प्रचार पर फूंक दिया कितना पैसा

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प्रचार पर फूंक दिया कितना पैसा

संजय मेहता  
कल जब सदन में उन्होंने 'आन्दोलनजीवी' 'परजीवी'  शब्दों का इस्तेमाल किया तो समझ आ गया कि 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' वाली बात सही साबित हो रही है. खैर.... जो बता रहा हूँ उससे आपके होश फाख्ता हो जाएंगे. भूख, गरीबी से मरते लोगों के इस मुल्क में इस 'प्रचारजीवी' सरकार ने अरबो - अरब रुपए प्रचार में फूंक दिए हैं.  
तारीख 28 अक्टूबर 2019 को 'प्रचारजीवी' सरकार से मैंने दो सवाल किए... 
1. वर्तमान प्रधानमंत्री जी के पहले कार्यकाल 26 मई 2014 से 29 मई 2019 तक सरकार ने अपने प्रचार में कितनी राशि खर्च की.  
2. वर्तमान प्रधानमंत्री जी के दूसरे कार्यकाल की प्रारंभ तिथि 30 मई 2019 से लेकर 09 अक्टूबर 2019 तक सरकार ने अपने प्रचार में कितनी राशि खर्च की.  
सरकार का जो जवाब आया उसने होश उड़ा दिए. सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने 2 दिसंबर 2019 को फाइल संख्या ABS/14/11/2019-RTI-270 के तहत पत्र का जवाब दिया. उसमें बताया गया कि सरकार ने तीन तरीके से अपना प्रचार किया है.  
1. प्रिंट मीडिया 
2. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया 
3. आउटडोर मीडिया 
पहले कार्यकाल में  - 26 मई 2014 से 29 मई 2019 तक 'प्रचारजीवी'  सरकार का प्रचार खर्च -  
प्रिंट मीडिया में प्रचार खर्च - 19,19,22,02,121 (19 अरब, 19 करोड़, 22 लाख, दो हज़ार 1 सौ 21 रुपए )  
आउटडोर मीडिया में प्रचार खर्च - 8,260,522,201 (8 अरब, 26 करोड़, 5 लाख, 22 हज़ार 2 सौ एक रुपए) 
पहले कार्यकाल की तारीख 26 मई 2014 से 29 मई 2019 एवं 30 मई 2019 से 09 अक्टूबर 2019 तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 'प्रचारजीवी' सरकार का प्रचार खर्च - 27,215,749,227 (27 अरब, 21 करोड़, 57 लाख, नौ हजार 2 सौ 27) 
दूसरे कार्यकाल के 30 मई 2019 से 09 अक्टूबर 2019 तक प्रिंट मीडिया में प्रचार का खर्च - 47,40,38,941 (47 करोड़, 40 लाख, 38 हज़ार,941 रुपये) 
अर्थात - 'प्रचारजीवी' सरकार के पहले कार्यकाल 26 मई 2014 से 29 मई 2019 एवं दूसरे कार्यकाल की शुरुआत 30 मई 2019 से 09 अक्टूबर 2019 तक सरकार के प्रचार का कुल खर्च -55,142,512,490 (55 अरब, 14 करोड़, 25 लाख, 12 हज़ार 490 रुपए) है. 
10 अक्टूबर 2019 से 09 फरवरी 2021 तक सरकार ने प्रचार में कितना खर्च किया होगा इसके लिए RTI डालना होगा. इस सरकार को पहले खुद के गिरेबां में झाँक लेना चाहिए. यह सरकार 'प्रचारजीवी' है. सिर्फ प्रचार पर जीवित है.  
सरकार द्वारा किसानों का मजाक उड़ाना , उन्हें 'आन्दोलनजीवी' और 'परजीवी' कहना गलत है. 'प्रचारजीवी' सरकार और नेता ऐसा कहने से बचें. वरना किसान नाको चने चबाने को मजबूर कर देंगे. जिस देश में लाखों लोग भूख, गरीबी से मर रहे हैं वहाँ पर प्रचार में अरबो-अरब रुपया फूँक देना कहाँ तक जायज है ? 

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