अस्सी का दशक , फिल्मिस्तान और गली का वह ठेला

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अस्सी का दशक , फिल्मिस्तान और गली का वह ठेला

अंबरीश कुमार  
बीते रविवार को अपने कार्यक्रम भोजन के बाद भोजन पर बात में एक जानकारी मिली .अस्सी के दशक में जिस फिल्मिस्तान के बगल की गली में ठेले पर हम दमपुख्त बिरयानी का स्वाद लेते थे उस ठेले को लगाने वाले गुलाम कुरैशी साहब आज आईटीसी होटल के मशहूर शेफ हैं .उसके बारे में ब्यौरा नीचे दे रहा हूं .लखनऊ के कारीगर ,रसोइये और हलवाई अपनी छाप हर जगह छोड़ते हैं .कई तो यहां की गली से निकल कर दिल्ली मुंबई और दुबई तक पहुंच गए .सखावत के शेफ को तो सऊदी के शेख ने अपने यहां बसने का न्योता दे दिया ..लखनऊ की बात ही कुछ और है . 
एक दिन शुक्ला स्वादिष्ट बिरयानी खाना चाहते थे पर लखनऊ में मिली नहीं .पता चला मंगलवार को ज्यादातर मुसलमान  नान वेज की दूकान बंद रखते है .वजह बजरंगबली का दिन है और वे अपना धंधा बंद कर देते हैं सम्मान में ,आस्था में .खोले भी तो चलेगी नहीं क्योंकि अगर हिंदू बिरयानी ,कबाब ,रोगनजोश ,कोरमा न खाए तो सामान खराब हो जायेगा .बिरयानी की सबसे ज्यादा खपत हिंदुओं में होती है पर बदनाम दूसरे होते हैं .बिरयानी राजनैतिक व्यंजन भी है .याद है न मुंबई में एक वकील ने बताया कि कसाब बिरयानी खाता था .हालांकि बाद में उन्होंने बताया कि वे यह सब माहौल बनाने के लिए बोले थे .खैर जब कोई मुद्दा न मिले तो बिरयानी की हवा उड़ा दीजिये अपना हिंदू मन पूरे सात्विक भाव से उसे ग्रहण करेगा और शाम को पाटानाला पर बिरयानी खाता मिल जायेगा .बड़ी ताकत है इस बिरयानी में .शाहीन बाग़ में भी बिरयानी का खेल हुआ और घंटाघर में भी .आज लखनऊ के पुराने फिल्मीस्तान हाल की किसी ने फोटो डाली .फोटो में दाई तरफ जो दीवार दिख रही है उसके बगल में एक नाला है जो गली के साथ पीछे चला जाता है .नाले की तरफ लोग तब यानी अस्सी के दशक में लघुशंका भी कर लिया करते थे .इसी गली की शुरुआत में बिरयानी का एक ठेला लगता .मै ,तिवारी ,जोशी और शुक्ला अक्सर यहां बिरयानी खाते .वैसे वह सींक कबाब और कुछ और आइटम भी रखता .पर बिरयानी बहुत लोकप्रिय थी खासकर अपने हिंदू मित्रों में .तब इतना भेदभाव भी नहीं होता था लोग खुलकर खाते थे .बिरयानी ऐसी की खाने के बाद हाथ में बहुत जरा सा घी भले लगा हो पर और कुछ नहीं .पर खुशबू कमाल की .एकबार रविवार के व्यंग लिखने वाले किट्टू आये और एक समाजवादी से मिले .समाजवादी तब चंद्रशेखर की पार्टी में थे .अभी भी बड़े आदमी हैं .खैर ड्राई डे था पर वहीँ पास की दूकान से एक अद्धा मिल गया .दो पैग बाद उन्होंने चंद्रशेखर के ठाकुरवाद पर भाषण दिया ठीक से .किट्टू ने सुना .बिरयानी की उसी ठेले पर .किट्टू लौटे और रविवार के आखिरी पन्ने पर दारु बिरयानी के साथ चंद्रशेखर जी पर दिया भाषण सजा कर पेश कर दिया .रविवार का जलवा था ही .अध्यक्ष जी ने पढ़ा और समाजवादी की ठीक से क्लास हुई .बाद में वे चंद्रशेखर के स्कूल से रेस्टिकेट कर दिए गए .जैसा मुझे मिश्रा जी ने बताया था उसी दौर में . खैर बिरयानी खाइए पर पीजिये थोड़ा कम यह इस किस्से का संदेश है .बाकी यह मत पूछिएगा वे कौन थे ,न मै बताने वाला हूं पुराने किस्से हैं वैसे ही ग्रहण करें .  अब न वह ठेला रहा न वैसे कद्रदान .न ही वह स्वाद . सखावत ,टुंडे ,रहीम करीम किसी की भी ऐसी बिरयानी नहीं मिली .दस्तरखान की जरुर कुछ बेहतर है .पर वह ठेला लगाने वाले गुलाम कुरशी आईटीसी पहुंच गए .आईएचएम के हेड आफ डिपार्टमेंट आरके सिंह ने कल यह जानकारी दी .अब वे देश में दमपुख्त के बड़े जानकार बन चुके है .पूरी चर्चा जनादेश के यू ट्यूब पर भोजन के बाद भोजन पर बात कार्यक्रम में सुने .सबस्क्राइब भी .

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