मोदी ने किसानों का उड़ाया मजाक

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मोदी ने किसानों का उड़ाया मजाक

हिसाम सिद्दीकी 
नई दिल्ली! वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने राज्य सभा में बोलते हुए किसान आंदोलन पर कोई ठोस और संजीदा बात करने के बजाए उनका यह कह कर मजाक उड़ाया कि ‘आंदोलन जीवियों’ की नई जमात पैदा हो गई है जो हर आंदोलन में पहुच जाते हैं. उन्होने आंदोलन करने वालों को ‘परजीवी’ कहा और इल्जाम लगाया कि अभी तक एफडीआई का मतलब फारेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट होता था लेकिन अब एक नए किस्म की एफडीआई यानी ‘फारेन डिस्ट्रक्टिव आइडियालोजी’ यानी विदेशी तखरीबी नजरिया आ गया है हमें इससे बचना है. साथ ही देश को आंदोलन जीवियों और परजीवियों से देश को बचाना होगा. प्राइम मिनिस्टर मोदी तरह-तरह की जुमलेबाजी और तुकबंदी कुछ इस तरह कर रहे थे जैसे वह पार्लियामेंट में नहीं बल्कि किसी पब्लिक मीटिंग में तकरीर करते हुए अवाम को बेवकूफ बना रहे हों. नई तरह की एफडीआई का जिक्र करके शायद मोदी किसानों की हिमायत में ट्वीट करने वाली अमरीका की मशहूर पॉप स्टार रियाना, माहौलियात (पर्यावरण) के लिए काम करने वाली मशहूर एक्टिविस्ट ग्रेटा थर्नबर्न, अमरीका की नायब सदर कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस, आस्ट्रेलिया से अमरीका और कनाडा तक किसानों की हिमायत में मुजाहिरा करने वाले हिन्दुस्तानियों और ब्रिटेन व अमरीकी पार्लियामेंट के किसान हिमायती मेम्बरान को हिन्दुस्तान के खिलाफ तखरीबी नजरियात वाला बता रहे थे. प्राइम मिनिस्टर ने किसानों से कहा कि आंदोलन करना आपका हक है लेकिन नए किसानी कानूनों को भी मौका दीजिए. उन्होंने कहा कि मैं भरोसा दिलाता हूं कि एमएसपी है और रहेगी इसलिए मैं किसानों को न्यौता देता हूं कि वह आएं और मिल बैठकर बात करें. 
राज्य सभा में मोदी के बयान पर किसानों ने रद्देअमल (प्रतिक्रिया) जाहिर करते हुए कहा कि पीएम मोदी बदनियती से बात कर रहे हैं. अगर उन्हें बातचीत में दिलचस्पी होती तो वह न तो आंदोलन जीवियों परजीवियों और नई एफडीआई जैसी जुमलेबाजी करके किसानों की तौहीन करते और न ही हमारे सीनों पर कीलें ठुकवाते. जिस तरह की किलेबंदी उन्होने सड़कों पर करवाई है उससे तो यही सबूत मिलता है कि वह किसानों को कुचलने की कोई बड़ी कार्रवाई करने की साजिश कर रहे हैं. 
किसी की भी समझ में यह नहीं आ रहा है कि अगर मोदी यह भरोसा दे रहे है कि एमएसपी रहेगा तो फिर उन्हें किसानों के मतालबे पर इसे कानून बनाने में क्या परेशानी है. मतलब साफ है कि वह टाल मटोल कर रहे हैं ताकि किसान आंदोलन खत्म कर दें और वह अपने मकसद में कामयाब हो जाएं. इस मौके पर पीएम मोदी ने सिखों की बहादुरी और देशभक्ति की तारीफ करते हुए कहा कि यह देश हर सिख पर फख्र करता है. सिखों ने देश के लिए क्या कुछ नहीं किया है इसलिए हम उनकी जितनी इज्जत करें कम है. जो लोग सिखों के लिए गलत जुबान (भाषा) का इस्तेमाल कर रहे हैं वह उनको गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे देश का कभी भला नहीं होगा. उनकी यह बात भी गलत थी क्योकि किसान आंदोलन शुरू होने के बाद जिन घटिया लोगों ने सिखों के खिलाफ बदतमीजी की उन्हें दहशतगर्द, खालिस्तानी और पाकिस्तानी कह कर सोशल मीडिया और टीवी चैनलों के जरिए बदनाम करने का गुनाह किया. वह सबके सब या तो बीजेपी के लोग हैं या कंगना रानाउत जैसी गैर जिम्मेदार और बदतमीज बीजेपी की सपोर्टर. मोदी ने आज तक एक बार भी इस किस्म के लोगों के खिलाफ एक लफ्ज भी बोलना मुनासिब नहीं समझा. इससे तो यही साबित होता है कि मोदी अपने लोगों से सिखों को बुरा भला कहलवाते हैं और खुद सिखों की तारीफ करके अच्छा बनना चाहते हैं. 
जहां तक मोदी की आंदोलन जीवी, परजीवी और नई एफडीआई की तुकबंदी का सवाल है इस तरह की बातें करते वक्त वह इस खुशफहमी में रहते हैं कि देश के लोग बेवकूफ हैं उन्हें कुछ याद नहीं रहता. जम्हूरी (लोकतांत्रिक) सिस्टम में किसी भी प्राइम मिनिस्टर को इस बात का अख्तियार हासिल होता है कि वह किसी को आंदोलन में शामिल होने से रोक सके. लेकिन मोदी ऐसे प्राइम मिनिस्टर हैं जो यह चाहते हैं कि गैर बीजेपी वाली सरकारों वाली वेस्ट बंगाल, झारखण्ड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ और राजस्थान जैसी रियासतों में तो बीजेपी रोज तरह-तरह के आंदोलन करती रहे, लेकिन उनके किसी भी जायज नाजायज फैसले के खिलाफ कोई आंदोलन न हो. खुद मोदी अपने आका रहे लाल कृष्ण आडवानी के साथ सोमनाथ से अयोध्या की दंगा यात्रा में शामिल रहे, डाक्टर मुरली मनोहर जोशी के साथ तिरंगा आंदोलन के तहत श्रीनगर के लाल चौक पर देश का परचम (तिरंगा) फहराने गए छः दिसम्बर को बाबरी मस्जिद तोड़ने का गुनाहे अजीम (घोर पाप) किया उस आंदोलन में भी मोदी न सिर्फ शामिल थे बल्कि मौके पर मौजूद थे. 2012 और 2013 में मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ पूरे देश में बीजेपी ने तरह-तरह के आंदोलन करके आसमान सर पर उठा लिया था. अन्ना हजारे और राम देव जैसे दलालों को दिल्ली लाकर खूब हंगामे कराए थे. मोदी की वजारत में शामिल रिटायर्ड आर्मी चीफ वी के सिंह, पाण्डूचेरी की गवर्नर किरण बेदी जैसे बीजेपी के लोग अन्ना आंदोलन मे आगे-आगे दिखते थे. तब उन्हें यह सब आंदोलन जीवी नजर नहीं आए थे. 
मोदी ने किसानों से कहा कि मिल बैठ कर बात करें सारे रास्ते खुले हैं. सवाल यह है कि बात क्या करें, सरकार और किसानों के दरम्यान ग्यारह राउण्ड की बातचीत हो चुकी है. मोदी न तो एमएसपी पर कानून बनाने को तैयार हैं न ही तीनों किसानी कानून वापस लेने के लिए तैयार हैं. उधर किसान तीनों कानूनों की वापसी और एमएसपी पर कानून बनाने से कमपर तैयार नहीं हैं. तो फिर बातचीत में क्या होगा. बात बिल्कुल सीधी है कि पीएम मोदी जब तक अपने कारपोरेट दोस्तों को देश की हर चीज सौंपने की जिद पर अड़े रहेंगे तब तक किसान हों या कोई और किसी के साथ सरकार की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला.

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