अंबरीश कुमार
सेना के एक विभाग डीआरडीओ के न्योते पर मै हर्षिल पहुंचा था . उत्तर काशी से करीब अस्सी किलोमीटर दूर हर्षिल पहुंचने में काफी समय लग गया क्योकि बीच बीच में सड़क पर बर्फ थी और फिसलन से बचने के लिए बहुत धीमी रफ़्तार से चलना पड़ रहा था . इससे पहले ऋषिकेश से जो टैक्सी लेने आई थी वह मारुती वैन थी और ड्राइवर उसे ट्रक की तरह चला रहा था . कई बार मना किया फिर भी नहीं माना . पहला पड़ाव नई टिहरी के शिखर पर बने टीएचडीसी के गेस्ट हाउस में था .जब पहली बार इसके सबसे ऊपर के कमरे में रुका तो बताया गया यह कमरा बहुत दिन बाद ठीक किया गया है .
इसमें ठहरने वाले पहले अतिथि प्रधानमंत्री चंद्रशेखर थे उसके बाद हम लोग आए हैं .यह बहुत ऊंचाई पर है और यहाँ से हिमालय की बड़ी श्रृंखला दिखती है बशर्ते आसमान साफ़ हो. ठंड काफी थी इसलिए बाहर के बगीचे से भीतर आकर आग के सामने बैठ गए और फिर वहां के स्टाफ से बात जो शुरू हुई तो काफी देर तक चली . इस बीच खाना लग चुका था और खाने के बाद कड़ाके की ठंड में बाहर निकले तो बरसात ने रास्ता रोक लिया. चीड और देवदार के दरखत से घिरे बरामदे में लगी कुर्सी पर बैठ शहर की रौशनी देखने लगे जो धुंध में अपनी चमक खोती जा रही थी . पर ज्यादा देर बैठने की स्थिति नहीं थी क्योकि ठंड से कांपने लगे थे .
वापस लौटे और फिर थकावट के चलते ऊपर के एक सूट में सोने चले गए . सुबह उठे तो धूप की कुछ किरणे एक कोने से कमरे में आ रही थी तो सामने जाकर मोटा पर्दा हटाया तो सामने हिमालय की चमकती और बर्फ से ढकी चोटिया थी . अद्भुत नजारा था . ढंग से देखने के लिए नीचे लान में आ गए और चाय भी वहीँ देने को कह दिया . फिर सामने के हिमालय को भरपूर देखा और देर तक . बगीचे में धूप में बैठे थे पर हवा की ठंड भीतर तक समां जा रही थी .जारी फोटो साभार
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