अंबरीश कुमार
अगाथा क्रिस्टी की मर्डर आन ओरियेंट फिर से पढ़ रहा हूं यह पुस्तक उन्होंने 1933 में अरपैचिया को समर्पित की थी .तब इस ट्रेन में मिनरल वाटर दिया जाता था .हमने नब्बे के दशक में बाहर निकलने पर मिनरल वाटर पीना शुरू किया .और दिल्ली में एक बड़ी कंपनी ने जब हिमालय के खनिज युक्त मिनरल वाटर को लांच किया तो मै भी उस मौके पर था .पानी खरीद कर पीने के बारे में तब कम ही सोचा जाता था .
अमेरिका ,यूरोप कितने पहले से मिनरल वाटर पी रहे है हैं .और हमारे यहां बड़ी आबादी नल /चापाकल /कुएं के पानी पर निर्भर है .मुझे याद है कुछ साल पहले हम नागपुर से मुलताई जा रहे थे .मेधा पाटकर साथ थीं .करीब घंटे भर बाद एक ढाबे पर रुके कुछ खाने और चाय पीने .मराठी नमकीन चिवड़ा के भी बहुत शौकीन होते हैं .हम लोगों ने खाया ,चाय मंगाई .तभी मेधा पाटकर ने पानी की बोतल निकाली और जो बालक चाय लेकर आया था उससे कहा बाहर नल से इसे भर लाओ .हमने बताया कि कार में मिनरल वाटर है .पर उन्होंने कहा ,हमें इसकी ही आदत है .जब सभी ऐसा पानी पीते हैं तो हम क्यों नहीं .मुझे याद आया बस्तर जाते समय भी उन्होंने ऐसे ही एक जगह पकौड़ी खाई सड़क के किनारे और हैंडपंप का पानी पीया .
यह उनका अपना सादगी भरा तरीका है .हो सकता है आम भारतीय लोगों की प्रतिरोधक शक्ति इसीलिए मजबूत हो .बहरहाल पोहा नमकीन घर पर भी बना सकते हैं .पोहा को तल कर करके एकदम सूखा नमकीन बनाया जाता है. पोहा से तल कर नमकीन बनाने के लिये पोहा मोटी किस्म का लें तो ज्यादा अच्छा है.इसमें मूंगफली ,पके नारियल के कतरे डाल कर बनायें और नमक ,कालीमिर्च ,करी पत्ता ,नींबू डाल कर स्वाद लें .यह भी महाराष्ट्र का मशहूर है .लोहिया जी भी इसे बहुत पसंद करते थे .सफ़र में भी काम आएगा . कुछ समय पहले जब अमदाबाद गया था तो सर्किट हाउस में रुका .सुबह के नाश्ते में जो पोहा मिला वह एकदम सादा था पर नींबू के साथ .फिर सेप्ट की तरफ गया और भूख लगी तो पोहा लिया वह भी सादा पर इंदौरी नमकीन के साथ नीबू की फांक भी दी गई थी .ऐसे ही एक बार नागपुर से आगे जा रहा था तब रास्ते में जो पोहा मिला वह हरी तली हुई मिर्च के साथ था जो नींबू में डूबी हुई थी .पर अपने घर के पोहा में तो हरी मटर ,पत्ता गोभी की कतरन ,मूंगफली ,आलू ,गाजर के साथ अंकुरित मूंग भी इस्तेमाल होती है .ऊपर से भुजिया डाल दें .नींबू भी .कभी बना कर देखे स्वाद अच्छा लगेगा .
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