दिल्ली दंगे का एक साल -2 यौन उत्पीड़न और लैंगिक हिंसा

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दिल्ली दंगे का एक साल -2 यौन उत्पीड़न और लैंगिक हिंसा

पंकज चतुर्वेदी  
एक मुस्लिम महिला ने बताया कि जब शिव विहार में हिंसा भड़की,  तो कैसे क्षेत्र की बहुत सी महिलाओं के पास, अपने परिवार के पुरुषों की सुरक्षा के लिए, अपना घर छोड़ने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं रह गया था.जब उन्होंने हिंसा प्रभावित क्षेत्र में कदम रखा, तो भीड़ द्वारा उनका शारीरिक शोषण और यौन उत्पीड़न किया गया.कई महिलाओं ने याद करती हैं कि किस प्रकार से भीड़ ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और उन्हें धमकी देते हुए कहा कि अगर वे "आज़ादी" चाहती हैं तो वे उन्हें “आज़ादी” देने के लिए तैयार हैं.  यह बात उन्होंने यौन उत्पीड़न की अन्योक्ति के रूप में कही.इन महिलाओं द्वारा पुलिस को कई बार फोन किए जाने के बावजूद, ज्यादातर मामलों में उन्हें कोई मदद नहीं मिली.चाँद बाग में, प्रदर्शनकारियों में से एक ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने महिलाओं पर बेरहमी से हमला किया और यहाँ तक कि यौन उत्पीड़न भी किया. अपने खौफनाक बयान में, उसने कहा कि चाँद बाग में दंगाइयों द्वारा उस पर हमला किया जा रहा था और जो दो लोग उसकी मदद करने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें पुलिस द्वारा पीटा गया.वह 12-13 साल की लड़की को घसीटते हुए पुलिस को देखा. उसने उसे बचाने की कोशिश भी की लेकिन सिर पर पत्थर से चोट लगने से बेहोश हो गई और नाकाम रही.वह जब दोबारा होश में आई तो उसने देखा कि उसके चारों तरफ बहुत सी घायल महिलाएँ हैं.दंगाइयों की भीड़ लगातार उन्हें गाली दे रही थी. उसने बताया कि जब यह हो रहा था तब पुलिसवालों ने अपनी पैंट नीचे की और अपने जननांगों की ओर इशारा करते हुए महिलाओं से कहा कि वे "स्वतंत्रता" चाहती हैं और वे उन्हें "स्वतंत्रता" देने के लिए हीवहाँहैं और यही उनकी "स्वतंत्रता" थी. इसके अलावा, चाँद बाग में धरने पर बैठी हुई कुछ महिलाएँ पुलिस द्वारा लगातार छोड़े जा रहेआँसू गैस के गोलों के कारण बेहोश हो गईं. पुलिस ने महिलाओं पर लाठीचार्ज किया, जिससे उन्हें गंभीर चोटें आईं, इनमें बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएँ भी थीं.  
शिव विहार की एक महिला ने अपने“पड़ोसी की बेटीके विषय में बताया जिसे बेआबरू कर, ह्त्या कर दी गई थी.”  जब हिंसक भीड़ मुस्लिम परिवार के एक जोड़े की ओर चली, "जय श्री राम के नारे लगाते हुए, आसपास के क्षेत्र में एक महिला उन्हें स्पष्ट रूप से कह रही थी: उन्हें लाओ." बाहर और वे मौके पर उनके साथ मारपीट करेंगे.जब हिंसक भीड़ जय श्री राम के नारे लगाती हुई कुछ मुस्लिम घरों के सामने पहुँची , एक महिला ने अपने आसपास यह कहते हुए सुना कि उन्हें बाहर लाओ और उनपर अभी हमला कर दो. 
एक अन्य महिला ने बताया कि उसके घर में जबरदस्तीघुस गएकई पुरुषों द्वाराकैसे उसके कपड़े फाड़कर चीथड़े कर दिए गए.जबइस तरह की खतरनाक परिस्थितियों में फँसी महिलाओंने पुलिस को फोन किया , तो पुलिस की ओर से समय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. इनमें से एक महिला ने कहा कि पुलिस हर बार उन्हें आश्वासन देती रही, जब भी उन्होंने फोन किया, लेकिन वे कभी उनकी मदद करने नहीं आए. 
