अबूझमाड़ का रास्ता अब साफ़ हो रहा

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अबूझमाड़ का रास्ता अब साफ़ हो रहा

आलोक कुमार 

बस्तर. छत्तीसगढ़ में है बस्तर.बस्तर में अबूझमाड़ है.जो दुनिया के उन चंद इलाकों में से एक है जो वास्तव में अब तक अबूझ पहेली की तरह है.इस भूभाग को बूझने के लिए अब पहली बार एक नहीं तीन पुलों का निर्माण किया जा रहा है. इन पुलों के शुरू होते ही पहुंचविहीन रहा अबूझमाड़ सरकार और फोर्स की पहुंच में आ जाएगा. अब तक अछूते रहे माड़ के जंगल, अबुझमाड़िया कला, संस्कृति, जीवन शैली, हांदावाड़ा जैसे खूबसूरत झरने, प्रागैतिहासिक काल की गुफाएं सब कुछ आप और हम देख पाएंगे.मुट्ठी भर नमक के लिए मीलों पैदल चलते आदिवासियों की व्यथा खत्म होगी और साथ ही खत्म होगा नक्सलियों का जंगलराज. 

आज तक राजस्व सर्वे नहीं 

अबूझमाड़ अपने नाम के अनुरूप ही अबूझ है. 44 सौ वर्ग किमी में विस्तृत माड़ के दुर्गम जंगलों को आज तक राजस्व सर्वे नहीं हो पाया है.घने जंगलों, ऊंचे पहाड़ों, नदी-नालों से घिरे अबूझमाड़ में न रास्ते हैं न शुद्ध पेयजल समेत अन्य कोई बुनियादी सुविधा. यहां 237 गांवों में अति संरक्षति अबुझमाड़िया जनजाति के लोग रहते हैं.इनकी जीवन शैली आदिम युग की है.अबूझमाड़िया चल खेती करते हैं और मुख्य रूप से शिकार पर निर्भर रहते हैं. 

अबूझमाड़ कहे पुकार के 

मैं छत्तीसगढ़ की गौरवशाली इतिहास के साथ इस पावन धरा पर विराजमान हूं.मुझ में किसी चीज़ की कमी “बिल्कुल” भी नहीं है.मैं सम्पूर्ण भारत को कई वर्षों तक अकेले ही पाल सकता हूँ. इतना अधिक खनिज संपदाओं औऱ वनसम्पदाओं व अन्य उत्तम-उत्तम खज़ानों से परिपूर्ण हूँ. एक वह भी समय था जब मुझमें परिशान्ति कायम थी. मगर मेरे परिशान्ति व पहचान पर लाल आतंक का काली नज़र पड़ने के कारण विलुप्त सी होने लगी. मुझसे बहुत देर बाद जन्मे जिलों ने भी बहुत तरक्की कर आगे बढ़ गए. पर मुझे लाल आतंक(नक्सलियों) ने कई तरह से दबाने की कोशिश की! ताकि आगे न बढ़ सकूँ. मेरे जांबाज़ जवानों का खून बहाकर मुझे विश्व पटल पर बदनाम करने की भी कोशिश की गई.मगर धीरे धीरे ही सही उन जांबाज़ जवानों ने अपने कुछ साथियों की प्राणों की आहुति देने के बावजूद भी मुझ बस्तर की सुरक्षा में कोई कोर कसर नहीं छोड़े और शासन- प्रशासन के पहल से मुझ विकास को बस्तर-अबूझमाड़ के अंदरुनी इलाकों तक पहुंचने में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं. 

बस्तर क्षेत्र में निवासरत 

मेरी ये पुकार है बस्तर क्षेत्र में निवासरत उन तमाम माता-पिता,भाई, बहनों, दोस्तों एवं साथियों से विनती है कभी भी लाल आतंक का साथ न दें पर हमेशा बस्तर क्षेत्र को आगे बढ़ाने में विकास का साथ दें. जिससे जन जन तक मूलभूत सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हो सकें.जय हिंद.आमचो बस्तर, आमचो पुलिस. 


आमचो बस्तर-पुलिस कांसेप्ट  

बस्तर पुलिस एक बार फिर से अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में हैं.यह सुर्खियां नक्सली मामलों को लेकर नहीं बल्कि इस बार बस्तर पुलिस की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके सकारात्मक कार्यों के लिए हो रही है.कम्युनिटी पुलिसिंग के नाम पर हमेशा विवादों से घिरी रहने वाली बस्तर पुलिस को इस साल दी इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ चीफ ऑफ पुलिस (आईएसीपी) ने बेहतर कम्युनिटी पुलिसिंग के तहत होमलैंड सिक्योरिटी लिए चुना है. दुनिया भर में इसे पुलिस का आस्कर अवार्ड माना जाता है.आईएसीपी 200 से ज्यादा देशों के पुलिस के काम का मूल्यांकन करती है और फिर इसके बाद बेहतर प्रदर्शन करने वाली पुलिस को यह अवार्ड दिया जाता है. बस्तर पुलिस इलाके में आमचो बस्तर-आमचो पुलिस के नाम से सामुदायिक पुलिसिंग के तहत अभियान चला रही है. 

बच्चों के पुनर्वास की व्यवस्था 

इस अभियान में नक्सली विचारधारा से जुड़े बच्चों के पुनर्वास की व्यवस्था की जा रही है.नक्सलियों के लिए बाल संघम के तौर पर काम करने वाले बच्चों को लाल आंतक के साए से बाहर निकाल कर उन्हें शिक्षित करने के काम पुलिस इसी मुहिम के तहत कर रही है. अब तक दो दर्जन से ज्यादा बच्चों को को शिक्षित करने में जुटी हुई है. 


अबूझमाड़ का ज्यादातर हिस्सा 

अबूझमाड़ का ज्यादातर हिस्सा वैसे है तो नारायणपुर जिले में लेकिन दंतेवाड़ा व बीजापुर जिलों की ओर से इंद्रावती नदी के उस पार माड़ के करीब सौ से अधिक गांव हैं.इन गांवों का संपर्क अबूझमाड़ के मुख्य बाजार ओरछा या जिला मुख्यालय नारायणपुर से नहीं है.प्रशासननिक काम के लिए तो अबुझमाड़िया लोगों को 70-80 किमी पैदल चलकर ब्लॉक मुख्यालय ओरछा तक जाना पड़ता है पर हाट बाजार और अन्य जरूरतों के लिए इस इलाके के लोग 30-40 किमी पैदल चलकर इंद्रावती के तट तक आते हैं और नदी पार कर दंतेवाड़ा जिले के गीदम, बारसूर या बीजापुर के भैरमगढ़, माटवाड़ा आदि जगहों के बाजार आते हैं.पश्चिम बस्तर में इंद्रावती अबूझमाड़ और बाहरी दुनिया की सीमा रेखा बनाती है. 

जून 2021 तक यह पुल शुरू हो जाएगा 

इस इलाके में इंद्रावती पर एक पुल बारसूर में है और दूसरा हाल ही में शुरू हुआ पुल भोपालपटनम में है.दोनों पुलों के बीच की दूरी करीब दो सौ किमी है.पहुंचमार्ग न होने से फोर्स या विकास एजेंसियां यहां तक नहीं पहुंच पाती हैं.अब दंतेवाड़ा व बीजापुर जिलों में इंद्रावती पर तीन पुल बन रहे हैं.छिंदनार का पुल तो लगभग अंतिम चरण में है. जून 2021 तक यह पुल शुरू हो जाएगा.बीजापुर जिले में फुंडरी ओर बड़ेकरका में भी पुलों का काम शुरू हो चुका है.  

प्रतिबंध हटा लिया 

1987 में एक अंतरराष्ट्रीय चैनल ने माड़ की घोटुल संस्कृति पर एक स्टोरी की थी जो आपत्तिजनक थी। घोटुल माड़िया युवाओं के सांस्कृतिक केंद्र हैं.इसे यौन शिक्षा के केंद्र के तौर पर दिखाया गया. इसके बाद सरकार ने माड़ में बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. 2009 में छत्तीसगढ़ सरकार ने यह प्रतिबंध हटा लिया. 


 

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