सांप्रदायिक दंगों की कम संख्या संतोष का विषय नहीं

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

सांप्रदायिक दंगों की कम संख्या संतोष का विषय नहीं

इरफ़ान इंजिनियर एवं नेहा दाबाड़े 

इस रपट के पिछले भाग में लेखकों ने भारत में बढ़ती संरचनात्मक हिंसा की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा था कि इससे देश में सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा और गहरी व पैनी हो रही है. सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म (सीएसएसएस) प्रति वर्ष देश में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर विस्तृत रपट प्रकाशित करता है, जिसमें संरचनात्मक, शारीरिक, व्यवहारगत और प्रतीकात्मक हिंसा का विवरण शामिल रहता है. इस रपट का उद्देश्य देश में सांप्रदायिक हिंसा की व्यापकता और प्रकृति को समझना होता है. जैसा कि सन 2020 की रपट के पहले भाग में बताया जा चुका है, सन 2020 में देश में सांप्रदायिक दंगों की संख्या में कमी आई. सन 2019 की तुलना में, 2020 में दंगों की संख्या में 60 प्रतिशत की कमी आई. पिछले साल देश में 10 सांप्रदायिक दंगे हुए जिनमें 59 मौतें हुईं. उसके पिछले साल (2019), 25 दंगों में आठ लोगों की जान गयी थी. यह नितांत संभव है कि देश में पिछले साल 10 से ज्यादा दंगे हुए हों क्योंकि हमारे आंकड़े पांच दैनिक समाचारपत्रों में छपी रपटों पर आधारित होते हैं. पिछले साल सांप्रदायिक हिंसा के स्वरुप में महत्वपूर्ण बदलाव आए, जो दंगों की संख्या में कमी के पीछे के सच को समझने में हमारी मदद कर सकते हैं. 

सन 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली और मध्यप्रदेश के उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में हुए दंगे बताते हैं कि देश में सांप्रदायिक हिंसा का स्वरुप किस तरह बदल रहा है. इनसे पता चलता है कि मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने में राज्य किस तरह की भूमिका निभा रहा है. हमारे देश में संस्थागत दंगा प्रणाली द्वारा लम्बे समय से योजनाबद्ध तरीके से दंगे भड़काए जाते रहे हैं. इनके लिए योजना तैयार की जाती थी, लोगों भड़काने के लिए बहाने गढ़े जाते थे और राजनैतिक गोलबंदी भी की जाती थी. परन्तु इस सबके बाद भी, दंगे करवाने वालों को यह डर तो सताता ही रहता था कि सरकारी तंत्र घटनाक्रम की जांच कर सकता है और दोषियों के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही हो सकती है. निश्चित तौर पर यह कार्यवाही अनमने ढंग से की जाती थी क्योंकि शासकीय तंत्र, धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रस्त रहता था. परन्तु उस समय राज्य दंगों में उस तरह से खुलेआम भागीदारी नहीं करता था, जिस तरह से वह अब करने लगा है. अब तो राज्य निष्पक्ष होने का अभिनय भी नहीं करता. हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन बिना किसी भय के दंगे भड़काते हैं और मुसलमानों को निशाना बनाते हैं, जैसा कि मध्यप्रदेश में हुआ. राज्य बिना किसी संकोच के मुसलमानों को प्रताड़ित करता है और यहाँ तक कि उनके मकान ढहा देता है, जैसा हमने उज्जैन जिले के चन्दनखेडी गाँव में देखा. 

इस तरह, यद्यपि 2020 में दंगों की संख्या में कमी आई परन्तु उससे यह निष्कर्ष निकालना अनुचित होगा कि देश में सांप्रदायिक तनाव या फिरकापरस्त सोच घटी है. इसके उलट, सांप्रदायिक पहचानें मज़बूत हो रही हैं और हिन्दू राष्ट्रवादियों को राजनैतिक ताकतों द्वारा गोलबंद किया जा रहा है. इन हिन्दू राष्ट्रवादियों के मन में मुसलमानों के खिलाफ गहरी नफरत भरी हुई है और वे मुसलमानों के खून के प्यासे हैं. राज्य मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के मामलों में न सिर्फ कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है वरन वह स्वयं भी सक्रिय रूप से मुसलमानों को निशाना बना रहा है. ऐसा लगता है कि राज्य दिन-ब-दिन खोखले होते जा रहे भारतीय प्रजातंत्र में मुसलमानों को निचला दर्जा देने पर आमादा है. इसके नतीजे में सांप्रदायिक हिंसा करने वाले और बेख़ौफ़ हो गए हैं, सांप्रदायिक हिंसा को 'सामान्य' माना जाने लगा है और धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है. 