अपने बयानों में, महिलाओं ने बताया है कि कैसे भीड़ एसिड ले जा रही थी और इसका उपयोग तत्काल आसपास के क्षेत्र में महिलाओं पर हमला करने के लिए किया गया. एक वीडियो इंटरव्यू  में एक महिला ने अपने और अपने परिवार के सदस्यों पर हुए एसिड अटैक के बारे में बताया. उसने याद किया कि उस पर, उसकी बेटी और उसके देवर पर तेजाब फेंका गया था. उसने कहा किउसके कपड़े कागज की तरह हो गए थे और उसके चेहरे पर अब भी वे निशान मौजूद हैं. उसकी बेटी और उसके देवर अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं. उन्होंने भी पुलिस से मदद लेने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. 
खजुरीख़ासकी एक अन्य महिला ने कहा कि कुछ महिलाओं को एक साथ 8-10 फीट की दीवार से कूदना पड़ा और जिससे उन्हें बहुत सी चोटें आईं.  
2.4.6धार्मिक पहचान पर हमला  
प्रमाणों से पता चलता है कि भीड़ द्वारा 'मुसलमानों' के प्रत्येक चिह्न पर हमला किया गया था, उनके बुर्के और हिजाब को नोंच लिया गया और उन्हें हटा दिया गया.बुर्का या हिजाब पहनना मुस्लिम महिलाओं की एक विशिष्ट धार्मिक पहचान को दर्शाता है. 
महिलाओं के बयान से पता चलता है कि उन पर हमला महज लैंगिक नहीं था, बल्कि विशेष रूप से मुस्लिम पहचान के कारण किया गया था. 
खजूरी खास की एक महिला को अपने दो बच्चों के साथ, घर से भागना पड़ा. बयानों से यह स्पष्ट है कि मुसलमानों को भीड़ द्वारा लगातार 'आतंकवादी', 'राष्ट्र-विरोधी' और 'विदेशी' कहा गया.मुसलमानों कोएक समुदाय के रूप में परिभाषित करने के लिए मुख्यधारा के मीडिया द्वारा लगातार इस तरह की भाषा का उपयोग किया गयाजिसका अब उस समुदाय के विषय में'सामान्यीकरण’ होता जा रहा है. भीड़ द्वारा भी इसी प्रकार के व्याख्याओं का प्रयोग किया गया.महिलाओं ने बताया कि उन्होंने भीड़ से "माफी" भी माँगी और यह कहा कि उन्होंने उनके खिलाफ कुछ नहीं किया है लेकिन भीड़ उन्हें लगातार “आतंकवादी” और “देशद्रोही” कहती रही.एक महिला ने कहा कि उस   का परिवार पीढ़ियों से इस मिटटी पर रहता और मरता रहा है, फिर वह एक देशद्रोही या गद्दार कैसे हो सकती है?  
खजूरी खास की एक महिला को अपने दो बच्चों के साथ, घर से भागना पड़ा. बयानों से यह स्पष्ट है कि मुसलमानों को भीड़ द्वारा लगातार 'आतंकवादी', 'राष्ट्र-विरोधी' और 'विदेशी' कहा गया.मुसलमानों कोएक समुदाय के रूप में परिभाषित करने के लिए मुख्यधारा के मीडिया द्वारा लगातार इस तरह की भाषा का उपयोग किया गया जिसका अब उस समुदाय के विषय में'सामान्यीकरण’ होता जा रहा है. भीड़ द्वारा भी इसी प्रकार के व्याख्याओं का प्रयोग किया गया.महिलाओं ने बताया कि उन्होंने भीड़ से "माफी" भी माँगी और यह कहा कि उन्होंने उनके खिलाफ कुछ नहीं किया है लेकिन भीड़ उन्हें लगातार “आतंकवादी” और “देशद्रोही” कहती रही.एक महिला ने कहा कि उस का परिवार पीढ़ियों से इस मिटटी पर रहता और मरता रहा है, फिर वह एक देशद्रोही या गद्दार कैसे हो सकती है?  
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की जांच रिपोर्ट का हमारे साथियों द्वारा किये गये हिंदी अनुवाद पर आधारित  किताब से 
 

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