लखनऊ की छतर मंजिल

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

लखनऊ की छतर मंजिल

डॉ शारिक़ अहमद ख़ान 
आज मॉर्निंग वॉक के लिए लखनऊ की छतर मंजिल की तरफ़ चले गए.नवाबी दौर के एक हिस्से में यहीं से नवाबों की हुक़ूमत चलती थी.नवाबी दौर में फ़्रांसीसी क्लाउड मॉर्टिन लखनऊ में नौकरी करने आया,वो एक अच्छा आर्किटेक्ट था. 
उसी ने नवाब के आदेश से फ़रहत बख़्श कोठी और हयात बख़्श कोठी का भी निर्माण कराया.हयात बख़्श कोठी आज यूपी के गवर्नर का निवास स्थान राजभवन कही जाती है. 
क्लाउड मॉर्टिन कोठी फ़रहत बख़्श बन जाने के बाद वहीं रहने लगा,नवाब ने उसे ये कोठी दे दी.जब क्लाउड मार्टिन मरा तो नवाब की नज़र कोठी फ़रहत बख़्श पर टिक गई,नवाब ललचाए कि कोठी उन्हें मिल जाए,क्योंकि मॉर्टिन अविवाहित था लिहाज़ा उसने मरते-मरते ये कोठी अपने दोस्त जोसेफ़ को दे दी थी. 
कुछ लोग कहते हैं कि जोसेफ़ ने कोठी नीलामी में ली थी,बहरहाल,वैसे तो मॉर्टिन की एक गर्लफ़्रेंड भी थी जो कोठी के एक हिस्से में रहती लेकिन पता नहीं क्यों उसे मॉर्टिन ने नहीं दी.अब नवाब ने जोसेफ़ को बरगलाना शुरू किया कि दे फ़िरंगी कोठी मुझे दे दे,आख़िर थी तो मेरी ही,नकद ले ले,लेकिन जोसेफ़ भी था चाईं,तैयार नहीं हुआ,तब नवाब ने उसके ऊपर बहुत दबाव चारों तरफ़ से डलवाया,सबने जोसेफ़ को समझाया कि देखो नवाब नकद दे रहे हैं,नकद लेकर खिसको और जाकर करो डिस्को,नहीं तो नवाब भन्नाए तो तुम्हें पिटवाकर कोठी से भगवा देंगे,तब ना तोहें रूपया मिली ना कोठी तोहरे पल्ले रही,काहें फल्लर में पड़ल हऊआ,माल गांठ के खिसकता काहें न जी.आख़िर में जोसेफ़ माना और उसने कोठी का ख़ूब मनमाना दाम लगाकर कोठी नवाब को बेच दी.जब कोठी नवाब के हत्थे लगी तो नवाब ने इसे विस्तार दिया,यहाँ बहुत भारी इमारत बनवा दी और इसका नाम छतर मंज़िल पड़ा. 

   

 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :