डॉ शारिक़ अहमद ख़ान
आज मॉर्निंग वॉक के लिए लखनऊ की छतर मंजिल की तरफ़ चले गए.नवाबी दौर के एक हिस्से में यहीं से नवाबों की हुक़ूमत चलती थी.नवाबी दौर में फ़्रांसीसी क्लाउड मॉर्टिन लखनऊ में नौकरी करने आया,वो एक अच्छा आर्किटेक्ट था.
उसी ने नवाब के आदेश से फ़रहत बख़्श कोठी और हयात बख़्श कोठी का भी निर्माण कराया.हयात बख़्श कोठी आज यूपी के गवर्नर का निवास स्थान राजभवन कही जाती है.
क्लाउड मॉर्टिन कोठी फ़रहत बख़्श बन जाने के बाद वहीं रहने लगा,नवाब ने उसे ये कोठी दे दी.जब क्लाउड मार्टिन मरा तो नवाब की नज़र कोठी फ़रहत बख़्श पर टिक गई,नवाब ललचाए कि कोठी उन्हें मिल जाए,क्योंकि मॉर्टिन अविवाहित था लिहाज़ा उसने मरते-मरते ये कोठी अपने दोस्त जोसेफ़ को दे दी थी.
कुछ लोग कहते हैं कि जोसेफ़ ने कोठी नीलामी में ली थी,बहरहाल,वैसे तो मॉर्टिन की एक गर्लफ़्रेंड भी थी जो कोठी के एक हिस्से में रहती लेकिन पता नहीं क्यों उसे मॉर्टिन ने नहीं दी.अब नवाब ने जोसेफ़ को बरगलाना शुरू किया कि दे फ़िरंगी कोठी मुझे दे दे,आख़िर थी तो मेरी ही,नकद ले ले,लेकिन जोसेफ़ भी था चाईं,तैयार नहीं हुआ,तब नवाब ने उसके ऊपर बहुत दबाव चारों तरफ़ से डलवाया,सबने जोसेफ़ को समझाया कि देखो नवाब नकद दे रहे हैं,नकद लेकर खिसको और जाकर करो डिस्को,नहीं तो नवाब भन्नाए तो तुम्हें पिटवाकर कोठी से भगवा देंगे,तब ना तोहें रूपया मिली ना कोठी तोहरे पल्ले रही,काहें फल्लर में पड़ल हऊआ,माल गांठ के खिसकता काहें न जी.आख़िर में जोसेफ़ माना और उसने कोठी का ख़ूब मनमाना दाम लगाकर कोठी नवाब को बेच दी.जब कोठी नवाब के हत्थे लगी तो नवाब ने इसे विस्तार दिया,यहाँ बहुत भारी इमारत बनवा दी और इसका नाम छतर मंज़िल पड़ा.
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