हेमलता म्हस्के
दुनिया के सभी जानवरों में सबसे ज्यादा प्रिय और विशालकाय हाथी आज संकट में हैं. हम आज जिस तरह से मौजूदा विकास के दौर में खुद में मशगूल हो गए हैं कि भविष्य में ना हम बचेंगे और ना यह धरती,ना हवा पानी, ना पशु पक्षी और ना ही अपने पूर्वजों के ज्ञान ही बचेंगे. हम इतने एकांगी होते जा रहे हैैं कि जैव विविधता की अनिवार्यता और उनकी विशेषताओं को ही भूल गए हैं. यही कारण है कि हाथी सहित अन्य बेजुबान जानवर संकट से घिर गए हैं. उनकी स्वतंत्रता और उनकी जरूरतों के संसाधनों और माहौल तहस नहस हो गए हैं. वे हमारी मौजूदा जीवन शैली और बेतरतीब विकास के कारण तबाह हो रहे हैं. उन पर कितनी क्रूरता होती है, हो रही है, इसको हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुई महरावत द्वारा एक मंदिर में पेड़ से बंधी हथिनी की पिटाई की तस्वीर को देख कर अंदाजा लगा सकते हैं. महरावत हथिनी के पैरों पर लट्ठ बरसा रहे थे और हथिनी बार बार पैर उठा रही थी और कराह रही थी. वह पेड़ से बंधी होने के कारण कहीं भाग भी नहीं पा रही थी. यह तस्वीर जब वायरल हुई तो दुनिया भर के पशु प्रेमियों का गुस्सा उबलने लगा है. अभी पिछले साल ही केरल में एक हाथी के मुंह में विस्फोटक सामग्री डालने की घटना पुरानी भी नहीं हुई थी कि अब फिर से कोयतंबुर में एक हथिनी की पिटाई की हृदय विदारक घटना सामने आ गई है. हाथियों के साथ होने वाले अत्याचार को देखते हुए अपने देश के सात लाख से अधिक पशु प्रेमी केंद्र सरकार से मौजूदा पशु क्रूरता विरोधी कानून को और सख्त करने की मांग कर रहे हैं. आलम यह है कि अपने देश में जानवरों को बचाने का कानून अपराधियों को ही बचाने के काम अा रहा है. अपराधी मात्र पचास रुपए देकर छूट जाते हैं क्योंकि मौजूदा पशु क्रूरता विरोधी कानून के हिसाब से यही अधिकतम जुर्माना है. साठ साल हो गए फिर भी बदले हुए हालात के मद्देनजर कानून में कोई बदलाव नहीं हुआ है. इतने कम जुर्माने की वजह से किसी को भी पशुओं के साथ क्रूरता करने में कोई भय नहीं होता. संवेदन हीन लोग बेजुबान जानवरों पर अत्याचार करने से बाज नहीं आते.
कानून विशेषज्ञ अनु जैन रोहतगी के मुताबिक अपने देश में बेजुबान जानवरों को भूखा रखने,रहने की ठीक जगह नहीं देने,मारने,बांध कर रखने और लैब परीक्षण,सर्कस,फार्म हाउस आदि में जानवरों पर अत्याचार करने को लेकर कई कानून बने हैं. प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल एक्ट 1960, वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट,प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स स्लाटर हाउस एक्ट 2001 तो हैं ही,भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं में भी जानवरों पर अत्याचार करने वालों को सजा देने का प्रावधान है. लेकिन सच्चाई यह है कि ये कानून ज्यादातर कागजों तक ही सिमटे हुए हैं. इसके साथ ही इन कानूनों को लागू करने वाली सरकार एजेंसियां भी लापरवाह और संवेदनहीन हैं,जिसकी वजह से यहां बेजुबान जानवरों पर अत्याचार करने वाले बेखौफ हैं.
जहां तक सवाल हाथी का है तो वह सुरक्षित नहीं है. हाथी की संख्या घट रही है. हाथी मारे जा रहे है. रेलों से कट रहे हैं. बीमार होकर मर रहे हैं. कहीं कहीं जहरीली वस्तु खा कर मर रहे हैं और कहीं करंट से भी मर रहे हैं. सबसे दुखद यह है कि उनके दांत के लिए अवैध शिकार में जबरदस्त बढ़ोतरी हो रही है. हाथी के दांत की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है. इसलिए अवैध शिकार थम ही नहीं रहा है. सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई हाथी दांत के लिए किए गए अवैध शिकार के बारे में जानकारी मांगने पर वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने बताया है कि पिछले दस सालों में देश भर में ऐसे 101 मामले दर्ज किए गए हैं और 957 शिकारियों को गिरफ्तार किया गया है. सबसे अधिक मामले केरल में दर्ज किए हैं. यहां 101 मामले में 203 शिकारियों को गिरफ्तार किया गया. तमिलनाडु में 68 मामले में 63 शिकारी गिरफ्तार किए गए. इसी तरह कर्नाटक में 57 मामलों में 81,ओडिसा में 56 मामलों में 160, उत्तर प्रदेश में 22 मामलों में 15 और दिल्ली में 6 मामलों में 10 अवैध शिकारी गिरफ्तार किए गए. ये आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि हाथियों पर कितने जुल्म ढाए जा रहे हैं.
