाज़ लगाते हैं -- छेर छेरा ओ छेर छेरा, कोठी ले धान हेरते हेरा.दान छेकने के लिए निकली टोलियों में पुरुष ही होते हैं.स्त्रियां घरों में रहकर उनकी प्रतीक्षा करती हैं.और उनके पहुंचने पर दान में धान देती हैं. यह हमारी ग्रामीण संरचना में सामुदायिकता का सुंदर उदाहरण है.

यह प्रथा कब शुरू हुई ? इसका कोई लिखित विवरण उपलब्ध नहीं.अलग-अलग अनुमान हैँ.एक अनुमान इस प्रथा को केरल के ओणम से भी जोड़ता है.राजा बलि की दान-वीरता से,जिसने दान में अपना सर्वस्व दे दिया था.लेकिन इस अवसर पर होने वाला "डंडा नृत्य" एक अलग दिशा दिखाता है.और इस पर्व को गुजरात के डांडिया नृत्य से जोड़कर कृष्ण भक्ति परम्परा तक पहुंचाता है.वृंदावन की रासलीला तक.

वस्तुतः छत्तीसगढ़ के प्रायः पर्व और प्रथा परंपराओं के तार किन्हीं ना किन्हीं पुराण कथाओं तक खींचकर जोड़े जा सकते हैं.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :