चंचल
जिरह न किया जाय , न ही कोई आसान सा इलजाम हमारे दस्त आवारगी के मत्थे लगाया जाए . कुछ भी सोचने और उस पर टिप्पणी करने या गुस्सा करने के पहले मजमून की तारीख और उन तारीखों में घट रही घटनाओं की तासीर में बैठा मौसम क्या कर रहा था जब यह मजमून दिमाग नही दिल से निकल कर आपके पास सट रह था . फागुन के मजमून को बैसाख में बांचेंगे तो खुन्नस में गर्मी तो बढ़ेगी ही . चुनांचे यह फागुन का वाकया है इसे फागुन में ही हजम किया जाय . हम दो ऋतुओं के संगम पर खड़े हैं शरद विदा ले रहा है . बसंत चढ़ रहा है . कहवाइये मत . हम बेहतर तरह जानते हैं- कितना नाकिस है यह बसंत , शशि थुरूर की तरह . इसकी उपस्थिति ही मुग्धाओं को आकर्षित करती है ,
जिसने भी फुसफुसा कर कान में कहा , हम उसका नाम लेकर बवाल नही काटेंगे . कोयल अब नही बोलती , गांव की बात नही कर रहा हूँ ,गांव तो बगैर कोयल के जी ही नही सकता हमारा इशारा संसद की तरफ है . वीरान सौंदर्य बोध से कोसों दूर , एक भी कोयल न सियासत में बची न ही संसद में , सड़क पर होंगी तो होती रहें अभी उतराई नही है. यह संयोग नही है , साजिश है महिलाओं के बर खिलाफ चलनेवाली सतत खुरापातें , चरित्र हनन , हीन दृष्टि और पीछे देखू नियति . समाज मे अचानक एक जबर्दस्त दुधारी परिवर्तन देखने को मिला कि हम बाहर तो विशुद्ध चरित्रवान (?) होने का ढोंग ओढ़ कर निकले और तीन गुने गति से महिलाओं पर हमलावर हो गए . बलात्कार , हत्या के साथ साथ कुलटा , डाईन , वेश्या वगैरह जैसे समाजतोड़क आरोपों से उन्हें पात भी दिया . ऐसे में हम उम्मीद रखें कि महिलाएं सड़क पर या संसद में खिलखिलाती हुई खिले मन से और खुल कर अपनी बात कह सकें . कहां हैं तारकेश्वरी सिन्हा , लक्ष्मीकांतम्मा , कृश्णा सिंह , सुचेता कृपलानी , अब नही मिलेंगी क्यों कि उस तरफ़ अब न पंडित नेहरू हैं , न डॉ लोहिया , न कृपलानी , न महावीर त्यागी न अमलेंन दत्ता . अब जो बैठ रहे हैं उनमें गजब की विषैली सोच भरी है . संसद में आजम ने कुछ बोल दिया , यकीनन जो
' कुछ ' बोला था वह न ही असंसदीय था न ही आचरण के खिलाफ लेकिन बवाल लम्बा . दूसरी घटना हुई एक देवी जी डीयर संबोधन पर हत्थे से उखड़ गईं .किसी कुलपति की इतनी हिम्मत की अपने मंत्री को डीयर बोल दे ? कल की बात है कुलपति होना विद्वता की एक पहचान थी जो यकीनन मंत्री के ओहदे से बड़ी थी . आचार्य नरेंद्र देव , प्रो0 राजाराम शास्त्री , डॉ त्रिगुन सेन , डॉ इकबाल नरायन , अनेक हैं . दस्तावेज देखिये - सांसद पीलू मोदी हमेशा तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरागांधी को dear IG लिखते थे और नीचे अपने नाम की जगह with regards PM ( पीलू मोदी ) हर चिट्ठी का जवाब मिलता था .
राजनीति को अपराध के दायरे से बाहर निकालो और यह काम जनमन से होगा . राजनीति में सौंदर्य बोध उतना ही जरूरी है जितना प्रकृति में रंग और खुशबू .
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