अपने देश में हाथियों की संख्या 20,000 तक सिमट गई है. हालांकि 2017 में 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस पर केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हाथियों के संरक्षण के लिए गज यात्रा नाम से एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया गया है. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. हाथियों के संरक्षण के लिए कई चुनौतियां हैं. हाथियों के वास स्थलों को सुरक्षित रखना, चारे पानी की व्यवस्था करना,मानव के साथ टकराव को टालना,हाथी दांत के लिए जंगलों में घुसपैठ करने वाले शिकारियों से उनकी रक्षा करना और बीमार हो जाने पर जंगल में ही उनके उपचार करना आदि कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. इसके अलावा हाथियों के गलियारे अस्त व्यस्त हो गए हैं. पूरे देश में ऐसे 101 गलियारे हैं, जो हाथियों के पारंपरिक गलियारे हैं. हाथी उन्हीं गलियारों से प्रवास करते हैं,जिन्हें उनके पूर्वजों ने खोजा और जिसका आज भी इस्तेमाल करते हैं. नैसर्गिक गलियारों में प्रवास करने में खलल बढ़ने से हाथियों का स्वभाव उग्र,हिंसक और चिड़चिड़ा होने लगा है. नतीजा है कि कई जगहों पर हाथियों का और मानवों का संघर्ष काफी भयावह हो गया है. सरकार ने इन संघर्षों को ख़तम करने का प्रयास शुरू किया है,लेकिन उनका यह प्रयास सतही ही ज्यादा है. क्योंकि हम यह सोच ही नहीं पा रहे हैं कि बेजुबान जानवरों के लिए किस तरह की बुनियादी कोशिश करने की जरूरत है. हाथी इतने संकट में अा गए हैं कि अब वे विलुप्त होने वाले जीवों की कतार में खड़े हो गए हैं.
भारतीय वन्य जीव संक्षरण अधिनियम 1972 की सूची में संकटग्रस्त जीव के रूप में हाथी शामिल है. जंगलों में स्वतंत्र रहने वाले हाथी विभिन्न कारणों से मुश्किलों में हैं. आए दिन उनको बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. निजी स्वामित्व वाले हाथी भी अपने स्वामियों के अत्याचार से मुक्त नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर दिए गए एक हलफनामे के मुताबिक विभिन्न राज्यों में 2,454 हाथियों को बंधक बना कर रखा गया है. इनमें 560 वन विभाग में हैं और 1,687 हाथी निजी स्वामित्व में हैं. केरल और असम में सबसे अधिक बंधक हैं. इन दोनों राज्यों में क्रम से 905 और 518 हाथी बंधक हैं. इसके अलावा चिड़िया घर में 85, सर्कस में 26 और मंदिरों में 96 हाथी बंधक हैं.
दुनिया में स्विट्जरलैंड पहला ऐसा देश है, जिसने 1992 में अपने संविधान में जानवरों के जीवन को पहचान दी.जर्मनी में भी जानवरों की रक्षा की जाती है. यूके में तो जानवरों को सताने पर 51 सप्ताह तक जेल की सजा है. लेकिन अपने देश में बेजुबान पशुओं के हित में कड़े कानून का घोर अभाव है. इस बीच एक अच्छी खबर यह सामने अाई है कि अपने देश की सरकार जल्द ही बेजुबान पशुओं के हित में कड़े कानून बनाने जा रही है. नए बनने वाले कानून के तहत जानवरों को सताने और मारने पर 75 हजार तक का जुर्माना और पांच साल तक जेल की सजा भी ही सकती है. अगर नए कानून में ये प्रावधान होंगे तो पशुओं पर अत्याचार कम होने की उम्मीद कर सकते हैं. लेकिन यह जरूरी होगा कि सख्त कानून को ठीक से अमल में लाया जाए. सरकारी एजेंसियां पूरी ईमानदारी से संवेदन शील होकर ऐसा करेंगी तो अपने देश के बेजुबान पशु के लिए नया युग शुरू हो जाएगा.
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