कार्यपद्धति 

सीएसएसएस की रपट 'द इंडियन एक्सप्रेस', 'द टाइम्स ऑफ़ इंडिया' और 'द हिन्दू' के मुंबई संस्करणों और मुंबई से प्रकशित उर्दू दैनिकों 'इंकलाब' और 'सहाफत' में प्रकाशित ख़बरों पर आधारित है. पूर्व में इन रपटों में राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा सांप्रदायिक दंगों के सम्बन्ध में प्रकाशित आंकड़ों को भी शामिल किया जाता था. एनसीआरबी के आंकड़े लगभग हमेशा ही सीएसएसएस द्वारा संकलित आंकड़ों से अधिक होते थे क्योंकि एनसीआरबी को देश भर के पुलिस थानों से जानकारी प्राप्त होती थी. अक्सर, केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा प्रकशित आंकड़े भी सीएसएसएस के आंकड़ों से ज्यादा हुआ करते थे. परन्तु पिछले कुछ वर्षों से एनसीआरबी ने दंगों से सम्बंधित आंकड़ों का प्रकाशन बंद कर दिया है और गृह मंत्रालय भी दंगों से सम्बंधित जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर रहा है. इस कारण, सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं का तुलनात्मक अध्ययन करना कठिन हो गया है और इसके लिए हम केवल मीडिया में प्रकाशित रपटों पर निर्भर हो गए है. 

दंगों का क्षेत्रवार ब्यौरा 

सन 2020 में उत्तर भारत सांप्रदायिक दंगों का केंद्र रहा. सीएसएसएस द्वारा जिन पांच अख़बारों से आकंड़ों का संकलन किया जाता है, उनके अनुसार सन 2020 में पांच दंगे उत्तर भारतीय राज्यों बिहार, मध्यप्रदेश और दिल्ली में हुए, दो दंगे दक्षिणी तेलंगाना और कर्नाटक में, एक दंगा पश्चिमी राज्य गुजरात में, एक पूर्वी राज्य झारखण्ड और एक उत्तर-पूर्वी असम में हुआ. 

अधिकांश दंगों का उत्तर भारत में होना आश्चर्य का विषय नहीं है क्योंकि यह क्षेत्र हमेशा से सांप्रदायिक तनाव का केंद्र रहा है. कई सालों से देश में सबसे बड़ी संख्या में दंगे उत्तरप्रदेश में होते आये हैं. परन्तु 2020 में दिल्ली और मध्यप्रदेश दंगों के केंद्र बन कर उभरे. दिल्ली में दंगे तीन दिन चले और राजधानी के जाफाराबाद, मौजपुर और शिवपुरी इलाकों में हिंसा हुई. इनकी पृष्ठभूमि में सीएए के खिलाफ चल रहा आन्दोलन था. मध्यप्रदेश के उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में दंगों के पीछे था हिंदुत्व संगठनों द्वारा अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए चंदा इकठ्ठा करने का आक्रामक अभियान. उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने वह स्थान, जहाँ बाबरी मस्जिद हुआ करती थी, पर राम मंदिर के निर्माण की राह प्रशस्त कर दी थी. यह महत्वपूर्ण है कि अयोध्या मामले में निर्णय के बाद से हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन देश भर की अनेक मस्जिदों और दरगाहों पर अपना दावा जता रहे हैं. उनका कहना है कि ये धर्मस्थल मंदिरों को गिरा कर बनाए गए हैं. जाहिर है कि इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा है. हिन्दू महासभा काशी और मथुरा में स्थित मस्जिदों की ज़मीन को उसके हवाले करने की मांग करती रही है और यह धमकी भी देती रही है कि अगर उसकी मांग नहीं मानी गयी तो वह आन्दोलन करेगी. 

दक्षिण भारत में दंगे राजनैतिक और चुनावी उद्देश्यों से उस क्षेत्र का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करने और वहां सांप्रदायिक सोच को बढ़ावा देने के प्रयासों का नतीजा हैं. पिछले वर्ष तेलंगाना के भिनसा और कर्नाटक के बेंगलुरु में सांप्रदायिक दंगे हुए. भिनसा सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदशील नगर है जहाँ हिन्दुओं और मुसलमानों की मिश्रित आबादी है और जहाँ तनाव और हिंसा का लम्बा इतिहास रहा है. इससे पहले, वहां 2008 में भी व्यापक सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. वहां दुर्गा विसर्जन जुलूस के दौरान हिंसा हुई, जिसमें तीन लोग मारे गए. गुजरात में खम्बात इलाके में सांप्रदायिक हिंसा हुई. खम्बात पिछले कई वर्षों से सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र बन गया है और वहां पिछले कई वर्षों से लगातार दंगे हो रहे है. पूर्वी भारत में झारखण्ड में भी ध्रुवीकरण की राजनीति के चलते सांप्रदायिक तनाव में इज़ाफा हो रहा है. असम हमेशा से सांप्रदायिक हिंसा का केंद्र रहा है. वहां एनआरसी के प्रक्रिया ने आम लोगों में भय, असुरक्षा और बैचेनी का भाव भर दिया है. 

