शंभुनाथ शुक्ल
ऋषिकेश के होटल में नाश्ता टैरिफ़ में इंक्लूड था. जबकि श्रीनगर और जोशीमठ के जिन होटलों में ठहरा, वहाँ कहीं भी यह सुविधा नहीं थी. लेकिन इस नाश्ते में विकल्प सीमित थे. स्टफ़ पराठे सिर्फ़ मूली और आलू के थे, अचार के साथ. दूसरा विकल्प पूरी-भाजी का. मैंने पूरी-भाजी को चुना. मूली के पराठे खा कर आप भद्र लोक के बीच बैठ नहीं सकते और आलू के पराठे मुझे पसंद नहीं. यूँ भी हम हिंदुस्तानियों (ग़ैर पंजाबी भारतीय) में पूरी-भाजी का नाश्ता सर्वोत्तम समझा जाता है. पूरे ब्रज क्षेत्र (मथुरा से आगरा तक) और उसके आगे इलाहाबाद तथा बनारस तक सुबह पूरी-भाजी ही खाई जाती है. बंगाल में भी नाश्ते में में राधा बल्लभी ही लेता था. हाँ, कानपुर और लखनऊ में भाजी कद्दू की होती है. साथ में खीर. बाक़ी जगह आलू की. आलू उबाले फिर छील कर पूरी की कढ़ाई में तल लिए अथवा रसीले बना लिए. यह शुद्ध भारतीय नाश्ता है. पराठे तुर्क लाए और आलू पोर्चगीज. लेकिन पूरी, कद्दू और खीर हमारी है. वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि ब्राह्मण शृंगी ऋषि ने राजा दशरथ की रानियों को पुत्रेष्टि यज्ञ के बाद खीर चटाई. अर्थात् त्रेता युग से हम लोग खीर चटा रहे हैं.
तुर्क पराठे लाए और हलवा भी. योरोपियन ब्रेड और खग का माँस तथा अंडा. मीठे में पेस्टी, केक आदि. अब हम तो ठेठ हिंदुस्तानी हैं इसलिए पूरी खाई. आप पाएँगे कि विंध्य के दक्षिण में रोटी नहीं खाते हैं, लेकिन पूरी वे भी चाव से खाते हैं. सिर्फ़ पंजाबी लोग ही पराठा प्रेमी होते हैं. इसलिए मैंने भी छह पूरियाँ खाईं और ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के क़रीब स्थित होटल से निकले. रास्ते में जाम का भय था, लेकिन ड्राइवर ने बताया कि रुड़की बाईपास चालू हो गया है. फिर क्या था. पहले तो ऋषिकेश से हरिद्वार तक कई फ़्लाई ओवर पार किए और आधा घंटे में आ गए. इसके बाद सप्तर्षि के पास जिस फ़्लाईओवर पर चढ़े वह डाम कोठी, शंकराचार्य चौक और गुरुकुल काँगड़ी तथा बहादराबाद को पीछे छोड़ते हुए सीधे पातंजलि पीठ पर उतारा. इसके बाद बाईपास ने रुड़की, मंगलौर के जाम से मुक्ति दिलाई. नारसन गुरुकुल (यूपी-यूके की सीमा) पहुँच गए. फिर बरला और छपार भी फ़्लाईओवर से पार कर गए. रामपुर तिराहा (जहाँ 1994 में मुलायम सिंह ने उत्तराखंड के आंदोलनकारियों पर गोली चलवाई थी) पहुँच गए. इसके बाद मुज़फ़्फ़र नगर बाईपास पकड़ लिया. मंसूर पुर चीनी मिल्स से होकर खतौली आए और सर्र से पार कर गए. चीतल में रुकने का मन था. लेकिन चीतल फ़्लाई ओवर के नीचे चला गया है. मालूम हो कि चीतल रेस्टोरेंट एक नामी मुस्लिम पूँजीपति का है.
फिर सकौती टांडा, दौराला होकर टोल अवरोध में आए और मोदीपुरम क्रॉस कर मेरठ बाईपास पर. परतापुर का अवरोध और मोदी नगर की संकरी पुलिया से गुजर कर सीधे मुराद नगर फिर ग़ाज़ियाबाद को पीछे छोड़ कर वसुंधरा. इस तरह ऋषिकेश से घर तक साढ़े चार घंटे लगे. सब मोदी जी की कृपा है, जो सड़कें लालू यादव की पसंदीदा अभिनेत्री के गालों की तरह बनवा दी हैं. वे बेचारे तो नहीं बनवा सके.
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