कैसे हुई शुरुआत 

पिछले कुछ वर्षों में सांप्रदायिक विमर्श में परिवर्तन आया है और वह 2020 में हुए दंगों के भड़कने के शुरूआती कारणों में भी परिलक्षित हो रहा है. पूर्व में सांप्रदायिक दंगों के भड़कने के कारण शायद ही कभी 'सांप्रदायिक' होते थे. अधिकांश मामलों में किसी भी छोटे-मोटे व्यक्तिगत विवाद को सांप्रदायिक रंग दे दिया जाता था और हिंसा शुरू हो जाती थी. परन्तु अब संस्थागत दंगा प्रणाली की किसी भी घटना को सांप्रदायिक रूप देने की क्षमता कुछ कम होती नज़र आ रही है. सन 2020 में अधिकांश दंगों में राज्य की भूमिका रही. संवैधानिक पदों को सुशोभित करने वाले महानुभावों के नफरत से लबरेज भाषण और वक्तव्य, साम्प्रदायिकता को हवा देने के प्रमुख कारक बन गए हैं. इसके अतिरिक्त दंगे भड़काने के किये सोशल मीडिया का प्रयोग भी बढ़ गया है. सोशल मीडिया पर भड़काऊ और उत्तेजक टिप्पणियां की जातीं हैं जो अन्य समुदायों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली होती हैं. सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों को हिंसा करने के लिए इकठ्ठा करने के लिए भी होता है. दंगों के सन्दर्भ में सोशल मीडिया अब महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगा है. 

आईये हम संक्षेप में देखें कि दंगों की शुरुआत कैसे हुई: 

राजनैतिक नेताओं और संवैधानिक पदाधिकारियों के भड़काऊ भाषण 

दिल्ली के दंगे, राजनैतिक नेताओं के भड़काऊ भाषणों और राज्य द्वारा हिंसा भड़काने के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण करने के सीधे नतीजे थे. पुलिस और हिन्दू राष्ट्रवादियों को दिल्ली में सीएए के विरुद्ध चल रहे आन्दोलन को येनकेन प्रकारेण कुचलने की पूरी स्वतंत्रता दे दी गई थी. उन्हें प्राप्त राजनैतिक संरक्षण और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही न होने की सुनिश्चिता के चलते हिन्दू राष्ट्रवादियों की हिम्मत बढ़ गयी और वे दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी इलाके में मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए गोलबंद हो गए. दिल्ली में हुई हिंसा, धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने से रोकने के प्रयास का हिस्सा थे. मुसलमानों का सीएए के खिलाफ आन्दोलन करना वर्चस्वशालियों को तनिक भी नहीं सुहा रहा था. 

दिल्ली राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रपट में कपिल मिश्रा जैसे भाजपा नेताओं के आग लगाने वाले भाषणों का हवाला दिया है. रपट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक भाषण को भी उद्दृत किया गया है. दिल्ली में विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान, एक सभा को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, "8 फरवरी की सुबह, परिवार के साथ, 10 बजे से पहले कमल के निशान का बटन दबाना है...और मित्रों इतनी जोर से दबाना वो बटन कि करंट से ही वो शाहीन बाग़ वाले उठ कर चले जाएं". 

रपट में दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ के भाषण का भी ज़िक्र है. उन्होंने मतदाताओं से कहा कि वे दिल्ली में ऐसी सरकार को बैठाएं जो सभी धर्मों को बढ़ावा दे. परन्तु उन्होंने यह भी जोड़ा कि जहाँ बोली से काम नहीं चलता वहां गोली से चलता है. 

रपट में गवाहों के बयानों के आधार पर इन दंगों में हुए नुकसान और पुलिस के प्रतिक्रिया पर भी कुछ टिप्पणियां कीं गईं हैं. "कुछ मामलों में भीड़ लूटपाट करती रही और पुलिस मूकदर्शक बनी रही. कई मामलों में पुलिस ने स्वयं दंगाईयों को लूटपाट करने के लिए उकसाया...कुछ मामलों में लोगों ने बताया कि पुलिस और अर्धसैनिक बलों के सदस्यों ने हमला ख़त्म होने के बाद, हमलावरों को उस क्षेत्र से सुरक्षित बाहर निकाला. कई अन्य मामलों में पीड़ितों को भी सुरक्षा दी गयी."  (अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनूदित) 
 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :